Ganesh Chaturthi: कर्नाटक राज्य वक्फ बोर्ड ने बेंगलुरू के ईदगाह मैदान में गणेश चतुर्थी कार्यक्रम की अनुमति देने वाले हाई कोर्ट के हालिया आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। इस मामले का जिक्र करते हुए अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा था कि 1964 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि बैंगलोर के नगर निगम का इस पर कोई अधिकार नहीं है। CJI ललित की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि “दिन के दौरान दोषों को दूर करने के अधीन इस विशेष अनुमति याचिका को उपयुक्त न्यायालय के समक्ष सूचीबद्ध किया जाए।”

दरअसल, मामला कर्नाटक हाई कोर्ट के हालिया आदेश से संबंधित है। जिसमें कोर्ट की एक खंडपीठ ने एकल न्यायाधीश की पीठ के आदेश को संशोधित किया। साथ ही राज्य सरकार को उपायुक्त द्वारा प्राप्त आवेदनों पर विचार करने और उचित आदेश पारित करने की अनुमति दी, जिसमें ईदगाह मैदान को सीमित अवधि के लिए धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों को आयोजित करने की मांग की गई थी।

वक्फ बोर्ड ने हाई कोर्ट के आदेश पर उठाए थे सवाल

इससे पहले कर्नाटक हाई कोर्ट के सामने राज्य सरकार ने कर्नाटक राज्य वक्फ बोर्ड की तरफ से दायर याचिका में 25 अगस्त को एकल न्यायाधीश की पीठ द्वारा पारित अंतरिम आदेश पर सवाल उठाते हुए एक अपील दायर किया था। जिसमें उसने पक्षों को भूमि का उपयोग करने से रोक दिया था। कोर्ट ने कहा था कि इन उद्देश्यों के अलावा किसी अन्य उद्देश्य के लिए भूमि का इस्तेमाल तनाव पैदा करेगा।

  1. राज्य सरकार/बीबीएमपी को इस भूमि पर स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस मनाने की अनुमति है। उन्होंने कहा कि “एकल न्यायाधीश ने यथास्थिति प्रदान की, खंडपीठ ने अगले दिन कहा कि कोई भी कुछ भी कर सकता है। अनावश्यक तनाव पैदा होगा।
  2. विवादित भूमि का इस्तेमाल सार्वजनिक खेल के मैदान के रूप में जारी रखा जा सकता है।
  3. मुस्लिम समुदाय के सदस्य रमज़ान और बकरीद त्योहारों के दिनों में ज़मीन पर नमाज़ अदा करना जारी रख सकते हैं. हालांकि किसी अन्य दिन नमाज़ अदा करने की अनुमति नहीं है।

धार्मिक सहिष्णुता का सिद्धांत भारतीय सभ्यता की विशेषता है

वहीं इसे कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे और न्यायमूर्ति एस विश्वजीत शेट्टी की खंडपीठ ने संशोधित किया, जिसमें कहा गया था कि- “भारतीय समाज में धार्मिक, भाषाई, क्षेत्रीय या अनुभागीय विविधताएं शामिल हैं। भारत का संविधान समाज के कई वर्गों के बीच भाईचारे को बढ़ावा देता है। धार्मिक सहिष्णुता का सिद्धांत भारतीय सभ्यता की विशेषता है। इसलिए, इस स्तर पर हम मामले के अजीबो-गरीब तथ्य के अंतरिम आदेश को संशोधित करें और राज्य सरकार को उपायुक्त की तरफ से प्राप्त आवेदनों पर विचार करने और उचित आदेश पारित करने की अनुमति दें, जिसमें सीमित अवधि के लिए धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों को आयोजित करने के लिए जमीन का इस्तेमाल करने की मांग की गई है।”