हिमाचल प्रदेश में मंत्रियों और विधायकों को अपनी जेब से इनकम टैक्स भरना होगा। अभी तक राज्य सरकार विधायकों और मंत्रियों के इनकम टैक्स का भुगतान करती थी। कैबिनेट की शुक्रवार को हुई बैठक में फैसला लिया गया कि सभी मंत्री और विधायक अपने इनकम टैक्स का भुगतान खुद करेंगे, जिसे अब तक राज्य सरकार द्वारा मंजूरी दी जा रही थी।
यह घोषणा तब हुई जब सीएम जयराम ठाकुर की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट मीटिंग के दौरान मंत्रियों के वेतन और भत्ते (हिमाचल प्रदेश) अधिनियम, 2000 की धारा 12 और हिमाचल प्रदेश विधान सभा (सदस्यों के भत्ते और पेंशन) अधिनियम, 1971 की धारा 11-ए को हटाने के लिए एक अध्यादेश लाने का फैसला किया गया, जो मंत्रियों और विधायकों को उनके वेतन और भत्तों पर आयकर से छूट देता है।
संसदीय मामलों के मंत्री सुरेश भारद्वाज ने बताया कि हिमाचल प्रदेश की भाजपा सरकार ने यह सुनिश्चित करने के लिए अधिनियम में संशोधन करने के लिए एक अध्यादेश लाने का फैसला किया है कि सरकार द्वारा विधायकों के इनकम टैक्स का भुगतान न किया जाए। इससे प्रति विधायक 2.5 लाख की बचत होगी। उन्होंने कहा कि यह व्यवस्था (मंत्रियों, विधायकों के इनकम टैक्स का भुगतान) लंबे समय से थी और मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने कानून को बदलने की पहल की है।
वहीं, विपक्षी दलों ने भी कैबिनेट के इस फैसले का स्वागत किया है। विपक्ष के नेता मुकेश अग्निहोत्री ने कहा कि कांग्रेस इस फैसले के पक्ष में है। जबकि, माकपा विधायक राकेश सिंघा ने कहा कि यह एक सही फैसला है, हालांकि इसे बहुत पहले ले लिया जाना चाहिए था।
हाई कोर्ट ने सरकार को दिया था नोटिस
पिछले महीनें, इस संबंध में हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी और इसके जरिए सरकारी खजाने से विधायकों और मंत्रियों के इनकम टैक्स का भुगतान किए को लेकर सवाल उठाए गए थे। इसके बाद हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को नोटिस जारी कर इस मामले पर जवाब मांगा था। इस बीच, राज्य सरकार ने कैबिनेट में फैसला लिया है कि अब वेतन पर टैक्स खुद विधायको और मंत्रियों को देना होगा।
इसको लेकर कई राज्यों में अलग-अलग नियम हैं। ओडिशा में मंत्री, विधायक और पूर्व विधायक भी खुद टैक्स देते हैं। जबकि बिहार में मंत्रियों और विधायकों के वेतन को इस तरह से संरचित किया जाता है कि टैक्सेबल इनकम सबसे कम ब्रैकेट में आती है। इसके अतिरिक्त भत्ते यात्रा व्यय, ड्राइवरों के भुगतान, स्टेशनरी और कार्यालय व्यय, टेलीफोन और ब्रॉडबैंड के रूप में दिए जाते हैं जो आम तौर पर टैक्स फ्री हैं।