Lok Sabha Elections 2024: आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर समाजवादी पार्टी ने यूपी में प्रत्याशियों की पहली लिस्ट जारी कर दी। सूची में 16 उम्मीदवारों के नामों का ऐलान किया गया। इसमें मुलायम सिंह परिवार के तीन सदस्यों का नाम फाइनल किया गया। जिनका नाम है- डिंपल यादव, अक्षय यादव और धर्मेंद यादव। सपा ने डिंपल यादव को मैनपुरी, अक्षय यादव को फिरोजाबाद तो वहीं धर्मेंद्र यादव को बदायूं से मैदान में उतारा है।

2019 के लोकसभा चुनाव में अखिलेश परिवार के इन तीनों सदस्यों का हार का सामना करना पड़ा। मोदी की सुनामी के आगे विपक्षी पार्टियों के गढ़ ध्वस्त हो गए थे। जिसमें समाजवादी पार्टी (सपा) के तीन सदस्यों- डिंपल यादव, धमेंद्र यादव और अक्षय यादव की हार सपा प्रमुख अखिलेश यादव के लिए बड़ा झटका थी। डिंपल यादव कन्नौज में हार गईं, धमेंद्र यादव बदायूं में हार गए और अक्षय यादव को फिरोजाबाद से हार का सामना करना पड़ा था। हालांकि, 16वीं लोकसभा में यह तीनों नेता सांसद थे।

पिछले लोकसभा चुनाव में सपा ने बसपा के साथ गठबंधन किया था। तब 80 में से भाजपा को 62, बसपा को 10 और सपा को 5 सीटों पर संतोष करना पड़ा था। अपना दल ने दो सीटों पर जीत हासिल की थी। सपा की हालांकि, अब तीन ही लोकसभा सीटें हैं। पांच में से दो सीटों भाजपा ने उपचुनाव में सपा से छीन लीं। आजमगढ़ में अखिलेश यादव के इस्तीफे के बाद बीजेपी ने दिनेश लाल निरहुआ जीते। इसी तरह रामपुर में आजम खान की सीट पर भी बीजेपी ने कब्जा जमा लिया।

2012 में पहली बार सांसद बनीं डिंपल यादव-

सपा प्रमुख अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव की राजनीतिक में एंट्री काफी पहले हो चुकी थी, लेकिन वो पहली बार सांसद 2012 में बनीं। साल 2012 में डिंपल यादव ने कन्नौज सीट पर हुए उपचुनाव में जीत दर्ज की थी और पहली बार सांसद बनीं थीं। इसके बाद 2014 की मोदी लहर में भी उन्होंने अपनी सीट बचाई और कन्नौज से दूसरी बार सांसद चुनी गईं।

2019 के लोकसभा चुनाव में डिंपल को बड़ा झटका लगा, तब उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। हालांकि डिंपल यादव की ये दूसरी हार थी, इससे पहले 2009 में भी उन्होंने फिरोजाबाद से चुनाव लड़ा था, तब उन्हें कांग्रेस नेता राज बब्बर ने हराया था। लेकिन 2012 के लोकसभा उपचुनाव में डिंपल यादव कन्नौज से निर्विरोध सांसद बनीं थीं।

रामगोपाल के बेटे अक्षय यादव की राजनीति में एंट्री-

साल 2014 में सांसद रहे अक्षय यादव को तीसरी बार सपा ने फिरोजाबाद लोकसभा से उतरा है। पूर्व सांसद अक्षय यादव भी सैफई परिवार से आते हैं। अक्षय यादव समाजवादी पार्टी के प्रमुख महासचिव समाजवादी पार्टी के प्रमुख महासचिव रामगोपाल यादव के बेटे हैं। अक्षय यादव को राजनीति विरासत में मिली है। इसी कारण साल 2014 में 16वीं लोकसभा में उन्हें समाजवादी पार्टी ने फिरोजाबाद प्रत्याशी बनाया था।

