दिल्‍ली के मुख्‍यमंत्री और आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल दलितों की मातमपुरसी करने शुक्रवार को गुजरात के उना पहुंचे। गुरुवार को राहुल गांधी भी गए थे। शनिवार को शरद यादव जाएंगे। क्या है केजरीवाल के उना दौरे का सियासी गणित-

केजरीवाल के लिए छवि चमकाने का मौका-

दिल्‍ली के 1.20 करोड़ वोटर्स में से 25 लाख दलित हैं। यूपी और पंजाब में भी दलित वोट अहम हैं। यूपी में 21 तो पंजाब में 32 फीसदी आबादी दलितों की है। पंजाब में आप खुद सक्रियता से चुनाव लड़ने जा रही है। गुजरात में भी अगले साल चुनाव है और वहां भी आप अपने पैर रखना चाह रही है। इस लिहाज से देखें तो केजरीवाल उना प्रकरण को दिल्‍ली के दलित वोटर्स के बीच अपनी छवि चमकाने और यूपी-पंजाब में भाजपा की संभावना कमजोर करने के साथ-साथ गुजरात में अपनी संभावना मजबूत करने का एक अच्‍छा मौका मान रहे होंगे।

भाजपा के लिए बड़ी मुसीबत-
वैसे तो गुजरात में दलितों की आबादी केवल आठ फीसदी है। इनमें से भी केवल एक फीसदी ही ऐसे हैं जो मरे हुए जानवरों की खाल उतार कर रोजी-रोटी चलाते हैं। लेकिन उना की घटना को लेकर इनके समर्थन में पूरा समुदाय और देश आ गया है। पटेल पहले से बीजेपी के खिलाफ हैं। इनकी आबादी गुजरात में 14 फीसदी है। पटेल और दलित मिल कर 23 फीसदी हो जाते हैं। इतनी बड़ी आबादी अगर नाराज हो जाए तो चुनावी खेल में जीत आसान नहीं रह जाती। इस नजरिये से भाजपा के लिए यह बड़ा क्राइसिस है। करीब 15 साल से पटेल और दलित भाजपा के साथ रहे हैं। इस चुनाव में ऐसा नहीं हुआ तो भाजपा के लिए संकट की स्थिति होगी।