Greater Ghaziabad News: बीते दिनों गाजियाबाद के अपने दौरे पर सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लोनी, मुरादनगर, खोड़ा और गाजियाबाद नगर निगम को मिलाकर ग्रेटर गाजियाबाद नगर निगम बनाने का ऐलान किया था। उनके इस फैसले का गाजियाबाद जिले के अधिकतर भाजपा नेताओं ने स्वागत किया है। हालांकि गाजियाबाद के पूर्व विधायक और उत्तर प्रदेश सरकार में मंंत्री रह चुके बालेश्वर त्यागी को योगी सरकार का यह फैसला पसंद नहीं आया है। उन्होंने फेसबुक पर एक लंबी पोस्ट के जरिए कहा कि ग्रेटर गाजियाबाद सुनने में जितना अच्छा लगता है , वास्तव में उतना ही अव्यवहारिक है।

बालेश्वर त्यागी ने फेसबुक पर ग्रेटर गाजियाबाद के फैसले को अव्यवहारिक बनाते के पीछे कई तर्क भी दिए। उन्होंने कहा, “…इस संबंध में जो नोएडा और ग्रेटर नोएडा का उदाहरण दिया जा रहा है, उन्हें अवगत कराना है कि नोएडा और ग्रेटर नोएडा दो अलग अलग स्वतंत्र प्रशासनिक यूनिट हैं। दोनों में नोएडा नाम के अलावा कुछ भी समानता नहीं है। दोनों शासन द्वारा अलग अलग घोषित प्रशासनिक अथॉरिटी हैं। दोनों के अलग चेयरमैन, सीईओ और प्रशासनिक अधिकारी हैं। नोएडा – ग्रेटर नोएडा और खोड़ा, लोनी और मुरादनगर का गाजियाबाद नगर निगम में विलय में कोई समानता नहीं है।”

उन्होंने ग्रेटर गाजियाबाद के फैसले को प्रशासनिक दृष्टि से खराब निर्णय बताते हुए कहा कि सारे देश में प्रशासनिक दक्षता के लिए छोटी प्रशासनिक यूनिट की मांग की जा रही है। भाजपा ने भी सिद्धांत रूप में प्रशासनिक दक्षता के लिए छोटे प्रदेशों को सिद्धान्तत: स्वीकार किया है। इसी क्रम में नए जिले, नई तहसील बनाई जा रही हैं। उनके प्रभावी प्रशासन के संचालन के लिए उनकी प्रशासन चलाने वाली मशीनरी वहीं स्थापित की जा रही है। दूसरी ओर चार अलग अलग नगर निकाय है नगर निगम गाजियाबाद, नगरपालिका परिषद खोड़ा, नगर पालिका परिषद लोनी और नगर पालिका परिषद मुरादनगर के स्वतंत्र अस्तित्व को समाप्त करके एक प्रशासनिक यूनिट नगर निगम गाजियाबाद में विलय करने का निर्णय किसी भी दृष्टि से उचित प्रतीत नहीं होता है। चारों नगर निकाय अलग हैं, चारों में कोई भी भौगोलिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक, आर्थिक या विकास के मानक पर समानता नहीं है।

‘गाजियाबाद के अपने साधनों का उपयोग भी अपने लिए नहीं हो सकेगा’

