अनामिका सिंह
दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्षा स्वाति मालीवाल ने निर्भया कांड के बाद आए कानूनी बदलावों पर चर्चा करते हुए कहा कि बीते एक दशक में यौन उत्पीड़न व महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों के खिलाफ कानून तो बने लेकिन दुख इस बात को देखकर होता है कि उन कानूनों को अमल में नहीं लाया जा सका है। जिसकी वजह से अपराध करने वालों पर उसका प्रभाव होता नहीं दिखता। हालांकि सामाजिक चेतना आई है और महिलाएं शर्म को छोड़कर अपने ऊपर होने वाले अत्याचारों के खिलाफ शिकायत कर रही हैं लेकिन सिस्टम खराब है जो उनके मनोबल को तोड़ रहा है। आयोग में शिकायतकर्ता महिलाओं की संख्या में भी इजाफा हुआ है।
मालीवाल ने कहा कि निर्भया कांड के बाद 181 महिला हेल्पलाइन को शुरु किया गया, साथ ही ‘वन स्टेप सेंटर’ बनाए गए। यही नहीं यदि कोई पुलिसकर्मी पीड़िता की एफआइआर दर्ज नहीं करता तो उस पुलिसकर्मी के खिलाफ एफआइआर दर्ज की जाती है। इसी तरह साल 2018 में जब मैं अनशन पर बैठी तो छोटे बच्चों के साथ होने वाले यौन उत्पीड़न पर फांसी की सजा का कानून बना लेकिन उसे लागू नहीं किया जा सका।
हाल यह है कि एक आदमी किसी स्त्री के साथ बलात्कार करता है तो बाद में पूरा सिस्टम भी उसका बलात्कार करती है और उसकी शिकायत त्वरित कार्रवाई न होने से एक नंबर बनकर रह जाती है। पीड़िता का सामाजिक हनन होता है और कई बार सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग का शिकार भी बनना पड़ता है।
मालीवाल ने बताया कि आयोग का सोशल मीडिया सेल बहुत सजग होकर काम कर रहा है लेकिन पुलिस का साइबर क्राइम हरेक मामले को हल्के में लेता है, यही वजह है कि आनलाइन मिलने वाली धमकियों या अपराधों को पुलिस गंभीरता से नहीं लेती। कई मामले आयोग के सामने ऐसे आए जहां पुलिस ने लड़की का पीछा करने या आनलाइन धमकी देने पर कुछ नहीं किया।
जबकि सुल्ली बाई हो या फिर क्रिकेट खिलाड़ी विराट कोहली की बेटी को दी गई धमकी, हमने स्वत:संज्ञान लेते हुए कार्रवाई की है और आगे भी करते रहेंगे। प्रशासन को चाहिए की पाइपलाइन में लंबे समय से पड़े ऐसे अनगिनत मामलों को जल्द सुलझाए ताकि महिलाओं का विश्वास और हिम्मत बनी रहे।