बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि माता-पिता के जिंदा रहते पुत्र का उनके मकान पर कोई हक नहीं है। एक मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि ये माता-पिता पर निर्भर करता है कि वो संपत्ति को बेचें या रखें।
न्यायमूर्ति गौतम पटेल और न्यायमूर्ति माधव जामदार की खंडपीठ ने बेटे की उस मांग को खारिज कर दिया कि उसकी मां को फ्लैट बेचने से रोका जाए। दरअसल याचिकाकर्ता के पिता कई सालों से कोमा हैं और हॉस्पिटल में भर्ती हैं। उनके इलाज पर लाखों रुपये का खर्च होता है। इन्हीं खर्चों के लिए मां, अपने घर को बेचना चाहती है, जिससे उनका बेटा सहमत नहीं है। मां के इसी फैसले के खिलाफ बेटा हाईकोर्ट गया था।
हाईकोर्ट में मां सोनिया खान याचिका दायर कर मांग की है कि उसके पति के स्वामित्व वाली सभी संपत्तियों का उसे कानूनी अभिभावक घोषित की जाए। सुनवाई के दौरान, उनके बेटे आसिफ खान ने कई वर्षों तक अपने पिता के वास्तविक अभिभावक होने का दावा करते हुए हस्तक्षेप करने की मांग की थी।
न्यायमूर्ति गौतम पटेल और न्यायमूर्ति माधव जामदार की पीठ ने बेटे की मांग को निराधार और अतार्किक पाया। कोर्ट ने तर्क दिया कि किसी भी समुदाय के लिए उत्तराधिकार कानूनों के तहत, माता-पिता के जीवित रहने तक बेटे के लिए माता-पिता की संपत्ति पर अधिकार या हक का दावा करने का कोई प्रावधान नहीं है।
कोर्ट ने कहा- “किसी भी समुदाय या धर्म के लिए उत्तराधिकार कानून की किसी भी अवधारणा में, आसिफ (बेटे) को इन फ्लैटों में से किसी में भी कोई अधिकार नहीं हो सकता है”।
मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि बेटे की मांग हास्यास्पद है। कोर्ट ने कहा- “आसिफ का अपने पिता के फ्लैटों में कोई अधिकार नहीं है। उसके पास यह दिखाने के लिए कुछ भी नहीं है कि उसने कभी अपने पिता की परवाह की है। हम उनके इस तर्क को खारिज करते हैं कि उनकी मां के पास ‘वैकल्पिक उपाय’ है। यह सबमिशन ही हमें आसिफ के असली स्वभाव, उनके पूरी तरह से हृदयहीन और लालची रवैये को दिखाता है। उनकी अंतरिम अर्जी खारिज की जाती है।”