सालों बाद केंद्र में बनी सरकार के ज्यादातर मंत्रियों को भी आखिरी समय तक नहीं पता था कि वे इस बार मंत्री बन रहे हैं। 23 मई को आए जनादेश की तरह सरकार बनाने में भी भूमिका केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की रही। बीमार अरुण जेटली के मंत्री न बनाने के पत्र के बाद प्रधानमंत्री मोदी उनसे मिलने उनके घर गए। वे उनके पास 40 मिनट तक रुके तो माना गया कि उन्होंने जेटली से मंत्रिमंडल के गठन के बारे में बातचीत की।
अरुण जेटली का राजनीतिक कद इस सरकार में कितना बड़ा था इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि लोकसभा चुनाव हारने के बाद भी वे सरकार के सबसे ताकतवर मंत्री बने रहे।

उन्होंने अपने विभाग के अलावा अनेक दलों खास करके जनता दल (एकी) के साथ बिहार में सरकार बनवाने से लेकर केंद्र सरकार के नोटबंदी और जीएसटी लागू करवाने में सबसे अहम भूमिका अदा की थी। बार-बार बीमारी के कारण उनकी सक्रियता कम हो जाती थी, लेकिन सरकार में उनकी बड़ी भूमिका बनी रही। कहने के लिए 23 मई को लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सर कार्यवाह सुरेश (भैया जी) जोशी से मुलाकात की थी। मुलाकात के बाद यह बात सामने नहीं आई कि उन्होंने सरकार के गठन पर कोई चर्चा की।

ऐतिहासिक जनादेश तय कर गया दिशा
इस बार का चुनाव भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी केंद्रित रहा। उनके साथ भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने भी चुनाव अभियान की अगुआई की। चुनाव में नया इतिहास बना। पहली बार किसी गैर कांग्रेसी नेता की अगुआई में देश में पूर्ण बहुमत की सरकार बनी। 2014 में भाजपा को 282 सीटों पर जीत मिली थी। इस बार यह संख्या बढ़कर 303 हो गई। भाजपा की अगुआई वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) को 353 सीटें मिली। चुनाव प्रचार से पहले तेदेपा के राजग से अलग होने पर विपक्ष ने ऐसा माहौल बनाया था कि भाजपा का साथ अनेक दल छोड़ रहे हैं। इसी का असर हुआ कि भाजपा ने बिहार, महाराष्ट्र, पंजाब, तमिलनाडु आदि राज्यों में सहयोगी दलों के लिए उदारता से सीट छोड़ी। बिहार में तो जनता दल (एकी) और लोजपा को खुश करने के लिए अपनी जीती सीट छोड़ी और महाराष्ट्र में सहयोगी शिव-सेना के लगातार आलोचना के बावजूद सीटों का समझौता किया। चुनाव नतीजों के आने से पहले ही प्रधानमंत्री ने दो दिन पहले अपने मंत्रिमंडल के सहयोगियों के साथ राजग घटक दल के नेताओं से रात्रिभोज पर मुलाकात की और भाजपा कार्यालय से जारी बयान में दावा किया गया कि राजग में दलों की संख्या चालीस के पार हो गई है।

बहुमत के बाद भी सबको रखा साथ
जिस तरह का बहुमत आया उससे तो यही लगा कि अब भाजपा के लिए सहयोगी ज्यादा मायने नहीं रखते हैं। लेकिन नरेंद्र मोदी ने किसी भी सहयोगी को कम महत्त्व देना नहीं स्वीकारा। अब तक की हर बैठकों में वे सभी सहयोगियों को उसी तरह महत्त्व देते हुए दिखते हैं जैसा वे चुनाव प्रचार के दौरान कहते रहे थे। बावजूद इसके चुनाव नतीजों ने साबित कर दिया कि यह जीत नरेंद्र मोदी की है। वे जो चाहें, जैसा चाहें कर सकते हैं। चुनाव नतीजों के बाद शपथ ग्रहण तक हर रोज प्रधानमंत्री किसी न किसी कार्यक्रम में बोले और उनका भाषण जिम्मेदारी वाला और अपनों को नसीहत देने वाला रहा। शुरुआत में ही 25 मई को उन्होंने राजग के सांसदों को संबोधित करते हुए इसका संकेत दे दिया था कि मंत्री कौन बनेगा यह तय करने का काम केवल उनका है। सांसद किसी चक्कर में नहीं पड़ें और न ही इसके लिए किसी से सिफारिश वगैरह करवाएं। यह उन्होंने साबित करके के दिखा दिया। इस बार अटकलों के दौर नहीं चले।

जन-जन तक पहुंचने की कोशिश
लोकसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री ने कुल 142 जनसभाओं को संबोधित कर चार रोड शो किए। इन जनसभाओं में अनुमानित डेढ़ करोड़ लोगों से ज्यादा लोगों से संपर्क किया गया और जन-कल्याण योजनाओं के 7000 लाभार्थियों से भी मुलाकात की गई। इस दौरान 1.5 लाख किलोमीटर की यात्रा की गई और तीन दिन ऐसे भी आए जब एक दिन में मोदी ने 4000 किलोमीटर की यात्रा की।