बीजेपी फिर से चुनावी मोड में है। अबकि बार जम्मू कश्मीर को जीतने के लिए रणनीति बनाई जा रही है। भगवा दल ने पीडीपी और नेशनल कान्फ्रेंस के बागी नेताओं को सहारे घाटी को फतह करने की योजना बनाई है तो उसे यकीन है कि पहाड़ी समुदाय के लोग एसटी स्टेटस से उसके पाले में आ जाएंगे। कश्मीरी पंडितों को वो अपना मान ही रही है। उसे यकीन है कि ओबीसी तबके के लोग आरक्षण से उसके पाले में आएंगे।

दूसरे दलों को कमजोर कर खुद को ताकतवर बनाने की रणनीति के तहत बीजेपी ने जम्मू कश्मीर के लोकल राजनीतिक दलों में सेंध लगानी काफी पहले से शुरू कर दी थी। इसे धार तब मिली जब केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह के छोटे भाई देविंदर सिंह राना ने 2021 में एनसी छोड़कर बीजेपी ज्वाइन की थी। फिलहाल उसके पाले में पीडीपी के कोटे से एमएलसी रहे सुरिंदर चौधरी, एनसी के सुरजीत स्लेथिया, पूर्व मंत्री प्रेम सागर अजीज और अनिल धर जैसे नेता आ चुके हैं।

सूबे के डिप्टी सीएम रह चुके निर्मल सिंह का कहना है कि फिलहाल इस राज्य में एनसी और पीडीपी सिमटते जा रहे हैं तो कांग्रेस के नेता आपस में ही लड़ने में व्यस्त हैं। मजबूत नेताओं को अपने पाले में लाकर बीजेपी खुद को सशक्त बना चुकी है।

अगस्त 2019 में केंद्र ने संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू कश्मीर के विशेष दर्जे को निरस्त करते हुए इसे दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया था। इसके बाद तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों समेत कई नेताओं को नजरबंद कर दिया गया था। अब इन पूर्व मुख्यमंत्रियों को रिहा कर दिया गया है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस महीने के अंत में जम्मू कश्मीर का दौरा करेंगे जो कि अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने के बाद केंद्रशासित प्रदेश की उनकी पहली यात्रा होगी। भारतीय जनता पार्टी के नेता आशीष सूद ने कहा कि प्रधानमंत्री 24 अप्रैल को राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस पर सांबा में स्थानीय निकाय के प्रतिनिधियों के एक सम्मेलन को संबोधित करेंगे।

2019 को विशेष राज्य का दर्जा खत्म करने और दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजन के बाद अब ऐसे अनुमान लगाए जा रहे हैं कि केंद्र की मोदी सरकार भारत प्रशासित जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराने को लेकर तैयारी शुरू करने जा रही है। जम्मू-कश्मीर में ज़िला विकास परिषद (डीडीसी) के चुनावों के बाद यह उम्मीद जताई जा रही थी कि विधानसभा चुनावों की तैयारियां भी जल्द शुरू होंगी लेकिन यह कब तक होगी इसको लेकर चुनाव आयोग को फैसला करना है। परिसीमन के बाद वो इस तरह की कवायद कर सकता है।