अजय जाधव ।
सरकारी जमीन पर अतिक्रमण करने वालों और बड़े प्रोजेक्ट पर काम में होने वाली देरी को टालने के लिए महाराष्ट्र सरकार अनोखा फैसला करने वाली है। महाराष्ट्र सरकार ने तय किया है कि वह अतिक्रमण करने वालों को 269 वर्ग फुट का आवासीय अपार्टमेंट देगी। अतिक्रमण करने वालों के पास यह विकल्प भी होगा कि अपार्टमेंट की कीमत के बराबर रकम का मुआवजा लेकर जमीन से कब्जा हटा लें। सरकार ने इस संबंध में बुधवार (13 जून) को हलफनामा जारी किया।
हलफनामे में ये कहा गया था कि राज्य और केंद्र सरकार के कई प्रोजेक्ट लगातार लेटलतीफी का शिकार हो रहे हैं। इसका कारण सरकारी भूमि पर किया गया अतिक्रमण है, जिसकी वजह से सरकार वक्त रहते उन पर कब्जा नहीं ले पाती है। इस देरी का असर प्रोजेक्ट की पूरी कीमत पर पड़ता है।” सरकार ने अपने शपथपत्र में आगे कहा,”राज्य सरकार इस दिशा में काम कर रही है कि किसी भी प्रोजेक्ट के लिए सरकारी भूमि पर कब्जा लेने में किसी किस्म की देरी न हो। ये समाधान प्रोजेक्ट के क्रियान्वयन में लगने वाले समय और परियोजना की लागत दोनों के लिए बेहतर होगा।”
सरकारी नियमों के मुताबिक, वह सभी लोग जिन्होंने महानगर पालिका की सरकारी जमीनों पर कब्जा किया है, पुनर्विस्थापन के हकदार होंगे। उन्हें 269 वर्ग फीट का अपार्टमेंट निशुल्क दिया जाएगा। या फिर अपार्टमेंट की कीमत के बराबर की रकम जमीन खाली करने के एवज में उन्हें दी जाएगी। राज्य सरकार ने ये साफ किया है कि सभी लाभार्थियों के पास आधार कार्ड जरूर होना चाहिए। फिर चाहें वह अपार्टमेंट लेने वाले हों या फिर नक़द मुआवजा लेने वाले। पुनर्विस्थापन के लिए कार्यदायी प्रोजेक्ट बनाने वाली कंपनी ही होगी। हर प्रभावित परिवार के पास 1 जनवरी 2018 से पहले का राशन कार्ड होना ही चाहिए। पुनर्विस्थापन की ये प्रक्रिया सिर्फ सरकारी प्रोजेक्ट के लिए ही लागू की जाएगी और जिला कलेक्टर के सहयोग से लागू की जाएगी।
पूर्व नगर नियोजन अधिकारी रामचन्द्र गोहद ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा,”अतिक्रमण करने वालों को मुआवजा या अपार्टमेंट देने का फैसला करके सरकार गलत परंपरा की नींव डाल रही है। सरकारी अधिकारियों की ये जिम्मेदारी है कि वह सरकारी भूमि पर अतिक्रमण न होने दें। ये परंपरा सिर्फ लोगों को और ज्यादा अतिक्रमण करने के लिए उकसाएगी। अभी तक सरकार विस्थापितों को मानवीय आधार पर थोड़ा मुआवजा दिया करती थी। लेकिन ये कदम किसी भी प्रकार से तर्क संगत नहीं कहा जा सकता है।”