गुजरात में 5वीं कक्षा की किताब में अंबेडकर के स्लोगन में बदलाव करने का मामला सामने आया है। इसके विरोध में राज्य के एक अंबेडकरवादी संगठन ने पिछले सप्ताह सीएम विजय रूपाणी के कार्यालय में ज्ञापन भी सौंपा था। इस संगठन ने नारे को पहले जैसा करने की मांग की है। इस मामले में शिक्षा मंत्री भूपेंद्र सिंह चुडस्मा ने शिक्षा विभाग व स्कूल टेक्स्टबुक बोर्ड की खास मीटिंग बुलाई और इस गलती को सुधारने के निर्देश दिए। बता दें कि इस संगठन ने अपनी शिकायत की एक कॉपी डिप्टी सीएम नितिन पटेल, सोशल जस्टिस एंड एंपावरमेंट मंत्री ईश्वर परमार और शिक्षा मंत्री के ऑफिस में भी दी है।
यह है विवाद की वजह: बता दें कि अंबेडकर ने शिक्षित, आंदोलित व संगठित रहने के संदर्भ में दिया था, जो गुजरात में दलित मूवमेंट की पहचान बन गया। गुजराती में यह ‘शिक्षित बनो, संगठित बनो और संघर्ष करो’ के रूप में काफी प्रचलित है। अंबेडकरवादी संगठन के लोग कक्षा 5 की गुजराती किताब में अंबेडकर के नारे में गड़बड़ी का विरोध कर हैं। इस किताब में एक चैप्टर है, जिसका टाइटल भारत रत्न – डॉ. अंबेडकर है। यह चैप्टर हस्यदा पांड्या ने लिखा है।
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स्लोगन में हुआ यह बदलाव: चैप्टर के एक हिस्से में लिखा है, ‘‘बाबासाहेब का एक नारा याद रखने योग्य है: शिक्षित बनो, संगठित बनो और दूसरों की मदद के लिए आत्मनिर्भर बनो।’’ संगठन के लोगों का कहना है कि किताब में दिया गया स्लोगन डॉ. अंबेडकर का नहीं है।
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यह है बाबासाहेब का असली नारा: बता दें कि बाबासाहेब का असली नारा शिक्षित बनो, आंदोलित रहो और संगठित रहो था। यह बहिश्रुत हितकारी सभा का लक्ष्य था, जिसकी स्थापना बाबासाहेब ने 1924 में की थी। ज्ञापन में लिखा है कि बाबासाहेब ने यह नारा 1945 में ऑल इंडिया शिड्यूल्ड कास्ट्स फेडरेशन की मीटिंग में प्रेरक भाषण के दौरान दिया था।
प्रदर्शनकारियों ने कही यह बात: अंबेडरवादियों का कहना है कि महान लोगों के ऐतिहासिक नारे आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देते हैं। हालांकि, नारों में इस तरह के बदलाव से बच्चों के मन पर गलत असर पड़ता है।