ओमप्रकाश ठाकुर
50 हजार करोड़ रुपए के कर्ज और खाली खजाने के साथ कंगाली में फंसी हिमाचल प्रदेश सरकार अब निवेश के दम पर उम्मीदों की फसल बोने की राह पर है। सरकार के समक्ष एक तरफ बेरोजगारों की फौज खड़ी है जबकि दूसरी और खेती तबाही के कगार पर है। निवेशकर्ता भी इधर पांव नहीं धर रहे हैं। ऐसे में सरकार के पास निवेशकर्ताओं को आकर्षित करने के लिए रियायतें देने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा है। पिछली सरकार ने भी निवेशकर्ताओं को आकर्षित करने के लिए बहुत कुछ किया था लेकिन निवेशकर्ता नहीं आए। प्रदेश की जयराम ठाकुर सरकार एक बार दोबारा निवेशकर्ताओं को खींचने की कसरत में जुट गई हैं व विभिन्न विभागों से निवेश के लिए क्षमताएं चिन्हित करवाई गईं हैं। विभिन्न विभागों ने प्रदेश में 85 हजार करोड़ रुपए के निवेश की क्षमता चिन्हित की है। ऊर्जा क्षेत्र में 20,000 करोड़ रुपए के निवेश की संभावना ढूंढी गई है। यह अलहदा है कि निजी क्षेत्र पनबिजली परियोजनाओं में निवेश करने के लिए तैयार नहीं हैं। निजी क्षेत्र की दलील है कि पानी से तैयार होने वाली बिजली महंगी पड़ रही है। रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर जैसी कंपनी ठेका लेने से इंकार कर चुकी है।
ऊर्जा क्षेत्र के बाद निर्माण क्षेत्र में 15 हजार करोड़ रुपए के निवेश की क्षमता चिन्हित की गई है जबकि पर्यटन के क्षेत्र में दस हजार करोड़ रुपए, खेती में पांच हजार करोड़, सूचना-प्रौद्योगिकी, इलेक्ट्रॉनिकस व कौशल विकास क्षेत्र में 5000 करोड़, आवास व रियल एस्टेट क्षेत्र में 5000 करोड़, स्वास्थ्य व आयुर्वेद क्षेत्र में 5000 करोड़ के अलावा अधोसंरचना लॉजिस्टिक व लोक निर्माण विभाग में 2000 करोड़ की निवेश क्षमता चिन्हित की गई है।
विभागों ने निवेश की क्षमताएं तो चिन्हित कर दी हैं लेकिन सबसे ज्यादा मुश्किल जमीन को लेकर हैं। प्रदेश में पहले ही जमीन कम है। जो जमीन है वह वन विभाग के अधीन है। हालांकि इसके लिए मुख्यमंत्री ने सभी जिलों के उपायुक्तों को लैंड बैक की पहचान करने के निर्देश दिए हैं ताकि संभावित उद्यमियों के लिए जमीन मुहैया करवाई जा सके। लेकिन जिला उपायुक्तों के पास प्रदेश के भूमिहीनों को मकान बनाने के लिए दो बिस्वा जमीन नहीं मिल रही हैं, वह कारोबारियों को कहां से जमीन मुहैया कराएंगे यह देखा जाना है।
बावजूद इन मुश्किलों के आगामी लोकसभा चुनावों में प्रदेश सरकार इस 85 हजार करोड़ रुपए के आंकड़े को भुनाने को तैयार बैठी है। केंद्र से दस महीनों में नौ हजार करोड़ की परियोजनाओं को मंजूर करवाने का दावा सरकार पहले ही कर रही है। लेकिन जमीन पर अभी कुछ भी नहीं उतरा है। बहरहाल, निवेशकों की खातिर प्रदेश सरकार ने लोकसभा चुनावों के बाद धर्मशाला में 11 व 12 जून को ग्लोबल इंवेस्टर मीट आयोजित कराने का फैसला कर रखा है। इस मीट के लिए बाकायदा मंत्रिमंडल से मंजूरी दी गई।
इस ग्लोबल मीट को सफल बनाने के लिए सभी विभागों को समयबद्ध योजनाएं तैयार करने के निर्देश दिए गए हैं। यही नहीं इस ग्लोबल इंवेस्टर मीट से पहले प्रदेश में पांच छोटे सम्मेलन किए जाएंगे। पर्यटन एवं आतिथ्य सत्कार के लिए धर्मशाला में, ऊर्जा व खाद्य प्रसंस्करण के लिए शिमला में, निर्माण व फार्मा बद्दी में जबकि स्वास्थ्य देखभाल, आयुष, सूचना प्रौद्योगिकी के लिए मंडी में लघु सम्मेलन आयोजित किया जाएगा। साहसिक पर्यटन और लघु उद्योगों के लिए इस तरह का सम्मेलन मनाली में करने का फैसला किया गया। इसके अलावा देश के प्रमुख व्यापारिक केंद्रों में छह राष्ट्रीय सड़क शो करने का भी फैसला किया गया है। विदेशों में भी दो या तीन रोड शो किए जाएंगे। यही नहीं इस ग्लोबल मीट से पहले दिल्ली आधारित 40 से 50 विदेशी मिशनों को शामिल कर नई दिल्ली में राजदूतों का सम्मेलन किया जाएगा। मुख्य सचिव बीके अग्रवाल के मुताबिक ग्लोबल मीट में विदेशों से भी कारोबारी शिरकत करेंगे।
याद रहे कि 2009 से 2014 तक प्रदेश को पूर्व की वाजपेयी सरकार की ओर से घोषित पैकेज के तहत उद्योगों को 35 हजार 305 करोड़ रुपए की करों में छूट व रियायतें दी गई थीं, लेकिन हिमाचलियों को रोजगार तब भी नहीं मिला था। अब तो कोई पैकेज भी नहीं हैं ऐसे में कि तना निवेश आएगा, इसका सबका इंतजार है। बहरहाल, सरकार कसरत तो कर ही रही है।