Activist Rose Kerketta: लेखिका, प्रख्यात शिक्षाविद, झारखंड आंदोलन की एक्टिविस्ट और महिला मानवाधिकारों की प्रबल समर्थक डॉ. रोज केरकेट्टा का 17 अप्रैल को 84 साल की उम्र में निधन हो गया। केरकेट्टा झारखंड आंदोलन की मुखर आवाजों में से एक थीं और इस आंदोलन की वजह से ही साल 2000 में झारखंड राज्य का गठन हुआ था।

5 दिसंबर, 1940 को कैसरा गांव में डॉ. केरकेट्टा का जन्म हुआ था। वह खारिया आदिवासी समुदाय से आती थीं और उन्होंने अपना जीवन आदिवासी भाषाओं और संस्कृति के संरक्षण के लिए समर्पित कर दिया था।

डॉ. केरकेट्टा ने झारखंड के जल, जंगल और जमीन के लिए जीवन भर संघर्ष किया। उन्होंने जीवन में कमजोर लोगों की आवाज उठाई और जमीन के अधिकार, तस्करी और डायन प्रथा जैसे मुद्दों पर भी काम किया।

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झारखंड आंदोलन में हुईं शामिल

डॉ. केरकेट्टा 1980 के दशक के अंत में तब झारखंड आंदोलन में शामिल हुईं, जब आंदोलन में नेतृत्व की कमी महसूस की जा रही थी। डॉ. केरकेट्टा ने कई महत्वपूर्ण रचनाएं लिखीं, जिनमें ‘खारिया लोक कथाओं का साहित्यिक और सांस्कृतिक अध्ययन’, ‘प्रेमचंदाओ लुडको’ (प्रेमचंद की एक कहानी का खारिया अनुवाद) और ‘सिंको सुलोलो’- खारिया कहानियों का संग्रह शामिल हैं।

डॉ. केरकेट्टा के योगदान की वजह से उन्हें कई साहित्यिक पुरस्कार मिले। 1967 में सिमडेगा कॉलेज में लाइब्रेरियन के रूप में उन्होंने अपना करियर शुरू किया और फिर पटेल मोंटेसरी स्कूल में पढ़ाया। वह सिसई कॉलेज में हिंदी की प्रोफेसर भी बनीं। 1981 में वह रांची विश्वविद्यालय में खारिया भाषा की प्रोफेसर बनीं।

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सीएम सोरेन ने जताया दुख

रांची में स्थित Institution of Community Forest Governance के निदेशक संजय बसु मल्लिक ने कहा, “वह आधी दुनिया नामक मासिक पत्रिका की संपादक थीं। वह वास्तव में विद्रोही थीं।” मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने उनके निधन पर शोक जताया और कहा कि उनका जाना साहित्य जगत और आदिवासी समुदाय के लिए एक बड़ा नुकसान है।

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