नमकीन और मिठाई के कारोबार से जुड़े स्थानीय लोगों ने इंदौरी पोहे को जीआइ टैग दिलाने की कवायद पहली बार वर्ष 2019 में शुरू की थी, लेकिन पिछले तीन साल में यह परवान नहीं चढ़ सकी। अब इस सिलसिले में हलचल तेज हुई है। पहचान के इस प्रतिष्ठित तमगे को हासिल करने के लिए आवेदनकर्ता को लंबी प्रक्रिया से गुजरना होता है। इस दौरान उसे जियोग्राफिकल इंडिकेशन्स रजिस्ट्री के सामने पुख्ता दस्तावेजी सबूत पेश करने होते हैं।

अपने स्वाद के लिए देश-दुनिया में मशहूर इंदौरी पोहे को भौगोलिक पहचान (जीआइ) का तमगा दिलाने की कवायद तीन साल के अंतराल के बाद तेज हो गई है। शहर के नमकीन और मिठाई कारोबारियों का एक संगठन इंदौरी पोहे को जीआइ टैग दिलाने के लिए चेन्नई स्थित जियोग्राफिकल इंडिकेशन्स रजिस्ट्री के सामने जल्द ही दावा पेश कर सकता है।

शहर के नमकीन-मिष्ठान्न विक्रेता कल्याण संघ के सचिव अनुराग बोथरा ने मंगलवार को बताया, ‘हम जियोग्राफिकल इंडिकेशन्स रजिस्ट्री के सामने जल्द से जल्द दावा पेश करेंगे कि अपने विशिष्ट स्वाद और अलग-अलग चीजें डाल कर इस व्यंजन को परोसने के खास अंदाज के लिए इंदौरी पोहे को जीआइ टैग प्रदान किया जाए।’ बोथरा ने कहा कि इंदौरी पोहे का स्वाद बढ़ाने के लिए इस पर कतरे हुए प्याज, सेव, बूंदी, जीरावन (स्थानीय स्तर पर तैयार चटपटा मसाला) और अन्य चीजें डालकर इसकी खास सजावट की जाती है।

बौद्धिक संपदा कानूनों के जानकार राकेश सोनी जीआइ तमगे के लिए इंदौरी पोहे का दावा तैयार करने में स्थानीय कारोबारी संगठन की मदद कर रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘देश में पोहा वैसे तो कई राज्यों में विभिन्न रूपों और नामों से खाया जाता है। लेकिन इंदौर के पानी की तासीर और खास पाक कला के कारण इंदौरी पोहे का स्वाद अन्य स्थानों से एकदम अलग होता है।’

जानकारों के मुताबिक, पहचान के इस प्रतिष्ठित तमगे को हासिल करने के लिए आवेदनकर्ता को लंबी प्रक्रिया से गुजरना होता है। इस दौरान उसे जियोग्राफिकल इंडिकेशन्स रजिस्ट्री के सामने पुख्ता दस्तावेजी सबूत पेश करने होते हैं कि संबंधित पकवान का नुस्खा किसी विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र में खोजा गया था तथा व्यंजन को इस इलाके में ऐतिहासिक तौर पर पकाया और खाया जा रहा है।

अप्रैल 2004 से लेकर अब तक जिन भारतीय पकवानों को खाद्य उत्पादों की श्रेणी में जीआई टैग मिला है, उनमें धारवाड़ का पेड़ा (कर्नाटक), तिरुपति का लड्डू (आंध्र प्रदेश), बीकानेरी भुजिया (राजस्थान), हैदराबादी हलीम (तेलंगाना), जयनगर का मोआ (बंगाल), रतलामी सेंव (मध्य प्रदेश), बंदर लड्डू (आंध्र प्रदेश), वर्धमान का सीताभोग (बंगाल), वर्धमान का ही मिहिदाना और बांग्लार रसगुल्ला (बंगाल) शामिल हैं। (भाषा)

इंदौर के नमकीन-मिष्ठान्न विक्रेता कल्याण संघ के सचिव अनुराग बोथरा ने मंगलवार को बताया, ‘हम जियोग्राफिकल इंडिकेशन्स रजिस्ट्री के सामने जल्द से जल्द दावा पेश करेंगे कि अपने विशिष्ट स्वाद और अलग-अलग चीजें डाल कर इस व्यंजन को परोसने के खास अंदाज के लिए इंदौरी पोहे को जीआइ टैग प्रदान किया जाए।’