ओम प्रकाश ठाकुर

हिमाचल प्रदेश में वैसे तो बागियों ने कांग्रेस और बीजेपी दोनों दलों की बेचैनी बढ़ाई हुई है। लेकिन एक सीट पर बीजेपी को पुराने ही बीजेपी के बागी उम्मीदवार से सामना करना पड़ रहा है। प्रदेश के सिरमौर जिले के पछड़ विधानसभा में दो महिलाओं के बीच रोचक लड़ाई देखने को मिल रही है। पछड़ सीट ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र है।

बता दें कि इस सीट से मौजूदा भाजपा विधायक रीना कश्यप का सामना दयाल पयारी से होगा, जो पिछली बार भाजपा (2019 उपचुनाव) के बागी उम्मीदवार के रूप में हार गईं थीं। वहीं इस बार वह कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहीं हैं। प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष और सांसद सुरेश कश्यप के इसी सीट से होने से उनकी प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी है।

बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष सुरेश कश्यप ने 2012 और 2017 में यह सीट जीती थी, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में सांसद बनने के बाद जिला परिषद सदस्य दयाल पयारी को 2019 के उपचुनाव जीत मिली थी। हालांकि पयारी पूर्व सीएम प्रेम कुमार धूमल के खेमे की मानी जाती हैं।

2019 उपचुनाव में जब भाजपा ने रीना कश्यप को टिकट दिया, तो दयाल पयारी ने निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ा। हालांकि वह उस चुनाव में हार गईं, लेकिन उन्हें 11,698 वोट मिले और वह तीसरे स्थान पर रहीं। दूसरे स्थान पर कांग्रेस उम्मीदवार गंगू राम मुसाफिर थे, जो पूर्व मंत्री और विधानसभा अध्यक्ष थे। वह पूर्व सीएम वीरभद्र सिंह के वफादार थे। लेकिन पछड़ से लगातार तीन बार हारने से पहले 1982 से 2007 तक इस सीट का उन्होंने प्रतिनिधित्व किया था।

दोनों महिलाओं ने भाजपा से अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी। 2017 से पहले दयाल पयारी ने तीन बार अलग अलग वार्डों से जिला परिषद का चुनाव जीता था। बता दें कि हिमाचल प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी राज्य में बागियों से परेशान है

कांग्रेस नेता जय प्रकाश चौहान ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत के दौरान कहा, “भाजपा में उनके मतदाता अब भी उनके साथ हैं। उन्हें उन लोगों का भी समर्थन प्राप्त है जो सुरेश कश्यप खेमे के खिलाफ हैं। निर्वाचन क्षेत्र में अनुसूचित जाति के मतदाता भी उनके साथ जाएंगे, क्योंकि भाजपा अध्यक्ष सुरेश कश्यप और मौजूदा विधायक रीना कश्यप कभी भी दलित समूहों की बैठकों में शामिल नहीं हुए।”

मौजूदा विधायक और भाजपा उम्मीदवार रीना कश्यप ने कहा कि वे स्थानीय एससी समुदायों के साथ बातचीत कर रहे हैं और उन्हें समझाने की कोशिश कर रहीं हैं कि हट्टी समुदाय को एसटी का दर्जा मिलेगा। उन्होंने आगे कहा कि एससी समुदाय हट्टी के लिए एसटी दर्जे के खिलाफ नहीं हैं बल्कि वे केवल इस बात से डरते हैं कि इससे उनके कुछ अधिकारों को कम किया जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें विधायक के रूप में काम करने के लिए केवल तीन साल मिले थे, जिनमें से दो को कोविड ने छीन लिया था, फिर भी उन्होंने अपना सर्वश्रेष्ठ दिया।