जम्मू – कश्मीर के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद पहली बार सार्वजनिक रूप से नजर आई पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने आज कहा कि उनकी पार्टी को तोड़ने के केंद्र के किसी भी प्रयास के बेहद खतरनाक परिणाम होंगे। भाजपा राज्य में पीडीपी के गठबंधन से अलग हो गई थी और उसने महबूबा की सरकार से समर्थन वापस ले लिया था जिसके बाद 19 जून को उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था। उन्होंने श्रीनगर में संवाददाताओं से कहा ,‘‘ मेरी पार्टी मजबूत है। मतभेद हैं जिन्हें सुलझा लिया जाएगा। यदि पीडीपी को तोड़ने के प्रयास हुए , जैसा 1987 में हुआ था जब लोगों के वोटों पर डाका डाला गया था और एमयूएफ (मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट) को कुचलने के प्रयास हुए थे , तो इसके परिणाम बेहद खतरनाक होंगे। ’’ महबूबा ने वर्ष 1987 के विधानसभा चुनाव के बाद हुए उस घटनाक्रम का याद किया जिसके चलते प्रतिबंधित हिज्बुल मुजाहिदीन का सुप्रीमो सैयद सलाउद्दीन और जेकेएलएफ प्रमुख मोहम्मद यासीन मलिक ‘‘उभरे’’ थे। सलाउद्दीन अब पाकिस्तान में है।

महबूबा ने कहा, ‘‘जिस तरह हर परिवार में मतभेद होते हैं उसी तरह हर दल में भी मतभेद होते हैं जिन्हें सुलझाया जा सकता है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘दिल्ली के दखल के बगैर कोई दरार नहीं आ सकती। वर्ष 1987 में लोगों के वोटों पर डाका डाला गया तो उससे एक सलाउद्दीन और एक यासीन मलिक तैयार हुआ।’’ नक्शबंद साहिब में शहीदों के कब्रिस्तान में शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करने के बाद महबूबा ने संवाददाताओं से बात की। यहां उन लोगों को दफनाया गया है जिन्हें वर्ष 1931 में इसी दिन डोगरा महाराजा हरि सिंह के निरंकुश शासन के खिलाफ प्रदर्शन करने के लिए सैनिकों ने मौत के घाट उतार दिया था। राज्य सरकार के गिरने के बाद पीडीपी के कई विधायक महबूबा के नेतृत्व के खिलाफ मुखर हो गए थे और उन्होंने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री रहने के दौरान महबूबा ने भाई – भतीजावाद तथा पक्षपात किया।

सैयद सलाउद्दीन का इतिहास : सैयद सलाउद्दीन घाटी का कुख्यात आतंकी है। पाकिस्तान की सरपरस्ती में वह जम्मू-कश्मीर में विध्वसंक गतिविधियों को अंजाम देता रहता है। वह सेना पर भी हमले करवाता रहता है। अमेरिका ने भी सलाउद्दीन को ग्लोबल आतंकी घोषित कर रखा है। सलाउद्दीन ने 1987 में जम्मू-कश्मीर विधानसभा का चुनाव लड़ा था। लेकिन वो चुनाव हार गया था। उसका दावा है कि चुनाव में धांधली की गई और उसे धोखा दिया गया है। इसके बाद सलाउद्दीन भारत के खिलाफ हिंसक गतिविधियों में शामिल हो गया।