बिहार सरकार ने विभागों के प्रमुखों ,जिला मजिस्ट्रेटों और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों को अधिक बैठकें नहीं करने का सुझाव दिया है क्योंकि इससे राज्य में कार्य संस्कृति प्रभावित हो रही है। सामान्य प्रशासन विभाग की ओर से हाल में जारी एक परिपत्र में कहा गया है कि बैठक मौखिक आदेशों के जरिए नहीं बुलाई जानी चाहिए। बैठकों में सहकर्मियों का सम्मान किया जाना चाहिए।

सर्कुलर के मुताबिक बिहार विधानसभा की अधीनस्थ विधान समिति ने सदन में अपनी रिपोर्ट रखी है और इसमें कई सुझाव दिए गए हैं। इसमें कहा गया है कि अफसरों की बहुत सारी बैठकें राज्य में नौकरशाही की कार्य संस्कृति को बुरी तरह प्रभावित कर रही है। इसमें यह भी कहा गया है कि वरिष्ठों को अपने सहायक अधिकारियों के साथ असम्मान जनक, खराब भाषा का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। आदेश के अनुसार अफसरों को सुनिश्चित करना चाहिए कि समिति की सभी अनुशंसाओं का कड़ाई से पालन हो।

समिति प्रमुख बोले- बैठकों से समय होता है जाया

समिति के प्रमुख व कांग्रेस के नेता अजित शर्मा ने कहा कि बहुत सारी बैठकों में हिस्सा लेना थका देने वाला और तनाव देने वाला हो सकता है। इससे उत्पादकता व गुणवत्ता दोनों पर असर पड़ सकता है। इससे कर्मचारी हतोत्साहित हो सकते हैं, साथ ही कार्य का समय खराब होता है।

IAS केके पाठक की अभद्रता के बाद मचा था बवाल

ध्यान रहे कि फरवरी माह में बिहार प्रशासनिक सेवा संघ के सदस्यों ने सीनियर IAS केके पाठक पर एक बैठक के दौरान अभद्र भाषा का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया था। संघ ने अपर मुख्य सचिव के खिलाफ पुलिस में शिकायत भी दर्ज कराई थी। दरअसल केके पाठक का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था, जिसमें उन्हें अधिकारियों के खिलाफ अभद्र भाषा का उपयोग करते हुए देखा जा सकता है।

हाालंकि मामले ने तूल पकड़ा तो बिहार लोक प्रशासन व ग्रामीण विकास संस्थान ने एक बयान में कहा कि महानिदेशक ने संघ अधिकारियों के खिलाफ कुछ आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल करने के लिए खेद व्यक्त किया है। लेकिन सरकार की तरफ से इस मामले में कोई कदम नहीं उठाया गया था। अब सर्कुलर से साफ है कि सरकार इस तरह की स्थितियों से बचना चाहती है। तभी अफसरों को कम बैठकें करने को कहा गया है।