आम आदमी पार्टी (AAP) ने रविवार को घोषणा की कि उसके गुजरात के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार ईसुदान गढ़वी देवभूमि द्वारका जिले के खंभालिया विधानसभा सीट से आगामी विधानसभा चुनाव लड़ेंगे। अहीर समुदाय क्षेत्र का सबसे प्रभावशाली चुनावी समूह है और 1972 से केवल अहीर उम्मीदवार ही इस सीट से जीतकर विधानसभा पहुंचा है। अहीरों को गढ़वी समुदाय की तरह ही अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में रखा गया है।

ईसुदान गढ़वी का मुकाबला कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और मौजूदा विधायक विक्रम माडम और भाजपा के दिग्गज मुलु बेरा से होगा। विक्रम और बेरा के बीच प्रतिद्वंद्विता लगभग तीन दशक पुरानी है और दोनों 20 साल बाद एक दूसरे के खिलाफ मुकाबले के लिए तैयार हैं।

ईसुदान गढ़वी खंभालिया तालुका के पिपलिया गांव से हैं, लेकिन उनकी चुनावी शुरुआत आसान नहीं है क्योंकि एक गैर-अहीर उम्मीदवार ने आखिरी बार 1967 में इस सीट को जीता था। उस चुनाव में लोहाना समुदाय से ताल्लुक रखने वाली स्वतंत्र पार्टी के डीवी बरई ने तत्कालीन कांग्रेस विधायक हरिलाल नकुम, जो सत्ववारा समुदाय से आते हैं, उन्हें हराया था।

अहीरों का दबदबा 1972 में शुरू हुआ जब निर्दलीय उम्मीदवार हेमंत माडम ने नाकुम को हराया। माडम की बेटी पूनम माडम जामनगर से बीजेपी की मौजूदा सांसद हैं। हेमंत माडम ने एक निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में 1975, 1980 और 1985 में तीन बार सीट जीती। कांग्रेस 1990 में खंभालिया को वापस जीतने में कामयाब रही, जब हेमंत माडम मैदान में नहीं थे और भाजपा ने पहली बार निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ा था।

1993 में हेमंत माडम की मृत्यु हो गई थी और भाजपा ने 1995 में पहली बार निर्वाचन क्षेत्र जीता, जब बीजेपी के जेसा गोरिया ने रणमल को हराया। 1998, 2002, 2007 और 2012 में विधानसभा चुनाव जीतकर भाजपा ने अगले दो दशकों तक इस सीट पर अपनी मजबूत पकड़ बनाए रखी। लेकिन जो नहीं बदला वह यह था कि भाजपा के विजेता और कांग्रेस के उनके मुख्य प्रतिद्वंद्वी अहीर थे।

कांग्रेस और भाजपा दोनों नेताओं ने कहा कि अहीर मतदाता इस सीट पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सौराष्ट्र के एक भाजपा नेता ने कहा कि कोई भी पार्टी जो इस सीट को जीतना चाहती है, उसे एक अहीर को टिकट देना होगा। एक कांग्रेस नेता के मुताबिक, खंभालिया में 3.02 लाख मतदाता हैं, जिनमें से 52,000 अहीर हैं। उनके बाद मुस्लिम (41,000), सत्वर (21,000), दलित (18,000) और गढ़वी (15,000) हैं। सत्वर और गढ़वी ये दोनों भी ओबीसी हैं।

64 वर्षीय कांग्रेस विधायक विक्रम माडम ने कहा कि खंभालिया में चुनावी सफलता केवल अहीर मतदाताओं पर निर्भर नहीं करती है। उन्होंने कहा, “दो लाख से अधिक वोट अन्य समुदायों के हैं। मैं अकेला अहीर समुदाय का नेता नहीं हूं। मेरे समुदाय के मतदाताओं की वोटिंग 57 प्रतिशत से अधिक नहीं है और फिर भी मुझे 2017 में कुल लगभग 80,000 वोट मिले। यह इस बात का सबूत था कि सभी समुदायों के मतदाताओं ने मुझे वोट दिया।”

विक्रम माडन ने स्वीकार किया कि ईसुदान के राजनीति में प्रवेश ने उनके कार्य को और कठिन बना दिया था। उन्होंने कहा, “पढ़े-लिखे लोग जानते हैं कि AAP द्वारा दिए जा रहे मुफ्त उपहार टिकाऊ नहीं हैं। लेकिन जो पढ़े-लिखे नहीं हैं, वे मुफ्त बिजली आदि के लालच में आ सकते हैं। इस प्रकार से मैं कुछ वोटों को खोने जा रहा हूं और इससे मेरा काम और कठिन हो जाता है। लेकिन मोदी युग में कांग्रेसी के लिए कोई भी चुनाव आसान चुनाव नहीं है। मैं पिछले 15 सालों से बीजेपी के पैसे और बाहुबल के खिलाफ लड़ रहा हूं। यहां तक ​​कि इंदिरा गांधी और राहुल गांधी भी चुनाव हार गए, चुनाव में कुछ भी गारंटी नहीं है।”