भारत में कोरोनावायरस के केस अब धीरे-धीरे स्थिर होने की तरफ बढ़ रहे हैं। कई राज्यों में पॉजिटिविटी रेट 5 फीसदी के करीब आ गया है। हालांकि, अब कोरोना से ठीक होने वालों को ब्लैक फंगस की समस्या उभर रही है। इस बीमारी ने अब फ्रंटलाइन वर्कर्स के साथ लॉकडाउन के दौरान दूसरों की मदद के लिए काम कर रहे लोगों को भी चपेट में लेना शुरू कर दिया है। ऐसा ही एक मामला मध्य प्रदेश के भोपाल से भी आया है, जहां कोरोना पर जीत हासिल करने के बावजूद एक युवक ब्लैक फंगस से लड़ाई हार गया। इस शख्स ने कोरोना की पहली लहर के दौरान 400 परिवारों को दो से तीन महीने का राशन बांटा था। हालांकि, दूसरी लहर में संक्रमित होने के बाद उन्हें ब्लैक फंगस से नहीं बचाया जा सका।
युवक का नाम लकी गुप्ता (31) बताया गया है। लकी की सोमवार-मंगलवार को ब्लैक फंगस से जंग के दौरान मौत हो गई। लकी की शादी 29 मई को रायसेन की रहने वाली लड़की से होनी थी। लकी के एक दोस्त ने बताया कि उसने शहर में 400 से ज्यादा परिवारों को कोरोना की पहली लहर के दौरान लॉकडाउन में दो-तीन महीनों का राशन मुहैया कराया था।
हालांकि, दूसरी लहर में ही 22 अप्रैल को लकी कोरोना संक्रमित हो गए थे। उन्हें अस्पताल में भी भर्ती कराया गया, लेकिन संक्रमण तेजी से फैलते हुए 50 फीसदी तक फैल चुका था। इसके बाद उन्हें दूसरे अस्पताल ले जाया गया, जहां उन्हें रेमडेसिविर मिलने के बाद हालात सुधरे थे और लकी निगेटिव हो गए थे। लेकिन स्टेरॉयड वाले उपचार से उनकी शुगर 500 के पार पहुंच गई।
सौरभ के मुताबिक, लकी की ब्लैक फंगस की जांच हुई, तो उनकी आंख और नाक में संक्रमण मिला। इसके बाद 21 मई को नाक का ऑपरेशन हुआ। आंख के ऑपरेशन के लिए एक इंजेक्शन और चाहिए था, जो कि सिर्फ हमीदिया सरकारी अस्पताल में मिल रहा था। जब लकी को 22 मई को वहां पहुंचाया गया, तब उनका ऑक्सीजन लेवल 95 से घटकर 70 पर आ गया और शाम को उन्हें वेंटिलेटर पर रखना पड़ा। इसके बाद रात 11.30 बजे उनकी जान चली गई। वह अपने पिता, भाई, भाभी और दो भतीजियों के बीच अकेला कमाने वाला था।

