पश्चिम बंगाल में पहले दो चरणों की तीन लोकसभा सीटों के लिए होने वाले मतदान में चाय बागान मजदूरों की भूमिका निर्णायक होगी। उत्तर बंगाल के सैकड़ों चाय बागान लंबे अरसे से बदहाली से गुजर रहे हैं। कुछ बागान बरसों से बंद हैं और वहां मजदूर बिजली, पानी और राशन जैसी आधारभूत सुविधाओं से भी वंचित हैं। मजदूरों की अहमियत को ध्यान में रखते हुए चुनाव आते ही तमाम राजनीतिक दल मजदूरों को लुभाने में जुट जाते हैं। राज्य में पहले चरण में जिन अलीपुरदुआर व कूचबिहार सीटों पर मतदान होना है वहां लगभग आधे वोट बागान मजदूरों के ही हैं। पड़ोसी दार्जिलिंग में भी यह आंकड़ा लगभग इतना ही है। बागान मजदूरों का समर्थन पहले वाममोर्चा को हासिल था। उसके बाद तृणमूल कांग्रेस ने उनको अपने पाले में कर लिया। लेकिन ममता बनर्जी के सात साल से सत्ता में रहने के बावजूद इन बागानों और मजदूरों की समस्या जस की तस है। इसलिए अबकी विभिन्न मजदूर संगठनों में राज्य सरकार के प्रति नाराजगी है।
विभिन्न ट्रेड यूनियनों के साझा मंच ज्वायंट फोरम आफ ट्रेड यूनियंस के संयोजक जिया-उल-आलम कहते हैं कि अबकी मजदूर बागान इलाकों में लगातार बदहाल होते सामाजिक-आर्थिक ढांचे, घटती चिकित्सा सुविधाओं और न्यूनतम मजदूरी अधिनियम लागू नहीं होने के विरोध में मतदान करेंगे। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में अलीपुरदुआर, कूचबिहार और जलपाईगुड़ी सीट तृणमूल कांग्रेस ने जीती थी जबकि गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के समर्थन से दार्जिलिंग सीट भाजपा के एसएस आहलुवालिया ने। अलीपुरदुआर से तृणमूल के निवतर्मान सांसद दशरथ तिर्की इस बार भी मैदान में हैं। जलपाईगुड़ी में भी निवर्तमान तृणमूल सांसद विजय चंद्र बर्मन को ही टिकट मिला है। भाजपा अबकी चाय मजदूरों की समस्याओं को भुनाने का प्रयास कर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इलाके में दो रैलियां कर चुके हैं। उनके अलावा केंद्रीय मंत्री निर्मला सीतारमण कई बार इलाके का दौरा कर चुकी हैं। पलाशबाड़ी चाय बागान में काम करने वाले रफीक अंसारी कहते हैं कि केंद्र की भाजपा या राज्य की तृणमूल कांग्रेस उनकी मांगों पर कोई ध्यान नहीं दे रही है। न्यूनतम मजदूरी तय नहीं होने से मजदूरों में भारी नाराजगी है। मजदूरों का आरोप है कि राज्य सरकार न्यूनतम मजदूरी अधिनियम लागू करने में हीला-हवाला कर रही है। उनको पर्याप्त राशन भी नहीं मिल रहा है। फिलहाल मजदूरों को रोजाना 176 रुपए मिलते हैं। लेकिन उनका कहना है कि लगातार बढ़ती महंगाई के कारण इस रकम में परिवार पालना बेहद मुश्किल है।
इंटक के समर्थन वाली नेशनल यूनियम आफ प्लांटेशन वर्कर्स के महासचिव मणि कुमार दमाल कहते हैं कि तृणमूल कांग्रेस व भाजपा को मजदूरों के साथ झूठे वादे करने का खामियाजा भुगतना होगा। दमाल ने कहा कि बार-बार कहने के बावजूद केंद्र या राज्य सरकार ने इलाके के बंद बागानों को दोबारा खोलने के लए कोई ठोस पहल नहीं की है। इससे कम से कम 25 हजार मजदूर और उनके परिवार अनिश्चित भविष्य की ओर ताक रहे हैं। दार्जिलिंग के तृणमूल कांग्रेस उम्मीदवार अमर सिंह राई मानते हैं कि न्यूनतम मजदूरी की मांग जायज है। इसे लागू किया जाना चाहिए। राई ने कहा कि वे जीत के बाद चाय बागानों का मुद्दा संसद में उठाएंगे। अब चाय बागानों में वोट मांगने जाने वाले उम्मीदवारों को मजदूरों के एक ही सवाल का सामना करना पड़ता है-क्या इस बार वोट देने से हमारा बागान खुल जाएगा? हर उम्मीदवार इसका जवाब हां में ही देता है, लेकिन अब मजदूरों का भरोसा तमाम राजनीतिक दलों से उठ चुका है।
कालचीनी के पास रायमटांग चाय बागान के एक मजदूर सुरेश मुंडा कहते हैं कि इससे पहले बागान खुलवाने का वादा कर पंचायत और विधानसभा चुनाव में नेताओं ने हमसे वोट ले लिया। लेकिन बागान नहीं खुला। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि इलाके में बंद चाय बागान बीते कुछ चुनावों में सबसे बड़े मुद्दे के तौर पर उभरा है। हर बार चुनावों के दौरान यह खूब जोर-शोर से उछलता है। लेकिन उसके बाद फिर यह मामला ठंडे बस्ते में चला जाता है और मजदूर तिल-तिल कर मरने पर मजबूर हो जाते हैं। लेकिन अबकी मजदूरों में नाराजगी है और उनकी यह नाराजगी उम्मीदवारों को भारी पड़ सकती है।

