सुशील राघव
कहते हैं कि ‘दीवारों के भी कान होते हैं’ लेकिन जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) की दीवारें तो ‘बोलती’ थीं। ये आंदोलनों में भाग लेतीं और हर आने जाने वाले को संघर्ष का संदेश देती थीं लेकिन अब ऐसा नहीं है। दरअसल, जेएनयू प्रशासन की ओर से स्वच्छता को देखते हुए विश्वविद्यालय में मौजूद भवनों की दीवारों पर कुछ भी लिखने या पोस्टर लगाने को प्रतिबंधित कर दिया है।
स्वच्छ जेएनयू के निदेशक प्रोफेसर पीके जोहरी की ओर से जारी एक परिपत्र में कहा गया है कि दिल्ली संपत्ति विरूपित रोकथाम अधिनियम 2007 और जेएनयू कार्यकारी परिषद (ईसी) की 13 मार्च 2018 को हुई बैठक में लिए गए निर्णय के प्रकाश में पहले 10 जून 2019 और फिर 1 जुलाई 2019 को विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से दीवारों पर गंदा नहीं करने के संबंध में परिपत्र जारी किए जा चुके हैं। इसमें जेएनयू के सभी लोगों से कहा गया है कि वे अपने पोस्टर आदि को नियत स्थान पर लगाएं। इन नियमों को नहीं मानने वालों के खिलाफ दिल्ली संपत्ति विरूपित रोकथाम अधिनियम 2007 और विश्वविद्यालयों के नियमों के अनुसार कार्रवाई की जाएगी। विश्वविद्यालय प्रशासन का यह फरमान विद्यार्थियों को रास नहीं आ रहा है और उन्होंन इस निर्णय के खिलाफ आंदोलन करने को फैसला किया है।
जेएनयू छात्र संघ अध्यक्ष एन साई बालाजी ने कहा कि दीवारें गरीबों की किताबें होने के साथ साथ समाज का आईना होती हैं। जेएनयू के विद्यार्थी किताबों के साथ इन दीवारों से भी अपनी पढ़ाई करते हैं। उन्होंने कहा कि 40 साल से जारी जेएनयू की इस परंपरा को एक झटके में कैसे खत्म किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि इन दीवारों पर कई विद्यार्थियों ने अपनी एमफिल-पीएचडी की है और जेएनयू प्रशासन उन्हीं दीवारों को सूना करने पर आमादा है। जेएनयू में एबीवीपी के अध्यक्ष दुर्गेश कुमार ने कहा कि जेएनयू प्रशासन अचानक एक तानाशाही निर्णय कैसे कर सकता है। उन्होंने छात्र संघ पर आरोप लगाया कि उनकी वजह से आज यह स्थिति विश्वविद्यालय के सामने आई है। उन्होंने छात्र संघ से सवाल भी किया कि 2015 के बाद दीवारों पर नए पोस्टर क्यों नहीं लगाए गए?
जेएनयू के विद्यार्थी और शिक्षक रहे प्रोफेसर आनंद कुमार ने बताया कि दीवारों पर पोस्टर लगाने और कार्टून बनाने की परंपरा विश्वविद्यालय के शुरुआती सालों से ही है। उन्होंने बताया कि हमारे युवा बुद्धिजीवी इन पोस्टर और कार्टून के माध्यम से समसामयिक प्रश्न उठाते हैं और यह परंपरा पांच दशकों से लगातार जारी है। विद्यार्थी इन दीवारों पर पोस्टरों के माध्यम से प्रमुख विचारकों, मुद्दों और आंदोलनों की बातों को लोगों के सामने रखते हैं। इन पोस्टरों में अश्लीलता, हिंसा, जातिवाद, सांप्रदयिकता या राष्ट्रविरोधी विचारों को जगह नहीं मिलती। एक मायने में तो ये पोस्टर विश्वविद्यालय की शोभा हैं। अगर कोई व्यक्ति इन पोस्टरों को गंदगी से जोड़ता है तो मुझे उसकी सोच और निर्णय पर चिंता होती है। प्रोफेसर कुमार ने कहा कि इन दीवारों से हमें ज्ञान और चेतना मिलती है। इनसे आतंकित होने की कोई जरूरत नहीं है।

