दिल्ली हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के कुलपति द्वारा नियुक्त किए गए नौ केंद्र अध्यक्षों को चयन समितियों का गठन और केंद्रों या विशेष केंद्रों से संबंधित चयन करने समेत किसी भी तरह के बड़े फैसले लेने पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने आदेश में कहा कि कुलपति के पास केंद्रों के अध्यक्षों की नियुक्ति करने का अधिकार नहीं है।
अदालत वीसी द्वारा की गई नौ नियुक्तियों को कार्यकारी परिषद से मिली मंजूरी को चुनौती देने वाली प्रोफेसर अतुल सूद की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। अदालत के समक्ष यह तर्क दिया गया कि इन नियुक्तियों को करने का अधिकारी वीसी के पास नहीं है।
न्यायमूर्ति राजीव शकधर और न्यायमूर्ति तलवंत सिंह की खंडपीठ ने कहा कि अध्यक्षों की नियुक्ति की शक्ति स्पष्ट रूप से कार्यकारी परिषद (Executive Council) के पास है, न कि कुलपति के पास यह शक्ति है। अदालत ने कहा कि “वीसी द्वारा की गई नियुक्तियां प्रथम दृष्टया अधिकार के बिना हैं। इसलिए कुलपति केंद्रों / विशेष केंद्रों के अध्यक्षों को नियुक्त करने की शक्ति का प्रयोग नहीं कर सकते हैं।”
विश्वविद्यालय के इस तर्क को खारिज करते हुए कि वीसी ने विश्वविद्यालय की क़ानून की धारा 4(5) के तहत शक्तियों का प्रयोग किया था, अदालत ने कहा कि वीसी ऐसी शक्तियों का प्रयोग तभी कर सकता है, जब “आपातकालीन स्थिति के कारण” तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता हो, जो तब इसकी स्वीकृति पाने के लिए संबंधित प्राधिकारी को सूचित करता है।
यह देखते हुए कि सूद ने कार्यकारी परिषद की 296 वीं बैठक के एजेंडे पर आपत्ति जताई थी और बाद में सूचित किया था कि वीसी द्वारा की गई नियुक्तियां गलत हैं, अदालत ने कहा कि प्रथम दृष्टया अधिकारियों की जानकारी में यह बात थी कि वे जो कर रहे हैं, वह सही नहीं है, इसके बावजूद कुलपति ने नियुक्तियां कीं।
खंडपीठ ने सूद के वकील अभिक चिमनी द्वारा दिए गए एक सबमिशन पर भी ध्यान दिया और कहा कि उच्च न्यायालय की एकल पीठ के वीसी द्वारा की गई नौ नियुक्तियों पर रोक लगाने से इनकार करने के बाद, कुलपति ने 8 अक्टूबर को एक अन्य व्यक्ति को स्पेनिश, पुर्तगाली, इतालवी और लैटिन अमेरिकी अध्ययन/भाषा, साहित्य और सांस्कृतिक अध्ययन स्कूल के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया।