विधानसभा में सोमवार को अध्यक्ष सहित विधायकों ने उपराज्यपाल की जमकर खिंचाई की। उपराज्यपाल ने विधानसभा अध्यक्ष रामनिवास गोयल को पत्र लिखकर आदेश दिया था कि उन्हें आरक्षित विषयों पर सदन में सवाल स्वीकार करने का अधिकार नहीं है, जिस पर गोयल ने कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यह अंग्रेजों का शासन याद दिलाने वाला और दिल्ली के अधिकारों पर कुठाराघात है। इसके साथ ही अध्यक्ष ने प्रश्नकाल के दौरान पूछे गए सभी अनुत्तरित प्रश्नों को विशेषाधिकार समिति को भेज दिया और अधिकारियों को चेतावनी दी कि वे सदन व इसकी समितियों के सवालों का जवाब देने के लिए बाध्य हैं और ऐसा न करना सदन की अवमानना होगी।
भारत सरकार के कानून मंत्रालय की सलाह पर उपराज्यपाल की ओर से विधानसभा अध्यक्ष को भेजे गए पत्र में कहा गया है कि देश के संविधान की धारा 239 (एए)(3)(4) और दिल्ली विधानसभा के कार्यवाही संबंधी नियम 29 के संदर्भ में विधानसभा अध्यक्ष किसी भी आरक्षित विषय पर कोई सवाल स्वीकार नहीं कर सकते हैं। इस पर उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने भी कड़ी टिपण्णी की और कहा, ‘दिल्ली विधानसभा भारत सरकार के गृह मंत्रालय के किसी बाबू के अधीन नहीं है। यह केवल जनता के प्रति जवाबदेह है। ऐसे जवाब लोकतंत्र और संविधान के लिए कलंक है’। सेवा विभाग द्वारा प्रश्नकाल के दौरान पूछे गए प्रश्न से संबंधित जवाब सीधे विधानसभा अध्यक्ष को दिए जाने पर भी सिसोदिया ने आपत्ति जताई और जांच की बात कही।
वैसे तो बजट सत्र में हरेक दिन दिल्ली सरकार के प्रशासनिक अधिकारी विधायकों के निशाने पर रहे हैं, लेकिन सोमवार को मामला अधिकारियों से होते हुए उपराज्यपाल तक पहुंच गया। सबसे पहले प्रश्नकाल के दौरान विधायक गिरीश सोनी से विधानसभा अध्यक्ष से शिकायत की कि शहरी विकास विभाग से संबंधित उनके एक सवाल का अधिकारियों ने उचित जवाब नहीं दिया है। अन्य विधायकों ने भी मुद्दे को उठाया जिसके बाद इस सवाल के मामले को प्रश्न और संदर्भ समिति को भेज दिया गया। इसके बाद विधायक रघुविंद शौकीन ने उपमुख्यमंत्री से पिछले 15 सालों में दिल्ली सरकार, दिल्ली नगर निगम और स्वायत्त निकायों के अधिकारियों द्वारा किए गए विदेशी दौरों का विवरण मांगा। इसके जवाब में मनीष सिसोदिया ने कहा कि सेवा विभाग को सवाल भेजा गया, लेकिन जवाब नहीं आया है। विधायक सौरभ भारद्वाज ने आरोप लगाया कि एक साल पहले भी विधानसभा में ये सवाल आए थे, लेकिन अभी तक जवाब नहीं आया।
विधानसभा अध्यक्ष ने विषय को अत्यंत गंभीर बताते हुए पहले उपराज्यपाल का आदेश पढ़ा और फिर सभी अनुत्तरित प्रश्नों को विशेषाधिकार समिति को भेज दिया। रामनिवास गोयल ने कहा कि सेवा विभाग के नियमों के नाम पर भ्रष्ट अधिकारियों को बचाया जा रहा है, आखिर जिन सवालों के जवाब सूचना अधिकार कानून के तहत आम नागरिकों को मिल सकते हैं वे इस सदन को क्यों नहीं दिए जा रहे। इस दौरान विपक्ष भी सत्ता पक्ष के साथ खड़ा नजर आया, हालांकि भाजपा विधायक मनजिंदर सिंह सिरसा ने विधानसभा अध्यक्ष को उपराज्यपाल के साथ ‘अहं की लड़ाई’ छोड़ने की नसीहत दी। नेता विपक्ष विजेंद्र गुप्ता ने कहा कि निर्वाचित सदन को उसके सवालों का जवाब मिलना चाहिए, उसे कानूनी पेचीदगियों और बारीकियों में नहीं उलझाया जा सकता है। विशेष उल्लेख के तहत चर्चा के विषयों को पढ़ा हुआ मान कर अध्यक्ष ने उपर्युक्त मुद्दे पर विधायकों को चर्चा की अनुमति दी। चर्चा में भाग लेते हुए आप विधायक अलका लांबा, नितिन त्यागी व सौरभ भारद्वाज ने मांग की कि उपराज्यपाल को माफी मांगनी चाहिए। वे अपना आदेश पत्र वापस लें और पूरा सदन मामले की शिकायत राष्ट्रपति से करे।

