केरल में विधानसभा चुनाव संपन्न होने के बाद अब सब की नजरें 19 मई को होने वाली मतगणना पर टिक गई हैं और सब के जेहन में यही सवाल है कि क्या केरल फिर अपना इतिहास दोहराएगा, जहां हर पांच साल के अंतराल में सत्ता यूडीएफ और एलडीएफ के पास जाती रहती है। चुनाव विश्लेषक ही नहीं, बल्कि देशभर के लोग केरल के विधानसभा चुनाव परिणामों का बड़ी उत्सुकता से इंतजार करते हैं। इस बार भी ऐसा ही है। लोगों की जुबान पर यही सवाल है कि क्या इस बार भी राज्य में सत्ता कांग्रेस नीत यूडीएफ के हाथों से निकलकर विपक्षी माकपा नीत एलडीएफ के पास जाएगी। क्योंकि चुनाव बाद सर्वेक्षण भी कुछ ऐसा ही संकेत देते नजर आते हैं। लोगों की निगाह भाजपा पर भी है, जिसने केरल में अपना खाता खोलने के लिए पहली बार पूरा दमखम झोंक दिया है।
केरल में 140 विधानसभा सीटों के लिए 16 मई को हुए विधानसभा चुनाव में 2.61 करोड़ मतदाताओं में से 71.7 फीसद ने मतदान किया है। कांग्रेस नीत यूडीएफ जहां सत्ता अपने हाथ में बरकरार रहने की जीतोड़ कोशिश में लगा रहा और राज्य में नया इतिहास बनाने का दावा कर रहा है, वहीं माकपा नीत एलडीएफ केरल में ‘एक बार यूडीएफ तो एक बार एलडीएफ’ की सरकार बनने के राज्य के चुनावी इतिहास की पुनरावृत्ति की उम्मीद में है। एग्जिट पोल से मिले संकेतों ने भी एलडीएफ के विश्वास को मजबूत करने का काम किया है। भाजपा को भी इस बार केरल में अपना खाता खुलने की उम्मीद है, जिसने राज्य में श्री नारायण धर्म परिपालन योगम (एसएनडीपी) द्वारा संचालित नवनिर्मित पार्टी ‘भारत धर्म जन सेना’ (बीडीजेएस) के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा है। एसएनडीपी पिछड़े एझावा समुदाय का संगठन है, जिसका कुछ क्षेत्रों में अच्छा प्रभाव है।
राज्य में दो महीने तक चले तूफानी चुनाव प्रचार अभियान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित कई राष्ट्रीय नेता अपने-अपने दलों का प्रचार करने के लिए पहुंचे। मोदी के केरल की तुलना सोमालिया से करने संबंधी टिप्पणी को लेकर जहां विवाद हुआ, वहीं भाजपा ने उनकी टिप्पणी का बचाव किया। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और एके एंटनी और गुलाम नबी आजाद जैसे वरिष्ठ कांग्रेस नेता भी अपनी पार्टी के प्रचार के लिए केरल पहुंचे। माकपा महासचिव सीताराम येचुरी, भाकपा के राष्ट्रीय सचिव सुधाकर रेड्डी, पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जैसे जाने-माने नेताओं ने भी संबंधित दलों और उम्मीदवारों के पक्ष में प्रचार किया।
इन नेताओं के अतिरिक्त भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, कुछ केंद्रीय मंत्रियों, माकपा पोलित ब्यूरो के सदस्य प्रकाश करात, बृंदा करात और जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार ने भी चुनाव प्रचार में सक्रियता से भाग लिया। केरल में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को भी कुछ जनसभाओं को संबोधित करना था, लेकिन अस्वस्थ होने की वजह से वे ऐसा नहीं कर पाए। एलडीएफ के 93 वर्षीय नेता वीएस अच्युतानंदन ने अपनी उम्र की परवाह न करते हुए भीषण गर्मी में चुनाव प्रचार में भाग लिया और पलक्कड़ जिले में अपने निर्वाचन क्षेत्र मालमपुझा सहित राज्य के अन्य क्षेत्रों में भी चुनावी सभाओं को संबोधित किया।
शेष भारत में अपनी कमजोर स्थिति और 2014 के लोकसभा चुनाव में करारी हार के चलते केरल में सत्ता बचाए रखना कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न है, वहीं माकपा नीत एलडीएफ के लिए भी यह प्रतिष्ठा की लड़ाई है। क्योंकि मार्क्सवादी मोर्चे की अब केवल, त्रिपुरा में ही सरकार रह गई है। 2014 के लोकसभा चुनाव में तूफानी जीत के बाद दिल्ली विधानसभा और बिहार विधानसभा चुनाव में हार देख चुकी भाजपा के लिए भी केरल विधानसभा में अपनी मौजूदगी दर्ज कराना काफी अहम माना जा रहा है। राज्य विधानसभा चुनाव में 109 महिला उम्मीदवारों सहित कुल 1,203 उम्मीदवारों ने भाग्य आजमाया है। फिलहाल उम्मीदवारों की किस्मत ईवीएम रूपी पिटारे में बंद है, जो 19 मई को खुलेगा।