Gujarat Assembly Election 2022: बीजेपी की केंद्रीय चुनाव समिति का फैसला है कि 75 साल की उम्र से ज्यादा किसी कैंडिडेट को टिकट नहीं दिया जाएगा। ये फार्मूला सारे देश में लागू किया गया है। लेकिन गुजरात में एक नेता इसका अपवाद भी हैं। मंजलपुर सीट से बीजेपी ने 76 साल के नेता को चुनाव मैदान में उतारा है, क्योंकि उनका दूसरा कोई विकल्प नहीं।

योगेश पटेल 76 साल के हैं। वो बीजेपी के सबसे उम्रदराज कैंडिडेट हैं। वो 1990 में पहली बार चुनाव मैदान में उतरे थे। उन्होंने पांच चुनाव राओपुरा सीट से जीते। फिर वो मंजलपुर से मैदान में आए। 2012 में ये सीट परिसीमन के बाद बनी थी। मंजलपुर से वो दो चुनाव जीत चुके हैं। इस बार इस सीट से हैट्रिक लगाने की तैयारी में हैं। राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि योगेश पटेल का अपना एक जनाधार है। वो जनता के बीच दशकों से मौजूद हैं। उनकी अपनी एक अपील है। वो अपने रुतबे के आधार पर चुनाव जीतते आ रहे हैं और फिर से मैदान में उतरकर अपना दम दिखा रहे हैं।

और भी हैं दिग्गज जो गुजरात (Gujarat) में लगातार जीत दर्ज कर रहे

योगेश पटेल समेत गुजरात असेंबली चुनाव में 7 कैंडिडेट्स ऐसे हैं जो पांच से ज्यादा बार चुनाव जीत चुके हैं। लेकिन फिर भी उनके दिल में विधानसभा में बैठने की ख्वाहिश दम नहीं तोड़ रही। वो फिर से ताल ठोक रहे हैं। इनमें से पांच सत्ताधारी बीजेपी से ताल्लुक रखते हैं जबकि 1 निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे हैं।

बीजेपी की तरफ से जिन पांच उम्मीदवारों पर फिर से दांव लगाया गया है उनमें मंजलपुर सीट से योगेश पटेल, द्वारका से पाबुभा मेनक, गरियाधर से केशु नाकरनी, भावनगर रूरल से पुरुषोत्तम सोलंकी और नाडियाड से पंकज देसाई का नाम शामिल है। इनके अलावा भारतीय ट्राईबल पार्टी (BTP) के फाउंडर छोटू वसावा और मधु श्रीवास्तव भी शामिल हैं। बीजेपी ने इन दोनों को टिकट देने से इन्कार किया तो ये निर्दलीय मैदान में आ गए।

मंजलपुर सीट से योगेश पटेल, द्वारका से पाबुभा मेनक सात बार चुनाव जीत चुके हैं। दोनों 8वीं बार मैदान में उतरे हैं। गरियाधर से केशु नाकरनी, मधु श्रीवास्तव छह चुनाव जीत चुके हैं। वो 7वीं बार मैदान में उतरे हैं। भावनगर रूरल से पुरुषोत्तम सोलंकी और नाडियाड से पंकज देसाई पांच चुनाव जीत चुके हैं। दोनों छठी बार जीत का परचम लहराने की जुगत फिर से भिड़ा रहे हैं।

पाबुभा मेनक को 2019 में हाईकोर्ट के दखल के बाद अयोग्य घोषित कर दिया गया था। इसके बाद उनकी सीट से उप चुनाव हुआ। हालांकि सुप्रीम कोर्ट से उन्हें राहत मिली लेकिन फैसले में ये भी कहा गया कि द्वारका सीट को खाली नहीं छोड़ सकते। 1990, 95, 98 में वो निर्दलीय चुनाव जीते। 2002 में वो कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते। 2007 में वो बीजेपी के टिकट पर जीतकर आए। छोटू वसावा ने भी पहला चुनाव 1990 में जनता दल के टिकट से जीता था। अगली बार वो निर्दलीय जीते। 2017 में उन्होंने BTP का गठन किया। जब उनके बेटे को आगे करके उन्हें रिप्लेस किया गया तो समर्थकों ने उनसे निर्दलीय उतरने का आह्वान किया।

मधु श्रीवास्तव ने पहला चुनाव निर्दलीय जीता था। फिर वो बीजेपी में आए और लगातार पांच चुनाव जीते। वो विवादों में भी आए जब बेस्ट बेकरी कांड के गवाह को धमकाने का उन पर आरोप लगा। बाकियों की भी कहानी कुछ ऐसी ही है। इनमें से ज्यादातर कैंडिडेट्स ऐसे हैं जो जमीन से ऊपर उठे। यही उनकी वो अपील है जिसके दम पर वो लगातार चुनावों में जीत दर्ज करते रहे हैं।

राजनीतिक विश्लेषक शिरीष काशीकर कहते हैं कि ये सारे लोग अपने आप में एक शख्सियत हैं। इन्हें जीत के लिए किसी के बैनर की जरूरत नहीं। ये लोगों के साथ सीधा संवाद रखते हैं।