Karnataka Hijab Row: कर्नाटक हिजाब मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सोमवार (5 सितंबर) को सुनवाई हुई। जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धुलिया की बेंच में सुनवाई हुई। मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि हर सार्वजनिक जगह में कोई न कोई ड्रेस कोड होता है। यह देखने की ज़रूरत है क्या स्कूल-कॉलेज में तय ड्रेस कोड का पालन न करते हुए वहां हिजाब पहनने को सही कहा जा सकता है।

दुपट्टे को सिर पर ओढ़ने में क्या समस्या: दोपहर 2 बजे सुनवाई शुरू हुई। हिजाब का समर्थन कर रहे याचिकाकर्ताओं की तरफ से सबसे पहले वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े ने पक्ष रखना शुरू किया। उन्होंने राज्य सरकार की शक्ति पर सवाल उठाया। हेगड़े ने यह भी कहा कि अधिकतर जगहों पर सलवार-कमीज और दुपट्टा यूनिफॉर्म है। अगर कुछ लड़कियां उसी दुपट्टे को सिर पर ओढ़ लें, तो इसमें क्या समस्या है?

जिस पर जस्टिस गुप्ता ने सवाल किया कि यहां ईसाईयों द्वारा चलाए जा रहे कई स्कूल हैं? क्या वे हिजाब की अनुमति दे रहे हैं? जिस पर अटॉर्नी जनरल ने कहा कि नहीं वे नहीं दे रहे हैं। वहीं, संजय हेगड़े ने कहा कि कुछ अनुमति दे रहे हैं।

कुल 23 याचिकाओं पर सुनवाई हो रही है। कर्नाटक हाईकोर्ट में हिजाब बैन को चुनौती देने वाली 6 मुस्लिम छात्राओं ने भी याचिका दाखिल की है। 15 मार्च को कर्नाटक हाई कोर्ट ने राज्य के स्कूल-कॉलेज में यूनिफॉर्म के पालन के सरकारी आदेश को सही ठहराया था। हाई कोर्ट ने यह भी कहा था कि लड़कियों का हिजाब पहनना इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है।

सुनवाई टालने का अनुरोध: सोमवार दोपहर 12 बजे के करीब जब मामला शुरू हुआ, तो फिर से सुनवाई टालने का अनुरोध किया गया। जिसके लिए वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे और राजीव धवन ने अजीबोगरीब दलील दी। उन्होंने कहा कि आज कोर्ट में भीड़ बहुत है। इससे सुनवाई में असुविधा होगी। बेंच के अध्यक्ष जस्टिस हेमंत गुप्ता ने मुस्कुराते हुए कहा कि सुनवाई दोपहर 2 बजे की जाएगी। उस समय भीड़ कम होगी।

आदेश का उद्देश्य यूनिफ़ॉर्म का पालन: सुनवाई के दौरान जस्टिस धूलिया ने कहा कि मान लीजिए कोई अल्पसंख्यक संस्था है, तो हिजाब हो सकता है? जिसका जवाब देते हुए अटॉर्नी जनरल ने कहा कि हो सकता है। हमने इसे संस्थान पर छोड़ दिया है। कर्नाटक में, हिजाब की अनुमति देने वाले इस्लामी प्रबंधन संस्थान हो सकते हैं। सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं है। उन्होंने कहा कि सरकार के आदेश में बहुत खुशी की बात नहीं है, लेकिन आदेश का उद्देश्य निर्धारित यूनिफ़ॉर्म का पालन करना है।

एजी ने कहा कि सरकार के इस आदेश से छात्रों के अधिकारों का हनन नहीं होता है। हम यह नहीं कह रहे हैं कि हिजाब मत पहनो या हिजाब मत पहनो। हम किसी भी तरह से नहीं कहते हैं। हम केवल इतना कहते हैं कि निर्धारित यूनिफ़ॉर्म का पालन करें।

शिक्षा संस्थानों में धार्मिक प्रतीकों की जगह: सुप्रीम कोर्ट में हिजाब मामले पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट संजय हेगड़े और राजीव धवन ने कहा, “ये मामला संविधान पीठ के सामने जाना चाहिए। शिक्षा संस्थानों में ड्रेस कोड के साथ धार्मिक प्रतीकों की भी जगह है। ड्रेस कोड के साथ लाखों लड़कियां हिजाब पहनती हैं, कई संस्थानों में सिख छात्र पगड़ी पहनते हैं, तब कोई ड्रेस कोड का उल्लंघन नहीं माना जाता।”

प्राचीन भारतीय सभ्यता का हिस्सा हिजाब: राजीव धवन ने कहा कि स्कार्फ भी ड्रेस कोड का हिस्सा होना चाहिए। कोई उसे उतारने को न कहे। इस पर भी कोर्ट विचार करे। दुनिया भर में और प्राचीन भारतीय सभ्यता का हिस्सा रहा है हिजाब। केरल हाईकोर्ट ने भी अपने एक फैसले में हिजाब को मान्यता दी है। इस पर जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कहा कि सवाल ये भी हो सकता है कि हिजाब पहनना धर्म का अनिवार्य हिस्सा है या नहीं। अगर सरकार इस पर नियम तय करती है तो भी देश का संविधान कहता है कि ये धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है।

जजों ने यह भी कहा कि नियम तय करने से राज्य को नहीं रोका जा सकता है। कर्नाटक सरकार की तरफ से एडिशनल सॉलिसीटर जनरल के एम नटराज ने कहा, “धर्म के नाम पर शिक्षा संस्थान का अनुशासन तोड़ने की अनुमति नहीं दी जा सकती।” सुनवाई के अंत में कोर्ट ने 7 सितंबर को दोपहर 2 बजे इसे जारी रखने की बात कही। बुधवार को दूसरे वकीलों को सुना जाएगा।