रमजान के पवित्र महीने में एक बार फिर से भाईचार और सांप्रदायिक सद्भाव की नई इबारत लिखी गई है। कश्मीर में तैनात सीआरपीएफ के दो जवानों ने अपना रोजा तोड़ते हुए किश्तवार निवासी कैंसर पीड़ित महिला को खून दिया। जवानों ने कश्मीर घाटी के स्थानीय निवासियों की मदद के लिए शुरू ‘मददगार’ योजना के तहत रक्तदान किया। अधिकारियों ने बताया कि किश्तवार निवासी अनिल सिंह ने कुछ दिनों पहले सीआरपीएफ को ‘मददगार’ हेल्पलाइन के जरिये फोन किया था। उन्होंने ल्यूकेमिया से पीड़ित अपनी बहन पूजा देवी के लिए खून की जरूरत बताई थी और अर्धसैनिक बल से इसके लिए मदद की गुहार लगाई थी। अनिल सिंह ने सुरक्षाबल को बताया था कि परिजनों की मदद से उन्होंने दो बोतल खून की व्यवस्था कर ली है, लेकिन अब भी चार बोतल ब्लड की जरूरत है। दरअसल, डॉक्टरों ने कुल छह यूनिट ब्लड की जरूरत बताई थी। श्रीनगर में तैनात सीआरपीएफ के चार जवानों सब-इंस्पेक्टर संजय पासवान, कांस्टेबल रामनिवास, मुदासिर रसूल भट और मोहम्मद असलम मीर बाकी की चार यूनिट खून देने के लिए सामने आए थे। अधिकारियों ने बताया कि रसूल भट और असलम मीर रोजा पर थे, इसके बावजूद उन्होंने रोजा तोड़ कर खून देने का फैसला किया।

बिना कुछ खाए नहीं कर सकते रक्तदान: डॉक्टरों की सलाह के अनुसार, कोई भी व्यक्ति बिना कुछ खाए रक्तदान नहीं कर सकता है। ऐसे में रसूल भट और असलम मीर ने पहले रोजा तोड़ कर खाया और उसके बाद अस्पताल जाकर रक्तदान किया। अधिकारियों ने बताया कि पूजा का शेर-ए-कश्मीर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में इलाज चल रहा है। बता दें कि जम्मू-कश्मीर में तैनात सीआरपीएफ ने स्थानीय लोगों की मदद करने के लिए ‘मददगार’ हेल्पलाइन नंबर (14411) की व्यवस्था की है। यह चौबीसों घंटे चालू रहता है। फोन कॉल्स रिसीव करने के लिए सीआरपीएफ के जवान हमेशा मुस्तैद रहते हैं। एक अधिकारी ने बताया कि तकरीबन दो सप्ताह पहले डोडा जिला निवासी आशिक हुसैन ने मददगार हेल्पलाइन नंबर पर फोन कर मदद की गुहार लगाई थी। उसके नवजात बच्चे के ब्रेन में दिक्कत थी और अविलंब सर्जरी की जरूरत थी। सीआरपीएफ की मदद से नवजात का सरकारी अस्पताल में मुफ्त इलाज किया गया था।