जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) छात्र संघ चुनाव में शुक्रवार को 70 फीसद मतदान हुआ। पिछले साल की तुलना में इस बार तीन फिसद कम मतदान हुआ है। इस वर्ष कुल 7,906 छात्र मतदाता हैं जिनमें 57 फीसद पुरुष और 43 फीसद महिलाएं शामिल हैं। छात्रसंघ चुनाव समिति के सूत्रों ने यह जानकारी दी।
शुक्रवार को भी परिसर का माहौल पूरी तरह से चुनावी रंग में रंगा रहा
दरअसल स्कूल आफ लैंग्वेज में मतदान की प्रक्रिया देरी से हुई, लिहाजा वहां मतदान का समय भी बढ़ाया गया। मतगणना शुक्रवार देर रात से शुरू हुई और परिणाम 28 अप्रैल तक आने की उम्मीद है। जेएनयू छात्रसंघ चुनाव में मतदान के लिए अलग-अलग स्कूलों में 17 मतदान केंद्र बनाए गए थे। जिनमें इस साल, 7,906 छात्रों को मतदान करना था। बहरहाल, मतदान को लेकर शुक्रवार को भी परिसर का माहौल पूरी तरह से चुनावी रंग में रंगा रहा। स्कूल आफ इंटरनेशनल स्टडीज से लेकर स्कूल आफ लैंग्वेज, लिटरेचर एंड कल्चर स्टडीज तक हर कोना छात्रों की चहल-पहल से गुलजार रहा। इस दौरान छात्र-छात्राओं में उत्साह देखने को मिला। एबीवीपी, वाम-यूनाइटेड पैनल और वाम अंबेडकरराइट यूनाइटेड पैनल के अलावा बापसा और समाजवादी छात्र सभा के कार्यकर्ता भी मतदान केंद्रों पर अपने उम्मीदवारों का उत्साह बढ़ाते रहे।
इस बार मुकाबला कड़ा और ध्रुवीकृत है। आठ साल बाद बने नए गठबंधन ने परिसर में पुरानी लड़ाई की रेखाओं को फिर से खींच दिया है। इस साल के चुनाव में बड़े पैमाने पर पुनर्गठन हुआ है और लंबे समय से चली आ रही वामपंथी गठबंधन बिखर गया। आल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन ने डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स फेडरेशन के साथ गठबंधन किया है, जबकि स्टूडेंट्स फेडरेशन आफ इंडिया ने बिरसा अंबेडकर फुले स्टूडेंट्स एसोसिएशन, आल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन और प्रोग्रेसिव स्टूडेंट्स एसोसिएशन के साथ मिलकर एक अलग मोर्चा बनाया है।
करीब आठ साल बाद वाम दलों का गठबंधन टूटा है। दरअसल, 2016 से लेकर अब तक आइसा, एसएफआइ, डीएसएफ, पीएसए सहित तमाम लेफ्ट आर्गेनाइजेशन यूनाइटेड लेफ्ट फ्रंट के बैनर तले गठबंधन में चुनाव लड़ते थे। लेकिन इस बार यह गठबंधन टूट गया है। ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि इस बार इस टूट का फायदा किसी न किसी सीट पर एबीवीपी को मिल सकता है।
2024 के चुनाव में 73 फीसद मतदान हुआ था। जोकि पिछले 12 वर्षों में सबसे अधिक था। 2020 से 2023 तक जेएनयू में चुनाव नहीं हुए थे। जबकि जेएनयू में 2019 में 67.9 फीसद, 2018 में 67.8 फीसद, 2016-17 में 59 फीसद, 2015 में 55 फीसद, 2013-14 में 55 फीसद और 2012 में 60 फीसद मतदान हुआ था। पिछले चुनाव में चारों सीटों अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिव और संयुक्त सचिव पर वामपंथी संगठनों ने जीत हासिल की थी। वहीं अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) को हार का सामना करना पड़ा था। 2973 वोट पाकर धनंजय छात्रसंघ अध्यक्ष बने थे।
उन्होंने एबीवीपी के उमेश चंद्र अजमीरा से करीब तीन गुणे वोट मिले थे। उपाध्यक्ष पद पर अविजीत घोष ने एबीवीपी से लगभग दोगुणे वोट पाकर दीपिका शर्मा को हराया था। इसके अलावा सचिव पद पर वाम संगठन की प्रियांशी आर्य जीतीं थी। जबकि संयुक्त सचिव के पद पर वाम के ही मोहम्मद साजिद ने एबीवीपी के गोविंद दांगी को हरा कर सफलता पाई थी।