हिमाचल प्रदेश में सरकार भांग और गांजा (Cannabis) की खेती को लीगल करने की तैयारी कर रही है। जल्द ही हिमाचल में गांजा की खेती को लेकर पॉलिसी बन सकती है और गांजा की खेती कानूनी तौर पर हो सकती है। भांग और गांजा (Cannabis) की वैधता की जांच के लिए हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने एक समिति का गठन किया है। समिति के अध्यक्ष राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी होंगे।

भांग की खेती की समीक्षा के लिए सरकार ने बनाया पैनल

पैनल के गठन का उद्देश्य गांजा के औद्योगिक और औषधीय लाभों का पता लगाना है। कमेटी इसकी खेती से होने वाले फायदे और नुकसान की भी जांच करेगी। जगत सिंह नेगी ने कहा, “पूरे राज्य के लिए एक नीति की जांच की जाएगी और उसे लागू किया जाएगा। कमेटी सरकार को सुझाव देगी।हम वैधीकरण के सभी पहलुओं को देख रहे हैं और जनता को बड़े पैमाने पर लाभान्वित करने में मदद कर रहे हैं।”

भांग और गांजा के वैधीकरण पर विचार-विमर्श कोई नई बात नहीं है। पिछले महीने सीपीएस सुंदर सिंह ठाकुर ने कहा था कि राज्य सरकार भांग की खेती को कानूनी अधिकार के तहत लाने की नीति पर सक्रिय रूप से काम कर रही है। ठाकुर ने यह भी मांग की थी कि भांग से बने गांजे को इस्तेमाल की इजाजत दी जाए। गांजा कैनबिस सैटिवा वर्ग के अंतर्गत आता है और इसका उपयोग अन्य उत्पादों के बीच रस्सी, चप्पल, कपड़ा बनाने के लिए किया जा सकता है।

शिमला, मंडी, कुल्लू, चंबा और सिरमौर में गांजा की खेती

उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और पंजाब की तरह हिमाचल परदेश भी भांग की खेती के लिए नीति बनाने की तैयारी कर रहा है। राज्य में भांग की खेती को वैधता प्राप्त होने पर वार्षिक 18 हजार करोड़ रुपये का राजस्व आ सकता है। प्रदेश में अनुमानित 2400 एकड़ भूमि में भांग की संगठित अवैध खेती हो रही है। राज्य से प्रति वर्ष 960 करोड़ रुपये मूल्य की चरस की तस्करी होती है। इसे विदेश भी भेजा जाता है। परंपरागत रूप से गांजा पुराने हिमाचल के कुछ हिस्सों में उगाया जाता था जिसमें शिमला, मंडी, कुल्लू, चंबा और सिरमौर शामिल थे।

(Written by Amit Bhatnagar)