नीतीश कुमार की पार्टी जदयू फिलहाल एनडीए का हिस्सा हैं। 12 सांसदों के साथ जदयू एनडीए की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी है। अब साल 2027 में होने वाले यूपी विधानसभा चुनाव और इस साल के अंत होने वाले झारखंड विधानसभा को लेकर जदयू ने तैयारियां शुरू कर दी हैं। जदयू नेताओं का कहना है कि वो इन दोनों राज्यों में अपना बेस बढ़ाकर एनडीए को मजबूत करना चाहती है।

जदयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता केसी त्यागी ने कहा कि उनकी पार्टी अपना वोटर बेस बढ़ाकर एनडीए के जीतने के चांस और बढ़ाना चाहती है। उन्होंने कहा, “हमने पहले भी एक साथ चुनाव लड़ा है। साल 2020 में दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने हमें दो सीटें दी थीं। इस बार हम एनडीए के घटक दल के तौर पर झारखंड, दिल्ली और यूपी में चुनाव लड़ सकते हैं।”

केसी त्यागी ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि जैसे अटल बिहारी वाजपेयी के युग में बीजेपी को जदयू से फायदा हुआ है, वैसा ही फायदा बीजेपी अब भी ले सकती है। उन्होंने कहा कि हम उम्मीद करते हैं कि यूपी में वर्तमान सामाजिक-सियासी हालातों को देखते हुए जदयू को एनडीए में शामिल किया जाएगा। 

लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद ही जदयू ने शुरू किया काम

जदयू ने यूपी में अपना बेस बढ़ाने के लिए लोकसभा चुनाव परिणाम के चार दिन बाद छह जून को काम शुरू कर दिया था। जदयू ने यूपी में अनूप पटेल को अपना प्रदेश अध्यक्ष बनाया है और उन्हें राज्य के सभी जिलों में पार्टी की ईकाई बनाने के लिए कहा है। पिछले कुछ हफ्तों में जदयू ने शाहजहांपुर, बदायूं, गाजियाबाद, रामपुर, मिर्जापुर, भदोही और गाजीपुर में जिला अध्यक्ष नियुक्त किए हैं।

अनूप पटेल ने द इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा कि पार्टी अगले दो महीने में राज्य के सभी जिलों में जिला अध्यक्ष नियुक्त करने वाली है। कई जगहों पर नए अध्यक्ष नियुक्त किए गए हैं जबकि कई जिलों में पुराने अध्यक्षों को फिर से जिम्मेदारी दी गई है।

बीजेपी को हुए नुकसान में फायदा खोज रही जदयू?

क्योंकि जदयू लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद यूपी में एक्टिव हुई है, इसलिए जानकारों का मानना है कि वो बीजेपी को हुए नुकसान में फायदा खोज रही है। यूपी में बीजेपी इस बार सिर्फ 33 लोकसभा सीटें ही जीत सकी जबकि इंडिया गठबंधन ने 43 सीटों पर परचम फहराया। बीजेपी को हुए नुकसान की वजह यूपी में नॉन यादव ओबीसी वोटर का सपा की तरफ शिफ्ट होना माना जा रहा है।

यूपी में एनडीए में बीजेपी के साथ चार अन्य पार्टियां शामिल हैं। इन दलों में अनुप्रिया पटेल की पार्टी अपना दल सोनेलाल, ओपी राजभर की पार्टी सुभसपा, जयंत चौधरी की पार्टी रालोद और संजय निषाद की पार्टी निषाद पार्टी शामिल हैं। माना जाता है कि बीजेपी के इन सहयोगियों की ओबीसी वोटर के बीच अच्छी खासी पैठ है।

कुर्मी वोटरों पर जदयू की नजर

जदयू के एक नेता ने बताया कि हाल में हुए लोकसभा चुनाव में कुर्मी वोटरों का एक बड़ा हिस्सा एनडीए से टूटकर इंडिया गठबंधन की तरफ चला गया है। बीजेपी कुर्मी वोटरों के लिए अपना दल सोनेलाल पर ही निर्भर रही, अगर यहां जदयू को भी कुछ सीटें मिलतीं तो परिणाम और बेहतर हो सकता था।

यूपी में जदयू ने अपने कार्यकर्ताओं और टिकट के इच्छुक नेताओं से विधानसभा चुनाव की तैयारियां शुरू करने के लिए कह दिया है। अनूप पटेल ने कहा कि पार्टी चाहती है कि यूपी में पचास से ज्यादा विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा जाए। उन्होंने यह भी कहा कि उनकी पार्टी बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व से कटेहरी विधानसभा सीट की मांग करेगी। इस सीट पर उपचुनाव होना है।

कटेहरी विधानसभा सीट यूपी की उन दस सीटों में शामिल है, जहां उपचुनाव होने हैं। कटेहरी से सपा विधायक लालजी वर्मा अंबेडकर नगर लोकसभा सीट से चुनाव जीते हैं। कुर्मी बहुल्य इस सीट पर जदयू चुनाव लड़ना चाहती है। कुर्मियों को जदयू का समर्थक माना जाता है। जदयू चीफ और बिहार के सीएम नीतीश कुमार इसी समुदाय से आते हैं।

पूर्वी और मध्य यूपी में कई सीटों पर निर्णायक भूमिका में कुर्मी वोटर

कुर्मी वोटरों को यूपी ईस्ट और सेंट्रल में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। यहां अपना दल सोनेलाल का प्रभाव है। इसके अलावा बुंदेलखंड में भी कुर्मी वोटरों की अच्छी तादाद है। खेतीबाड़ी के काम से जुड़ा यह समुदाय यूपी, बिहार, ओडिशा, महाराष्ट्र, गुजरात, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और झारखंड में अच्छी खासी तादाद में है। साल 2001 में उस समय यूपी के सीएम राजनाथ सिंह द्वारा बनाई गई सोशल जस्टिस कमेटी के अनुसार, यूपी में जनसंख्या में ओबीसी जाति करीब 43.13% है। इसमें से कुर्मी जाति 7.46% के आसपास है।

यूपी में दो लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती थी जदयू

लोकसभा चुनाव 2024 से पहले जदूय ने बीजेपी से यूपी में जौनपुर औऱ फूलपुर लोकसभा सीट की डिमांड की थी, जिसे बीजेपी ने नाकार दिया था। अनूप पटेल ने कहा कि क्योंकि बीजेपी ने तो यूपी में हमसे समर्थन मांगा और न ही हमारे नेताओं को कैंपेन में बुलाया इसलिए वो सभी बिहार में जदयू के प्रत्याशियों के लिए कैंपेन करने चले गए।

आपको बता दें कि साल 2022 में बीजेपी से बात न बनने के बाद जदयू ने अकेले 27 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा था लेकिन वह खाता खोलने में असफल रही थी। पिछले महीने जदयू में हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में जदयू ने झारखंड में अपनी इच्छित सीटों की पहचान करने तथा उन पर विशेष ध्यान देने का प्रस्ताव पारित किया।