दिल्ली सरकार ने चीनी मांझे पर प्रतिबंध की अधिसूचना जारी कर दी है। उपराज्यपाल की मंजूरी से मंगलवार को जारी अधिसूचना के मुताबिक, दिल्ली में पतंग उड़ाने के लिए चीनी मांझे या धारदार धागों की बिक्री और उपयोग पूरी तरह से प्रतिबंधित होगा। पतंग के शौकीन लोग अब केवल उन सूती धागों और प्राकृतिक रेशों का ही इस्तेमाल कर सकेंगे जो धारदार न हो। यह अधिसूचना तत्काल प्रभाव से लागू कर दी गई है।
दिल्ली सरकार ने 16 अगस्त को जारी अधिसूचना में कहा है, ‘नायलॉन, प्लास्टिक और चीनी मांझे व ऐसे अन्य धागे जो धारदार व शीशे, धातु या अन्य धारदार सामग्री से पतंग उड़ाने के लिए बनाए जाते हैं, उन धागों की राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में बिक्री, उत्पादन, भंडारण, आपूर्ति और प्रयोग पर पूर्णत: प्रतिबंध होगा।’ अधिसूचना में आगे कहा गया है, ‘केवल सूती धागे या प्राकृतिक रेशे जोकि किसी धातु या शीशे के घटकों से रहित हैं उन्हीं से ही पतंग उड़ाने की अनुमति होगी।’ सरकार के इन निर्देशों का उल्लंघन करने वालों को पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 1986 की धारा 5 या धारा 15 के तहत पांच साल तक की कैद या एक लाख रुपए तक का जुर्माना या दोनों हो सकता है।
अधिसूचना में प्रतिबंध के पीछे चीनी और धारदार मांझों से लोगों, पशु-पक्षियों और पर्यावरण के नुकसान का हवाला दिया गया है। अधिसूचना में कहा गया है, ‘पतंग उड़ाने के दौरान लोगों और पक्षियों को काफी चोटें लगती हैं, ऐसा प्लास्टिक या अन्य सिंथेटिक सामग्री से बना पक्का धागा, जिसे चीनी धागे के नाम से जाना जाता है, के प्रयोग के कारण होता है। ये चोटें कई बार लोगों और पक्षियों के लिए प्राणघातक सिद्ध होती है। साथ ही, पतंग उड़ाने के दौरान आपसी प्रतियोगिता के कारण कई पतंगें कट जाती हैं जो कटे धागे के साथ जमीन पर पड़ी रहती हैं। प्लास्टिक होने के कारण ये धागे गलते नहीं, जिससे पर्यावरण और गायों व अन्य जानवरों को नुकसान होता है जो चारा चरने के दौरान इन धागों को भी खा जाते हैं।’
हाल ही में दिल्ली हाई कोर्ट ने राज्य सरकार की ओर से 15 अगस्त से पहले अधिसूचना जारी करने में असमर्थता जताए जाने की स्थिति में चीनी मांझे से होने वाले नुकसान को रोकने के लिए सुझाव मांगे थे और राज्य सरकार व नगर निगमों से स्वतंत्रता दिवस के दौरान होने वाली पतंगबाजी के मद्देनजर एडवाइजरी जारी करने का निर्देश दिया था। इस साल जून में दिल्ली निवासी जुल्फीकार हुसैन २ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर मांझे पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी, जिसके आधार पर कोर्ट ने दिल्ली सरकार को नोटिस जारी कर इस मामले में उसका पक्ष जानना चाहा था।
जुल्फीकार हुसैन ने अपनी याचिका में कहा था कि चीनी और धारदार मांझों का शिकार पहले केवल पक्षी ही होते थे, लेकिन अब इंसानों को भी इससे खतरा है। गौरतलब है कि पिछले साल अगस्त में पूर्वी दिल्ली में 28 साल के युवक की बाइक चलाते समय चीनी मांझे से गला कट जाने के कारण मौत हो गई थी। याचिकाकर्ता ने यह भी कहा था कि उत्तर प्रदेश, गुजरात और राजस्थान से भी इस तरह की दुर्घटनाएं सामने आई हैं।
गौरतलब है कि राजधानी दिल्ली सहित कई अन्य राज्यों में मकर संक्रांति, 26 जनवरी, 15 अगस्त और रक्षाबंधन के आसपास जमकर पतंगबाजी की जाती है। देश में पतंगबाजी की एक समृद्ध परंपरा रही है, लेकिन पहले इसके लिए सूती धागों का इस्तेमाल होता था। बीते कुछ सालों में पतंग के लिए चीनी मांझों का प्रयोग होने लगा है, साथ ही इन धागों को धारदार बनाने के लिए इन पर शीशे या? धातु की परत चढ़ाई जाती है, जिसके कारण आए दिन कोई न कोई दुर्घटना घट जाती है।
10 अगस्त को ही लग सकती थी रोक!
दिल्ली के उपराज्यपाल ने राजधानी में 9 अगस्त को ही चीनी मांझे पर रोक लगाने की फाइल को अपनी मंजूरी दे दी थी। दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार चाहती, तो उसपर अगले ही दिन 10 अगस्त को रोक की अधिसूचना जारी कर सकती थी। लेकिन चीनी मांझे से जुड़ी फाइल दिल्ली सरकार के पास ही लंबित पड़ी रही। केजरीवाल सरकार समय रहते कदम उठाती तो राजधानी में चीनी मांझे को लेकर हुए दो हादसे टल सकते थे। दिल्ली में चीनी मांझे का सबसे बड़ा कारोबार दिल्ली सरकार के पर्यावरण मंत्री इमरान हुसैन के विधानसभा क्षेत्र लाल कुआं क्षेत्र में होता है। 15 अगस्त को इस मांझे की खरीद-फरोख्त के अंदाजे से ही व्यापारियों ने चीनी मांझे की लाखों रुपए की खरीददारी कर ली थी। यदि दिल्ली सरकार पहले ये अधिसूचना जारी कर देती, तो पुरानी दिल्ली के उन व्यापारियों को लाखों रुपए का नुकसान हो सकता था, जिन्होंने इसकी थोक में खरीददारी की थी। नजीब जंग के प्रवक्ता ने मंगलवार को इस बात की पुष्टि की है कि उपराज्यपाल ने 9 अगस्त को ही चीनी मांझे पर रोक की फाइल को मंजूरी दे दी थी।

