उत्तर प्रदेश के पूर्वोत्तर में बसे गोरखपुर की कहानी जानने के लिए हर कोई उत्साहित रहता है। गोरखपुर शहर बाबा गोरखनाथ के नाम से पहचाना जाता है। गोरखपुर को धार्मिक नजरिए से भी काफी महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि नाथ परंपरा के वाहक गोरखनाथ की तपोस्थली भी गोरखपुर ही रही है। इस शहर का स्वतंत्रता आंदोलन में भी महत्वपूर्ण स्थान है। गोरखपुर में कई ऐसे स्थान भी हैं, जहां लोगों ने कई बार अंग्रेजों का हाल-बेहाल कर दिया था। हालांकि धर्म और इतिहास के साथ ही यहां ‘क्राइम’ की अलग ही कहानी है। ऐसा माना जाता है कि उत्तर प्रदेश में माफिया गिरी की शुरुआत गोरखपुर से हुई थी।

वर्तमान समय में गोरखपुर भले ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के वजह से चर्चा में रहता है, लेकिन गोरखपुर के बारे में जाने तो इसकी कहानी धार्मिक और ऐतिहासिक नजरिए से और भी रोचक है। 

गोरखपुर का धार्मिक इतिहास और उससे जुड़े केंद्र

गोरखपुर को मुख्य रूप से बाबा गोरखनाथ की तपोस्थली के रूप में जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि बाबा गोरखनाथ ने 10वीं या 11 वीं शताब्दी के दौरान गोरखपुर को ही अपना केंद्र बनाया था। वैसे नाथ संप्रदाय के संस्थापक आदिगुरु को माना जाता है। लेकिन नाथ परंपरा को मच्छेन्द्रनाथ ने आगे बढ़ाया। हालांकि नाथ परंपरा महायोगी गोरखनाथ ने ही व्यापक स्तर पर मान्यता दिलाई। गोरखनाथ ने हठ योग के माध्यम से नाथ परंपरा को जोगी बनाया। गोरखनाथ ने ही जोग परंपरा को आगे बढ़ाया। इसी वजह से आज के समय में घर-परिवार छोड़ जोगी बनने वाले नाथ परंपरा का निर्वहन करते हैं।

तरकुलहा देवी के भक्त शहीद बंधू सिंह

गोरखपुर में गोरखनाथ मंदिर के अलावा और तरकुलहा देवी का मंदिर हैं। इस मंदिर की धार्मिक के साथ ही ऐतिहासिक मान्यता भी है। इस मंदिर का इतिहास अमर शहीद बंधू सिंह से जुड़ा है। जानकारी के अनुसार, बंधू सिंह अंग्रेजों के खिलाफ जंग छेड़ दी थी। उनके ‘गुरिल्ला वार’ की वजह से अंग्रेज पूरी तरह से परेशान हो चुके थे। इसी बीच एक दिन उनको अंग्रेजों ने पकड़ लिया। जिसके बाद बंधू सिंह को फांसी पर लटकाया जाने लगा। लेकिन ऐसी मान्यता है कि शहीद बंधू सिंह को छह बार फांसी देने की कोशिश की गई। लेकिन हर बार फांसी का फंदा टूट जाता था। अंग्रेज भी इस अजीब परिस्थिति से परेशान थे।

ऐसी मान्यता है कि बंधू सिंह तरकुलहा देवी के परम भक्त थे। जिस वजह से अंग्रेज उनको फांसी नहीं दे पा रहे थे। ऐसे सातवीं बार में उन्होंने माता की आराधना की- मां अब आप अपने चरणों में ले लें और फिर वो फांसी के फंदे पर झूल गए। 

इतिहास के पन्नों में गोरखपुर का अलग है स्थान

साल था 1922… अंग्रेजों का सितम पूरे देश में बरस रहा था। जिसके कारण हर जगह अंग्रेजों के खिलाफ का विरोध प्रदर्शन चल रहा था। इसी बीच गोरखपुर में भी अंग्रेजों का आतंक शुरू हो गया। 8 फरवरी को चौरी चौरा में लगभग 2 हजार से ज्यादा प्रदर्शनकारी अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन कर रहे थे। लेकिन मामला कुछ ही देर में पुलिस के नियंत्रण से बाहर हो। ऐसी स्थिति में पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया। जिससे बाद गुस्साए भीड़ ने चौरी-चौरा पुलिस चौकी में ही आग लगा दिया। इस घटना में तीन नागरिक और 22 पुलिसकर्मियों की मृत्यु हो गई थी। इस घटना का प्रभाव पूरे भारत में हुआ। इसी दौरान महात्मा गांधी का असहयोग आंदोलन भी चल रहा था। गांधी जी ने इस घटना से आहत होकर असहयोग आंदोलन वापस ले लिया।

राम मंदिर आंदोलन का केंद्र था गोरखपुर

वैसे तो धर्म और इतिहास की नगरी के रूप में गोरखपुर में अपना स्थान है। अयोध्या राम जन्मभूमि आंदोलन के दौरान भी गोरखपुर मुख्य केंद्र था। इसके पीछे गोरक्षनाथ पीठ के महंत रहे गुरु दिग्विजय नाथ और अवैध नाथ की मुख्य भूमिका थी। अवैध नाथ योगी आदित्यनाथ के गुरु थे। उन्होंने ही योगी आदित्यनाथ को मठ का उत्तराधिकारी बनाया था।  इसके अलावा गोरखपुर 90 के दशक में क्राइम का बहुत बड़ा केंद्र था।

हरिशंकर तिवारी और वीरेन्द्र शाही की अदावत

यूपी सरकार के पूर्व मंत्री रहे हरि शंकर तिवारी का नाम क्राइम की दुनिया में एक अलग प्रभाव रखता था। 80 और 90 के दशक में गोरखपुर की चिल्लूपार से विधायक रहे हरि शंकर तिवारी और गोरखपुर के नौतनवा से विधायक रहे वीरेन्द्र प्रताप शाही के बीच अदावत की शुरुआत हुई। ऐसा माना जा रहा था कि एक तरफ तिवारी का प्रभाव रेलवे से लेकर हर जगह के ठेकों में बढ़ता जा रहा था। तो वहीं दूसरी ओर तिवारी अपनी राजनीतिक रसूख भी मजबूत कर रहे थे। इसी सब के दौरान श्री प्रकाश शुक्ला की एंट्री हो गई।

श्री प्रकाश शुक्ला का आतंक

क्राइम यूपी के पूर्वांचल में जरूर शुरू हुआ था लेकिन इसका प्रभाव राजधानी लखनऊ से लेकर बिहार तक देखने को मिलने लगा था। हरि शंकर तिवारी और वीरेन्द्र शाही की आपसी रंजिश के दौरान ही श्री प्रकाश शुक्ला ने शाही को गोलियों से भूनकर हत्या कर दी। ऐसा माना जाता है कि श्री प्रकाश शुक्ला ने यूपी के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को मारने का जिम्मा ले लिया था। हालांकि इसकी पुष्टि नहीं हुई की कल्याण सिंह को मारने का जिम्मा किसने दिया था। लेकिन इसकी जानकारी के बाद यूपी एसटीएफ का गठन किया गया। जिसके बाद एसटीएफ ने श्री प्रकाश का एनकाउंटर किया।