निगम चुनावों को लेकर राजधानी में नेताओं का दल बदल जारी है। जिन नेताओं को अपने खबरियों से अंदरखाने टिकट न मिलने की भनक लग रही है कि वे तुरंत दूसरी पार्टी से संपर्क साधने में जुटे हैं। पिछले दिनों देखा भी गया कि विपक्ष के कई नेता दिल्ली की सत्ता पर काबिज पार्टी में शामिल हुए। हालांकि अब वे भी असमंजस में हैं। जो अपनी पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टी में शामिल हुए ऐसे दलबदलु नेताओं को डर सता रहा है कि उनकी उस उम्मीद पर पानी न फिर जाए जिसे लेकर वे पार्टी छोड़कर आए थे। इनको टिकट को लेकर चिंता सता रही है। बेदिल को पता चला कि कई तो इस चिंता में बैठे हुए हैं कि निगम चुनाव अभी दूर है और ऐसे में कई महीने पार्टी में शामिल होने से उनकी उपयोगिता भी नहीं दिख रही है। अब टिकट पाने तक कई नेता अपनी उपयोगिता साबित करने के लिए सर्दी में भी पसीना बहा रहे हैं।

लय में निर्दलीय

उत्तर प्रदेश में चुनावी बिगुल बज गया है। दिल्ली से सटे गौतमबुद्ध नगर में जैसी रौनक दिखनी चाहिए वह नहीं दिख रही। कारण है कोरोना। यहां बड़ी मालदार पार्टियों के उम्मीदवार तो मायूस हैं, लेकिन जब से चुनाव आयोग ने कोरोना के मद्देनजर पार्टियों और उम्मीदवारों को सीमित लोगों के साथ जनसंपर्क करने और आनलाइन प्रचार करने को कहा है तब से निर्दलीय उम्मीदवारों की जैसे बांझे खिल गई है। वे पूरी तरह लय में नजर आ रहे हैं। जहां बड़ी राजनीतिक पार्टियां आनलाइन प्रचार में पैसा खर्च कर रही हैं लेकिन जनसंपर्क के मामले में लाखों कार्यकर्ता होने के बावजूद भी पांच लोगों को ही लेकर चलना उनकी मजबूरी हो गई है। वहीं, निर्दलीय प्रत्याशी तो पहले ही समर्थकों की कमी से जूझते थे, आयोग का ये नियम उनके लिए वरदान बन गया है। बेदिल को पता चला है कि पांच समर्थकों को साथ लेकर चलने में अब वो फक्र महसूस कर रहे हैं। गौतमबुद्ध नगर की तीन विधानसभा सीटों पर कुल 14 निर्दलीय चुनावी मैदान में हैं।

गलती और माफी

दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी के लिए ‘सरदार’ के चुनाव में हुई बेअदबी की चर्चा सिख गलियारे में थम नहीं रही। दरअसल कार्यकारिणी के चुनाव के दौरान गुरुद्वारा परिसर में सिख नेता न केवल एक दूसरे भिड़ गए बल्कि अनैतिक व गैर मर्यादित आचरण भी किए। हुल्लड़बाजी, जोर-आजमाइश, हाथापाई तक हुई। और यह सब समाज के सबसे पवित्र स्थान के सामने हुआ। यह अगल बात है कि इसका अफसोस उन्हें हुआ और अगले दिन गुरुद्वारा रकाबगंज में ‘क्षमा अरदास’ रखा गया। जिसका केंद्र बिंदु उसी बेदबी के लिए ‘पश्चाताप व क्षमा’ मांगना ही था। बहरहाल सिख नेता अब मामले को जल्द भुला देना चाहते हैं लेकिन जो गलती हुई है उसका कलंक अब छुटाए नहीं छूट रहा।

मुख्यालय का मजा

दिल्ली नगर निगम में वैसे अधिकारियों की चांदी है जो मुख्यालय में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। वहां उनकी बड़ी पूछ होती है। अधिकारी से लेकर पदाधिकारी उनसे मिलने को कतार में लगे होते हैं, और वह तवज्जो नहीं देते। लेकिन जब वही अधिकारी मुख्यालय से निगम क्षेत्रों के कार्यालयों में जाते हैं तो उनकी स्थिति बुरी हो जाती है। पहले उनके लिए लोग कतार में थे, वहीं अब कमरे में घुसकर झगड़ा करते हैं सो अलग। बेदिल को पूर्वी निगम के एक ऐसे ही आला अधिकारी ने अपना दुखड़ा सुनाते हुए कहा कि पहले निगम मुख्यालय में तैनात थे तो उनसे मिलने के लिए कई अधिकारी लाइन में लगे होते थे लेकिन जब से पूर्वी निगम में आए उनकी सुध लेने वाला भी कोई नहीं है।
-बेदिल