Shiv Sena : चुनाव आयोग ने फैसला सुनाया है कि शिवसेना का नाम और चुनाव चिह्न धनुष-बाण शिंदे गुट को दिया जाएगा। इस मामले को लेकर उद्धव ठाकरे ने मुंबई में मीडिया से बात करते हुए कहा कि शिंदे गुट ने हमारे धनुष और तीर के निशान को चुरा लिया है, लेकिन लोग इस चोरी का बदला लेंगे। उद्धव ठाकरे ने चुनाव आयोग के फैसले को लोकतंत्र के लिए खतरनाक बताते हुए कहा कि इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाएगी।
चूनाव आयोग के इस फैसले के बाद एकनाथ शिंदे अब शिवसेना के असल हकदार होंगे, सवाल यह है कि यह संभव कैसे हुआ ? चुनाव आयोग ने किस आधार पर यह फैसला किया है ? आइए समझते हैं।
तीन सदस्यों की कमेटी ने किया फैसला
इस मामले को लेकर चुनाव आयोग ने अपनी तीन सदस्यी टीम का गठन किया था। अपने 77 पन्नों के आदेश में तीन सदस्यीय आयोग ने बहुमत के आधार पर यह तय किया कि शिंदे गुट यह साबित करने में कामयाब रहा है कि वह नाम और सिंबल के हकदार हैं। एकनाथ शिंदे को महाराष्ट्र के 67 में से 40 विधायकों और एमएलसी का समर्थन प्राप्त है। जबकि संसद के दोनों सदनों के 22 में से 13 सांसदों का भी समर्थन शिंदे को प्राप्त है। चुनाव आयोग ने कहा कि शिंदे समूह के 40 विधायकों को 2019 के चुनावों में शिवसेना 76% वोट मिले थे। जबकि ठाकरे खेमे के विधायकों को 23.5% वोट मिले थे।
पार्टी के संविधान का टेस्ट
चुनाव आयोग ने शिवसेना पार्टी के संविधान को आलोकतांत्रिक करार दिया और फैसला किया कि “पार्टी संविधान के परीक्षण” पर भरोसा नहीं किया जा सकता क्योंकि पार्टी ने 2018 में अपने संशोधित संविधान की एक प्रति जमा नहीं की थी और दस्तावेज को और अधिक अलोकतांत्रिक बनाने के लिए बदल दिया गया था। यह भी पाया गया कि यह पार्टी के संगठनात्मक विंग में बहुमत के परीक्षण पर भरोसा नहीं कर सकता क्योंकि दोनों गुटों द्वारा संख्यात्मक बहुमत के दावे संतोषजनक नहीं थे।
चुनाव आयोग ने शिंदे को जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 और दलों के आंतरिक लोकतंत्र पर चुनाव आयोग के दिशानिर्देशों के अनुरूप 2018 के संविधान में संशोधन करने का भी आदेश दिया है।