केंद्र ने तमिलनाडु में कुछ शर्ताे के साथ सांड़ों को काबू में करने के खेल जल्लीकट्टू पर चार साल से लगे प्रतिबंध को हटा लिया। इससे पशु अधिकार कार्यकर्ताओं में नाराजगी है और उन्होंने इस खेल को क्रूरतापूर्ण बताते हुए इसके खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में जाने की बात कही। पाबंदी हटाने पर मुख्यमंत्री जयललिता ने केंद्र सरकार का आभार जताया है।
तमिलनाडु में फसलों की कटाई के मौके पर पोंगल के त्योहार से थोड़े ही समय पहले जल्लीकट्टू और देश के अन्य हिस्सों में बैलगाड़ी दौड़ को अनुमति देने का फैसला सरकार ने पशु अधिकार संगठनों के विरोध के बावजूद किया और इस आशय की अधिसूचना जारी कर दी।
पोंगल से ऐन पहले फैसला आने के साथ तमिलनाडु के दक्षिणी जिलों में पटाखे छोड़कर और मिठाइयां बांटकर जश्न मनाया गया। जल्लीकट्टू तमिलनाडु में पोंगल के त्योहार के हिस्से के तौर पर मट्टू पोंगल के दिन आयोजित किया जाता है जिसे एरच्च्थाझुवुथल भी कहा जाता है।
अधिसूचना में कहा गया, केंद्र सरकार इस तरह निर्दिष्ट करती है कि यह अधिसूचना जारी करने की तारीख से प्रभाव के साथ भालू, बंदर, बाघ, तेंदुओं, शेरों और सांड़ों को प्रदर्श पशुओं (परफामर्मिंग एनिमल) के तौर पर प्रदर्शित या प्रशिक्षित नहीं किया जाएगा। इसमें कहा गया, हालांकि किसी समुदाय के रीति-रिवाजों या परंपराओं के तहत तमिलनाडु में जल्लीकट्टू और महाराष्ट्र, कर्नाटक, पंजाब, हरियाणा, केरल और गुजरात में बैलगाड़ी की दौड़ जैसे कार्यक्रमों में सांड़ों को प्रदर्श पशु के तौर पर प्रदर्शित या प्रशिक्षित करना जारी रखा जा सकता है।
हालांकि केंद्र ने कुछ शर्तं भी रखी हैं। शर्तों के अनुसार बैलगाड़ी की दौड़ एक नियमित ट्रैक पर आयोजित करनी होगी जो दो किलोमीटर से लंबा नहीं होगा। जल्लीकट्टू के मामले में सांड़ के घेराव से बाहर जाते ही उसे 15 मीटर की अर्द्धव्यास दूरी के भीतर काबू करना होगा और यह भी सुनिश्चित करना होगा कि पशुपालन और पशु चिकित्सा विभाग के अधिकारियों से सांड़ों की उचित जांच कराई जाए ताकि यह सुनिश्चित हो कि ये पशु कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए अच्छी शारीरिक दशा में हो। सांड़ों को क्षमता बढ़ाने वाली दवाएं देने की भी मंजूरी नहीं है। मुख्यमंत्री जयललिता ने जल्लीकट्टू को मंजूरी देने की उनकी सरकार की अपील पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की त्वरित प्रतिक्रिया के लिए आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा, ‘मैं इस मामले में आपकी त्वरित कार्रवाई के लिए आपकी बहुत आभारी हूं जिससे जल्लीकट्टू का आयोजन संभव होगा। जयललिता ने कहा कि यह खेल तमिलनाडु के परंपरागत सांस्कृतिक मूल्यों और परंपराओं का वाहक है और इसका ऐतिहासिक महत्त्व है।
यूपीए सरकार ने 2011 में इस आधार पर खेल में सांड़ों के इस्तेमाल पर रोक लगा दी थी कि इस खेल में पशुओं के साथ क्रूरता होती है। जल्लीकट्टू और अन्य खेलों को अनुमति देने के केंद्र के फैसले की निंदा करते हुए पेटा इंडिया ने कहा है क्रूरता के खिलाफ संरक्षण हटाना राष्ट्र के लिए एक ‘काला धब्बा’ है। पीपुल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट आॅफ एनिमल्स (पेटा) इंडिया ने कहा कि भाजपा समर्थक भी इस बात को लेकर चिंतित हैं कि जो लोग पशुओं के शुभचिंतक होने का दावा करते थे वे अब उन पर क्रूरता होने दे रहे हैं जबकि सर्वोच्च न्यायालय ने इस पर प्रतिबंध लगाया था। पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने फैसले को सही ठहराते हुए कहा था कि समुदायों की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक गतिविधियों को ‘कई पाबंदियों’ के साथ लागू किया गया है। जावड़ेकर ने कहा, हमने जो भी अनुमति दी है उचित सुरक्षा मानकों के साथ दी है और यह सुनिश्चित करते हुए दी है कि पशुओं के साथ कोई क्रूरता नहीं हो।
अधिसूचना के अनुसार जल्लीकट्टू या बैलगाड़ी दौड़ का आयोजन जिला प्रशासन की पूर्व अनुमति के साथ करना होगा। यह सुनिश्चित करने के लिए कि इन आयोजनों में पशुओं को किसी तरह को गैरजरूरी कष्ट ना हो या पीड़ा ना पहुंचे, डिस्ट्रिक्ट सोसाइटी फोर प्रीवेंशन ऑफ क्रूअल्टी टू एनिमल्स और राज्य पशु कल्याण बोर्ड या जिला प्रशासन उचित तरीके से इनकी निगरानी करेंगे।
भारतीय पशु कल्याण बोर्ड (एबीडब्ल्यूआइ) ने हाल में पर्यावरण मंत्रालय को तमिलनाडु में जल्लीकट्टू पर वर्तमान में प्रतिबंध लगाने वाले सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को ना पलटने की सलाह दी थी जिसके बाद यह अधिसूचना आई है। पिछले साल 23 दिसंबर को तमिलनाडु सरकार ने जल्लीकट्टू के आयोजन के लिए कानूनों में संशोधन के लिए केंद्र से एक विधेयक पेश करने की अपील की थी। जयललिता ने कहा, अधिसूचना की वजह से तमिलनाडु में जल्लीकट्टू का आयोजन करने पर किसी तरह की पाबंदी नहीं है और लोग उल्लास के साथ पोंगल मना सकते हैं।
पेटा इंडिया की सीइओ पूर्वा जोशीपुरा ने बताया, ‘आज सुबह से हमारे फोन भाजपा समर्थकों और अन्य लोगों की कॉल से घनघना रहे हैं जो इस बात को लेकर चिंतित हैं कि जो लोग पशुओं के शुभचिंतक होने का दावा करते थे वे अब उन पर क्रूरता की अनुमति दे रहे हैं जिस पर सर्वोच्च न्यायालय ने पहले से ही प्रतिबंध लगा रखा था। उन्होंने कहा, पर्यावरण मंत्रालय ने खुद 2011 में सांड़ों के इस्तेमाल वाले कार्यक्रमों पर रोक लगा दी थी और मवेशियों के प्रति क्रूरता की रोकथाम अधिनियम के तहत 1960 से जल्लीकट्टू, सांड़ की दौड़ और सांड़ की लड़ाई को लेकर पुनर्विचार याचिका दायर की थी।