Gyanvapi Case: ज्ञानवापी केस में वाराणसी की जिला कोर्ट के सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक ने अपना फैसला सुना दिया है। कोर्ट ने हिंदू पक्ष की याचिका खारिज कर दी है। कोर्ट ने कहा कि ज्ञानवापी के पूरे परिसर का सर्वे नहीं कराया जाएगा। हिंदू पक्ष की याचिका में पूरे ज्ञानवापी परिसर की ASI सर्वे की मांग की थी। जिसको कोर्ट ने खारिज कर दिया है।

ज्ञानवापी मामले पर हिंदू पक्ष के वकील विजय शंकर रस्तोगी ने कहा कि न्यायालय ने एएसआई द्वारा पूरे ज्ञानवापी क्षेत्र की सुरक्षा के अतिरिक्त सर्वेक्षण के हमारे आवेदन को खारिज कर दिया है। हम इस फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट जाएंगे।

बता दें, कोर्ट में हिंदू पक्ष ने ज्ञानवापी के मुख्य गुंबद के नीचे शिवलिंग का दावा किया है। इसके साथ ही हिंदू पक्ष ने यहां खुदाई कराकर एएसआई सर्वे कराने की मांग की। हिंदू पक्ष की याचिका का मुस्लिम पक्ष ने विरोध करते हुए कहा था कि खुदाई से मस्जिद स्थल को नुकसान पहुंच सकता है।

चुनाव में BJP की कैसे मदद करता है RSS? महाराष्ट्र सरकार के मंत्री ने दिया बड़ा बयान 

ज्ञानवापी मस्जिद के मालिकाना हक हासिल करने के लिए साल 1991 में हरिहर पांडे, सोमनाथ व्यास और रामरंग शर्मा की ओर से एक याचिका दाखिल की थी। लगभग दो दशक चली सुनवाई के बाद हिंदू पक्ष की ओर से वाराणसी की सिविल जज सीनियर डिविजन फास्ट ट्रैक कोर्ट में दो मांग रखी गई। जिसमें पहली मांग ये थी कि वजूखाने का ASI सर्वे किया जाए, ताकि पता लगा सके कि क्या वाकई वहां पर शिवलिंग है या फव्वारा।

वहीं हिंदू पक्ष का दावा है कि मस्जिद के मुख्य गुंबद के नीचे 100 फीट का शिवलिंग है। ऐसे में मस्जिद के ढांचे को बगैर नुकसान पहुंचाए, खुदाई की जाए, ताकि शिवलिंग के दावे का पता लग सके। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर वजूखाने को सील किया गया है।

ज्ञानवापी केस की पृष्ठभूमि

ज्ञानवापी मामला बहस के केंद्र में रहा है, कुछ लोगों का मानना ​​है कि इसे काशी विश्वनाथ मंदिर के अवशेषों पर बनाया गया था। सुप्रीम कोर्ट, इलाहाबाद हाई कोर्ट और वाराणसी जिला न्यायालय सहित विभिन्न अदालतों में विभिन्न याचिकाओं ने इस विवाद के विभिन्न पहलुओं को संबोधित किया है।

यह सब कैसे शुरू हुआ

कानूनी लड़ाई 1991 में वाराणसी में दायर एक याचिका से शुरू होती है, जिसमें काशी विश्वनाथ मंदिर को ज्ञानवापीलैंड में बहाल करने की मांग की गई थी। दावा किया गया था कि मस्जिद का निर्माण औरंगजेब के आदेश पर किया गया था, जिसने कथित तौर पर 16वीं शताब्दी में मंदिर के एक हिस्से को तोड़ दिया था।

‘बीजेपी हम लोगों से आगे निकल गई…’करहल उपचुनाव के बीच अखिलेश यादव का बड़ा बयान, जानिए क्या हैं इसके मायने

मामला फिर से शुरू हुआ

2019 में वकील विजय शंकर रस्तोगी ने बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद एक याचिका दायर की। अदालत ने एएसआई को एक वैज्ञानिक सर्वेक्षण करने का निर्देश दिया, जिससे कानूनी कार्रवाइयों और प्रतिक्रियाओं की एक श्रृंखला शुरू हो गई।

मामले में न्यायपालिका के कदम

इस मामले में कई अदालती हस्तक्षेपों को देखा गया, जिसमें स्टे, एक्सटेंशन और विभिन्न आदेशों को चुनौती देना शामिल है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 2021 में पूजा स्थल अधिनियम, 1991 पर जोर देते हुए, 15 अगस्त, 1947 से पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र में परिवर्तन को रोकते हुए, वाराणसी न्यायालय में कार्यवाही पर रोक लगा दी थी।