मध्य प्रदेश के जबलपुर उच्च न्यायालय ने पूर्व मुख्यमंत्रियों को एक माह में सरकारी आवास खाली करने के आदेश दिए हैं। ये आदेश मुख्य न्यायाधीश हेमंत कुमार गुप्ता और न्यायाधीश ए.के. श्रीवास्तव की युगलपीठ ने एक याचिका की सुनवाई करते हुए मंगलवार (19 जून, 2018) को दिए। सिविल लाइन निवासी विधि छात्र रौनक यादव की तरफ से दायर याचिका में प्रदेश सरकार के 24 अप्रैल, 2016 के उस एक आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें पूर्व मुख्यमंत्रियों को आजीवन बंगले की सुविधाएं व मंत्री के सामान सुविधाएं प्रदान करने का जिक्र था।
याचिका में कहा गया कि प्रदेश सरकार ने मंत्रियों के वेतन व भत्ते अधिनियम में संशोधन कर यह आदेश जारी किया है। ऐसा करना न सिर्फ मौजूदा कानूनों के खिलाफ है, बल्कि जनता के पैसों का दुरुपयोग भी है।
याचिकाकर्ता का कहना है कि पद से हटने के बाद किसी भी मुख्यमंत्री के नाम पर सरकारी बंगले का आवंटन जारी रहने को सर्वोच्च न्यायालय ने उप्र सरकार बनाम लोकप्रहरी केस में गलत ठहराया है। याचिका में मप्र सरकार के अलावा मप्र की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती, कैलाश जोशी व कांग्रेस के दिग्विजय सिंह को पक्षकार बनाया गया था।
याचिका की सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने सरकार को संशोधित कानून में पूर्व मुख्यमंत्रियों को आजीवन सरकारी आवास देने की वैधानिकता पर जवाब देने कहा था। याचिका पर पिछली सुनवाई के दौरान सरकार की तरफ से बताया गया था कि संबंधित मामला सर्वोच्च न्यायालय में भी चल रहा है।
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता विपिन यादव के अनुसार, याचिका पर मंगलवार को हुई सुनवाई के दौरान युगलपीठ को बताया कि संबंधित मामले में दायर याचिका सर्वोच्च न्यायालय ने खारिज कर दी है, जिसके बाद युगलपीठ ने उप्र सरकार बनाम लोकप्रहरी प्रकरण में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश को दृष्टिगत रखते हुए एक माह में पूर्व मुख्यमंत्रियों को आवंटित शासकीय बंगले खाली करवाने के निर्देश दिए हैं।