खास बात यह है कि अक्षय यादव ने लोकसभा चुनाव से पहले कभी भी किसी तरह का चुनाव नहीं लड़ा। साल 2014 में समाजवादी पार्टी को केवल उत्तर प्रदेश से पांच सासंद सैफई परिवार के जीते थे। उसमें एक अक्षय यादव भी थे। उन्होंने फिरोजाबाद से जीत हासिल की थी।

वहीं साल 2019 के चुनाव में सपा की इस सीट को बीजेपी ने छीन लिया था। हालांकि सपा की हार की वजह शिवपाल यादव ही थे। दरअसल, इस सीट पर सपा उम्मीदवार अक्षय यादव के अलावा खुद शिवपाल यादव थे, क्योंकि शिवपाल उस वक्त अपने भतीजे अखिलेश यादव से नाराज थे और उन्होंने इस सीट पर अपनी खुद की पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) के टिकट पर चुनाव लड़ा था। इसी वजह से सपा का वोट दो तरफ बंट गया और इस सीट पर भाजपा प्रत्याशी डॉ चंद्रसेन जादौन ने जीत दर्ज की।

मुलायम के काफी करीब रहे हैं धर्मेंद्र यादव

धर्मेंद्र यादव के बारे में कहा जाता है कि वो इलाहबाद में रह कर अपनी पढ़ाई करने में जुटे हुए थे, लेकिन 13 अक्तूबर 2002 को उनके ताऊ रतन सिंह यादव के बेटे रणवीर सिंह यादव की अचानक मौत हो गई। जिसके बाद नेता जी मुलायम सिंह यादव ने धर्मेंद्र यादव को सैफई वापस बुला लिया। चूंकि रणवीर सिंह यादव निधन के समय सैफई के ब्लॉक प्रमुख थे, ऐसे में ब्लॉक की व्यवस्था देखने के लिए धर्मेद्र को बुलाया गया था।

धर्मेंद्र यादव ने 2017 में शिवपाल यादव बनाम अखिलेश यादव के मतभेद में भी अहम भूमिका निभाई थी और बताया जाता है कि उन्होंने कई नेताओं को अखिलेश यादव के पाले में रखा था। धर्मेंद्र यादव, मुलायम सिंह यादव के भाई अभय राम यादव के बेटे हैं। उन्होंने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से राजनीतिशास्त्र से पीजी और एलएलबी की पढ़ाई की है. धर्मेंद्र यादव छात्र राजनीति के दिनों से ही सक्रिय हो गए थे।

साल 2004 में धर्मेंद्र यादव ने मैनपुरी संसदीय सीट से चुनाव लड़ कर जीत भी दर्ज की। उस वक्त प्रदेश में भी सपा की सरकार थी, लेकिन 2007 में समाजवादी पार्टी को सत्ता से बाहर होना पड़ा और बहुजन समाज पार्टी सत्ता में आ गई। इसके बाद मुलायम सिंह यादव ने मैनपुरी से चुनाव लड़ा और धर्मेंद्र यादव को बदायूं भेजा। मैनपुरी से बदायूं गए धर्मेंद्र यादव ने 2009 और 2014 में यहां से भी जीत दर्ज की, लेकिन, साल 2019 में यहां से बीजेपी ने स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी डॉ. संघमित्र मौर्य को चुनावी मैदान में उतारा और धर्मेंद्र यादव को हार का सामना करना पड़ा।

कहा जाता है कि कि धर्मेंद्र यादव 2019 में हार के बाद विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटे थे, लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिला। ब्लॉक प्रमुख के तौर पर कॅरियर की शुरुआत करने वाले धर्मेंद्र ने 2004 में मैनपुरी में हुए उपचुनाव को जीता। समाजवादी पार्टी ने 2009 के चुनाव में उन्हें बदायूं का टिकट दिया और उन्होंने यहां रिकॉर्ड जीत दर्ज की। 2014 में भी उन्होंने यहां पर परचम लहराया। फिलहाल यह देखने वाली बात होगी कि यादव परिवार के यह तीनों सदस्य अपनी सीट बचाने में कामयाब होते हैं, या फिर 2019 की मोदी की सुनामी के यह किले एक बार फिर ध्वस्त होंगे।