झारखंड के सिमडेगा में स्थित संतोषी के परिवार क् घर का दृश्य अब बदला-बदला है। संतोषी की चचेरी बहन सोनी आम की चटनी बना रही है, जबकि दूसरी बहन गोपी घर के बाहर बैठकर भात खा रही है। महज 9 महीने पहले की बात है। संतोषी ने भात-भात कहते हुए दम तोड़ दिया था। हालांकि झारखंड सरकार अभी इसे मानने को तैयार नहीं है कि 14 साल की संतोषी की मौत भूख से हुई थी। इस घटना के बाद संतोषी के परिवार में काफी कुछ बदला है। मिट्टी के एक कमरे के इस मकान में अब टीन का दरवाजा लग गया है, मजबूती के लिए इस दरवाजे को लोहे के फ्रेम में फिट कर दिया गया है। सरकार ने घर में एलपीजी का क्नेक्शन लगवा दिया है, टॉयलेट बन गई है, हालांकि पानी अभी भी लाना पड़ता है। राशन का अनाज देने वाले सरकारी डीलर का दुकान अब नजदीक है। वहां से वक्त पर अनाज मिलता है और इस परिवार की जिंदगी की गाड़ी जैसे-तैसे चल पड़ी है।
संतोषी की सबसे छोटी बहन चांदो कहती है कि पहले वे लोग रोज खाना नहीं खाती थी, लेकिन अब रोज खाना मिलता है और ‘सब कुछ’ मिलता है, कभी-कभी घर में दाल भी पकती है। संतोषी की मां कोयली देवी ने मजदूरी करना छोड़ दिया है, जबकि उसकी बड़ी बहन जानकी देवी (22) कभी-कभी गांव में लगने वाले हटिया में भी जाती है, सब्जी, साग, चावल और आलू खरीदने के लिए। 9 महीने पहले सिमडेगा के करिमाती गांव में संतोषी की मौत हो गई थी। सरकार कहती है कि संतोषी की मौत बीमारी की वजह से हुई थी। लेकिन पता चला है कि तब सरकारी डीलर ने परिवार को अनाज देने से ये कहते हुए मना कर दिया था कि उनका राशन कार्ड आधार से नहीं जुड़ा है।
संतोषी की बहन जानकी देवी का कहना है कि जिंदगी अभी भी आसान नहीं है, लेकिन नियमित समय पर राशन मिलते रहने से भूखे पेट सोने की नौबत नहीं आती है। इसके अलावा जब इन्हें काम नहीं मिलता है तो सरकारी एजेंसियां मदद करती है। संतोषी की मौत से पहले उसकी मां कोयली और बड़ी बेटी गुडिया जंगल जाकर लकड़ियां चुनती और उसे नजदीक के बाजार लाचागढ़ में बेच देती। बमुश्किल 100 रुपये की उनकी कमाई होती, इससे हर दो या तीन दिन का जुगाड़ होता लेकिन फिर से फाकाकशी की नौबत आ जाती। संतोषी के पिता मानसिक रूप से बीमार हैं। लिहाजा उनसे कोई उम्मीद नहीं है। इस वक्त कोयली और गुडिया अपनी बीमारी का इलाज कराने एक रिश्तेदार के घर गये हैं। उनकी गैरहाजिरी में जानकी बताती है कि उन्हें सरकार से मुआवजे में मिले 50 हजार रुपये और दूसरी संस्थाओं से मिले 15 हजार रुपये का क्या हुआ, इसकी जानकारी नहीं है। तब अधिकारी कोयली को लेकर बैंक गये थे और उसका खाता खुलवाया था। जानकी का कहना है कि उसका पैसा बैंक में ही पड़ा है और वह अपने पैसे से मोबाइल फोन खरीदना चाहती है। अब इस परिवार को उम्मीद है कि सरकार की ओर से उन्हें एक पक्का मकान मिल जाए। ताकि उनकी रहने की समस्या खत्म हो जाए।