शिवसेना को लेकर सीएम एकनाथ शिंदे और पूर्व सीएम उद्धव ठाकरे के बीच कानूनी और संवैधानिक लड़ाई शुरू हो गई है। विधानसभा स्पीकर के चुनाव के साथ ही महाराष्ट्र विधानसभा का दो दिवसीय विशेष सत्र भी शुरू हो गया है। हालांकि, स्पीकर के चुनाव के बाद अब विधायकों पर अयोग्यता की तलवार लटक रही है। कानूनी जानकारों की मानें तो शिवसेना पर आधिपत्य की लड़ाई में उद्धव ठाकरे गुट का पलड़ा भारी नजर आ रहा है।

जानकारों के मुताबिक, एकनाथ शिंदे गुट के विधायकों ने बगावत की है लेकिन उन्होंने किसी भी दल के साथ विलय नहीं किया है। ऐसे में शिवसेना के खिलाफ वोटिंग की है तो उनकी मुश्किलें बढ़ सकती हैं। असली शिवसेना को लेकर दावे की ये लड़ाई अब शुरू हो गई है।

उद्धव ठाकरे पहले ही कह चुके हैं कि एकनाथ शिंदे शिवसेना के मुख्यमंत्री नहीं हैं, जबकि शिंदे का दावा किया है कि उनका गुट ही असली सेना है। शिंदे गुट का कहना है कि उनके पास ज्यादा विधायक हैं, इसीलिए उनके गुट को असली शिवसेना के रूप में मान्यता मिलनी चाहिए। इसके विपरीत, शिवसेना नेताओं का कहना है कि पार्टी में टूट नहीं हुई है और इसका हवाला देते हुए वह बागी विधायकों को अयोग्य घोषित करने की मांग करते रहे हैं। दोनों तरफ के दावों के बीच, ये कानूनी लड़ाई लंबी खिंचने की संभावना है।

रविवार को स्पीकर के चुनाव के लिए शिवसेना की तरफ से राजन साल्वी उम्मीदवार थे जबकि बीजेपी से राहुल नारवेकर मैदान में थे। बीजेपी के राहुल नारवेकर को 164 वोट हासिल हुए और उनके खिलाफ 107 पड़े। इस तरह राहुल नारवेकर महाराष्ट्र विधानसभा के स्पीकर चुने गए। विधानसभा स्पीकर के चुनाव के मद्देनजर, शिवसेना के उद्धव गुट के सचेतक सुनील प्रभु ने विधायकों को व्हिप जारी किया था। इसमें कहा गया था कि सभी शिवसेना सदस्य पूरे चुनाव के दौरान सदन में मौजूद रहें।

वहीं, राजन साल्वी ने भी कहा था कि एमवीए के पास पर्याप्त संख्याबल है और उन्होंने अपनी जीत का दावा किया था। साल्वी ने कहा था कि शिवसेना के मुख्य सचेतक सुनील प्रभु ने शिवसेना के सभी 55 विधायकों को उनके पक्ष में वोट करने के लिए व्हिप जारी किया है। अगर शिवसेना के बागी विधायक उन्हें वोट नहीं देते हैं, तो उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा।

क्या है व्हिप?: जब कोई पार्टी अपने सदस्यों को मैंडेट जारी करती है तो उसपर पार्टी के सदस्यों को अमल करना होता है, जो पार्टी के आदेश की तरह होता है और इसे व्हिप कहा जाता है। इसका अनुपालन न करने पर पार्टी अपने संविधान के मुताबिक, सदस्यों के खिलाफ कार्रवाई कर सकती है। हालांकि, पार्टी स्तर पर ये कार्रवाई हो सकती है लेकिन दलबदल कानून उल्लंघन की कार्रवाई नहीं हो सकती है। यानी, पार्टी से निष्कासित करने की कार्रवाई का जा सकती है लेकिन सांसद या विधायक विधायिका का सदस्य बना रहेगा।