उत्तर प्रदेश सरकार के बाद हरियाणा की भाजपा सरकार ने भी अवैध बूचड़खानों और मांस विक्रेताओं के खिलाफ अभियान शुरू करने की घोषणा की है। इस कारण हजारों लोगों के बेरोजगार होने के साथ-साथ मांस-मछली की कीमत में भी बेहिसाब बढ़ोतरी होने लगी है। उत्तर प्रदेश के मांस कारोबारी प्रदेश की सरकार से मिले, सरकार ने उनसे कोई भेदभाव न करते हुए वैध कारोबार करने को कहा। हालांकि सरकार के अधिकारियों को पता है कि आसानी से वैध लाइसेंस न मिलने के कारण ही वे अवैध कारोबार करने पर मजबूर हुए हैं।
वसुंधरा में सालों से मांस और मछली बेच रहे इलियास (बदला नाम) बताते हैं कि पहली जरूरत तो बूचड़खाने और मांस विक्रेता के कारोबार को अलग-अलग नजरिए से देखने की है। भले ही योगी सरकार या अब हरियाणा सरकार ने यह फैसला किसी अन्य कारण से लिया हो, लेकिन माना तो यही जा रहा है कि यह एक वर्ग विशेष को प्रताड़ित करके दूसरे वर्ग विशेष को खुश करने की कोशिश है। भाजपा सरकारें जान-बूझकर इस तथ्य को स्वीकारने से कतराती हैं कि मांस खाने वालों की संख्या बहुसंख्यक समाज में ज्यादा है। तथाकथित अवैध दुकानों के बंद होने से उसी बहुसंख्यक समाज के लोगों को ज्यादा कीमत पर मांस-मछली खरीदनी पड़ रही है।
यह भी तथ्य है कि अवैध बूचड़खाने को अवैध मांस-मुर्गे के कारोबार से नहीं जोड़ा जा सकता है। बूचड़खाने का कारोबार न तो आम आदमी करता है और न ही उससे इतने बड़े पैमाने पर लोगों का रोजगार जुड़ा हुआ है। यह तथ्य भी कम चौंकाने वाला नहीं है कि बूचड़खाने का कारोबार मुसलिम से ज्यादा हिंदू लोग करते हैं। यह अलग बात है कि कहने के लिए बूचड़खाने में मांस का उत्पादन होता है, लेकिन वहां इससे ज्यादा दवा व टूथपेस्ट जैसी चीजें बनती हैं। अगर उसके नियम आसान बन जाएं तो कोई कारोबारी रिश्वत देकर कारोबार करने के बजाए वैध लाइसेंस से ही कारोबार करना चाहेगा। बूचड़खाने का मामला तो अलग है, असली संकट तो अवैध मांस-मछली दुकानदारों पर है। हजार-दो हजार रुपए का मुर्गा-मछली खरीदकर दो-तीन सौ रुपए बचत से परिवार चलाने वालोें को भी स्थानीय निकाय के अधिकारियों और कर्मचारियों के अलावा पुलिस को हफ्ता देकर ही काम करना पड़ता है।
सरकार यह कहती है कि किसी को लोगों की जानमाल से खिलवाड़ करने की इजाजत नहीं दी जा सकती है, लेकिन आज तक नोएडा, गाजियाबाद या दिल्ली के आसपास के इलाकों में अवैध मांस-मछली की दुकानों से कोई महामारी नहीं फैली है। मांस-मछली की दुकान के लिए सरकार के नियम इतने कठिन हैं कि नोएडा और गाजियाबाद में गिनती की दुकानें वैध लाइसेंस से चल रही होंगी। लाइसेंस के ज्यादातर नियम अव्यावहारिक हैं और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं। अगर सरकार ऐसा विधान बनाए जिससे जरूरी औपचारिकताएं पूरी करके एक निश्चित फीस देकर वैध दुकान चलाई जाए तो कोई छोटा कारोबारी भी रिश्वत देकर कारोबार करने के बजाए वैध तरीके से कारोबार करना चाहेगा। सरकार छोटे दुकानदारों को कारोबार के लिए सस्ती दर पर कर्ज दे, उन्हें कारोबार करने के लिए अनुदान दे या छोटे किस्तों वाला कर्ज दे तो कोई क्यों अवैध कारोबार करना चाहेगा।
सरकार की इन पाबंंदियों से लोग मांस-मछली खाना तो कम नहीं करेंगे या पूरा समाज शाकाहारी नहीं बन जाएगा। अभी तो लोगों को उम्मीद है कि कुछ दिनों में सब कुछ सामान्य हो जाएगा, अन्यथा मांसाहार खाने वालों को बेवजह महंगा सामान खरीदना पड़ेगा। भाजपा के नेताओं को पता है कि मांस-मछली खाने वालों में बहुसंख्यक समाज के लोगों की संख्या ज्यादा है। उन्हें परेशान करके भाजपा अपने समर्थकों की संख्या ही घटा रही है। एक तरफ लोगों को रोजगार देने और बिना भेदभाव के सबका साथ, सबका विकास का नारा दिया जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ हजारों लोगों का रोजगार बेवजह छीना जा रहा है।

