बसपा सुप्रीमो मायावती ने घोषणा की है कि उनकी पार्टी अब किसी भी उपचुनाव में हिस्सा नहीं लेगी। उन्होंने उत्तर प्रदेश में हाल ही में हुए विधानसभा उपचुनावों के नतीजों और मतदान प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाए हैं। मायावती ने चुनाव प्रक्रिया में गड़बड़ियों का आरोप लगाते हुए कहा कि फर्जी वोटिंग के जरिए परिणाम प्रभावित किए जा रहे हैं। उन्होंने साफ किया कि जब तक चुनाव आयोग फर्जी मतदान रोकने के लिए सख्त कदम नहीं उठाएगा, तब तक बसपा कोई उपचुनाव नहीं लड़ेगी।
फर्जी मतदान का आरोप
मायावती ने लखनऊ में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा कि हाल के उपचुनावों में व्यापक स्तर पर धांधली हुई है। उन्होंने कहा, “पहले बैलेट पेपर के जरिए फर्जी वोट डाले जाते थे, अब ईवीएम का दुरुपयोग हो रहा है। यह लोकतंत्र के लिए बहुत ही चिंताजनक है।” मायावती ने यह भी कहा कि चुनाव प्रक्रिया में सुधार किए बिना निष्पक्ष चुनाव संभव नहीं है।
महाराष्ट्र चुनाव नतीजों पर सवाल
मायावती ने सिर्फ यूपी ही नहीं, बल्कि महाराष्ट्र चुनाव के नतीजों को भी गलत बताया। उन्होंने कहा कि चुनाव में सत्ता पक्ष ने अनियमितताओं के जरिए जीत हासिल की है। उनका कहना था कि यह सब लोकतांत्रिक मूल्यों को कमजोर कर रहा है।
बुरी हार से पार्टी सुप्रीमो चिंतित
बसपा ने 14 साल बाद उत्तर प्रदेश में उपचुनाव लड़ा था। लेकिन नौ सीटों पर हुए चुनाव में पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा। नतीजे यह बताते हैं कि बसपा के उम्मीदवार सिर्फ दो सीटों पर अपनी जमानत बचा सके, जबकि अन्य सीटों पर पार्टी का प्रदर्शन बेहद खराब रहा। मायावती ने इस नतीजे को अपने परंपरागत वोट बैंक के कमजोर होने का संकेत बताया।
चुनाव प्रचार में कमजोरी
विश्लेषकों का कहना है कि बसपा ने इस बार चुनाव प्रचार में कोई खास आक्रामकता नहीं दिखाई। बड़े नेता प्रचार में सक्रिय नहीं थे, जिससे पार्टी के मतदाताओं में उत्साह की कमी दिखी। मायावती ने खुद सभी नौ सीटों पर अकेले लड़ने की घोषणा की थी, लेकिन कोई भी प्रत्याशी पहले या दूसरे स्थान पर नहीं रहा। मायावती ने स्पष्ट किया कि उनका यह फैसला सिर्फ उपचुनावों तक सीमित है।
पार्टी विधानसभा और लोकसभा के मुख्य चुनाव में अपनी सक्रियता बनाए रखेगी। लेकिन उपचुनावों में भागीदारी के लिए चुनाव आयोग की सख्त कार्रवाई की शर्त रखी है। मायावती का यह कदम न सिर्फ पार्टी के भविष्य की रणनीति को दर्शाता है, बल्कि लोकतंत्र में सुधार की उनकी मांग को भी उजागर करता है।
फिलहाल एक समय दलितों की अकेली बड़ी नेता रहीं मायावती को चुनौती देने के लिए कई दूसरे दलित नेता भी सक्रियता के साथ राजनीति में तेजी से उभर रहे हैं। ऐसे में बीएसपी के समर्थक और परंपरागत वोटरों में कमी देखी जा रही है।