जब से दिल्ली के जहांगीरपुरी इलाके में रामनवमी जुलूस पर पथराव और हिंसा की घटनाएं हुई हैं, तब से वह देश की मीडिया में सुर्खी बनी हुई है। सियासी नेता इस पर अपनी सियासत कर रहे हैं कई सामाजिक संगठन घटना के आरोपियों के पक्ष-विपक्ष में बयानबाजी कर रहे हैं। इसको लेकर स्थानीय लोगों का जीना दूभर हो गया है। मामला अब देश के शीर्ष न्यायालय तक पहुंच चुका है।
दरअसल जहांगीरपुरी इलाके में बड़ी संख्या में कबाड़ी का काम करने वाले हिंदू-मुसलमान रहते हैं। इनमें से अधिकतर बंगाली बोलते हैं। भाजपा का आरोप है कि ये लोग बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुसलमान हैं तथा यहां अवैध रूप से रहकर आपराधिक गतिविधियों में लिप्त हैं। हालांकि स्थानीय लोग खुद को रोहिंग्या मानने से साफ इंकार करते हैं। उनका कहना है कि वे काफी वर्ष पहले काम की तलाश में बंगाल से यहां आए थे और झुग्गी बस्तियों में रहने लगे। बाद में यहीं पर जमीन खऱीदकर बस गए।
दैनिक भास्कर की खबर के मुताबिक यहां रहने वाले खुद को रोहिंग्या या बांग्लादेशी बताए जाने से इतने नाराज हैं कि वे कहते हैं आपको जहां भी रोहिंग्या या बांग्लादेशी मिले उसे गोली मार दो। सफाई का काम करने वाले हसन अली के बेटे मोहम्मद अली को को 16 अप्रैल को पुलिस पकड़ ले गई है। हसन का कहना है कि “16 अप्रैल की शाम को बेटा दूध लेने के लिए निकला और पुलिस उसे पकड़ ले गई। अब उसे तिहाड़ भेज दिया गया है।”
हसन से कहा कि “यहां अगर कोई बांग्लादेशी या रोहिंग्या है तो उसे गोली मार दो। मुसलमान होना गुनाह नहीं है। सरकार को जो छानबीन करना है करे। पर हमें चैन से रहने दो।” कहा जो “बंगाल के रहने वाले हैं और बांग्ला बोलते हैं तथा वर्षों पहले से यहां आकर रह रहे हैं, उनका गुनाह सिर्फ इतना है कि वे मुसलमान हैं। सरकार को मुसलमान नहीं पसंद हैं।” पूछा कि क्या बंगाली बोलने वाले मुसलमान क्या भारत के नहीं हैं?
यहां रहने वाले कई लोगों का कहना है कि वे 50 वर्ष से भी ज्यादा वक्त से यहां रह रहे हैं, छाती पीट-पीटकर कह रहे हैं कि वे भारतीय हैं, लेकिन लोगों की सोच नहीं बदलेगी। वे उनको विदेशी साबित करने पर लगे हुए हैं। ऐसे में कोई क्या कर सकता है।