पूर्व मंंत्री ने आगे कहा, “गाजियाबाद का बड़ा हिस्सा नगर नियोजन के आधार पर विकसित है। प्रधानमंत्री जी के स्मार्ट सिटी के सुंदर सपने को गाजियाबाद के निवासी अपनी आंखों में संजोए बैठे हैं जबकि खोड़ा पूर्ण रूप से अनियोजित और अनधिकृत कॉलोनी के रूप में बसी है। अभी बहुत कम समय पहले उसे नगर निकाय घोषित किया है। इसलिए वह जनसुविधाओं के पहले पायदान पर भी ठीक से खड़ी नहीं है। लोनी भी उस तरह से विकसित नहीं है। दिल्ली के अति निकट होने के कारण बड़ी संख्या में कम साधन वाले लोगों ने अनधिकृत कॉलोनियों में छोटे छोटे आवास बनाए हैं। जिनमें नागरिक सुविधाओं का अभाव है। उसे भी नगर पालिका का दर्जा अभी पिछले दिनों ही मिला है। ऐसे ही मुरादनगर भी कोई नगर नियोजन के अनुसार विकसित शहर नहीं है। बड़ी संख्या में आसपास के गांवों में अनधिकृत कॉलोनियों में बसा है। गाजियाबाद बहुत पुराना शहर है। पाकिस्तान से विस्थापित होकर आए लोगों के प्रयासों से ये शहर कानपुर के बाद उद्योग की नगरी के रूप में जाना गया। 1991 में शासन परिवर्तन के साथ गाजियाबाद के विकास को पंख लगे। गाजियाबाद कस्बे से महानगर और अपराध की नगरी से शिक्षा के हब के रूप में विकसित हुआ। नोएडा के विकसित होने से पहले गाजियाबाद सेवानिवृति के बाद बसने की चाह रखने वालों की पहली पसंद बन गया था। एक तरह से ये निर्णय गाजियाबाद के विकास की गति को रोकने का काम करेगा। शासन की पहली प्राथमिकता जहां सुविधाएं नहीं हैं, पहले उन्हें सुविधा देने की रहती है। इस प्रयास में गाजियाबाद के अपने साधनों का उपयोग भी अपने लिए नहीं हो सकेगा।”

‘असंतोष का कारण बनेगा फैसला, खींचतान बढ़ेगी’

बालेश्वर त्यागी ने अपनी पोस्ट में यह भी कहा कि ग्रेटर गाजियाबाद बनने के बाद अपने क्षेत्रों के अलग अलग मेयर / नगर पालिका अध्यक्ष होने का अधिकार समाप्त हो जाएगा। चार लोगों को जनप्रतिनिधि होने और अपने अपने क्षेत्रों के विकास के प्रयासों पर अंकुश लग जाएगा, जो उन क्षेत्रों में बड़े असंतोष का कारण बनेगा। परस्पर सहजता सामंजस्य और स्नेह के स्थान पर प्रतिद्वंदिता और खींचतान बढ़ेगी। अलग-अलग छोटी यूनिटों को समाप्त करके एक बड़ी यूनिट बनाना, चार जनप्रतिनिधियों के अधिकारों को समाप्त करके एक को देना बड़ा केंद्रीकरण का निर्णय होगा जो धारा के विपरीत है। लोकतंत्र में एकाधिकार को बढ़ावा देना किसी भी दृष्टि से श्रेय कर नहीं होगा, परिणाम स्वरूप प्रशासन निष्प्रभावी हो जाएगा।

उन्होंने आगे कहा कि सीवर सफाई, झाड़ू लगवाने, नाली साफ कराने, सड़क की मरम्मत जैसे छोटे छोटे कामों के लिए खोड़ा, लोनी और मुरादनगर के लोगों को गाजियाबाद दौड़कर आना एक बड़ी समस्या हो जाएगी। आज भी गाजियाबाद में जिन लोगों को सीवर साफ कराने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ती है क्योंकि इनके ठेके लखनऊ में छूटते हैं और वे कई बार स्थानीय प्रशासन को भी कुछ नहीं समझते हैं। उन्होंने कहा, “मुझे याद है एक बार मेरे घर का सीवर साफ करने का अधिकारी के आदेश पर एक पेटी ठेकेदार सबको गाली निकाल रहा था। जब नई जोड़ी जाने वाली नगर निकायों पर गाजियाबाद जैसा संपत्तिकर लगेगा तब उन क्षेत्रों में असंतोष भड़कना स्वाभाविक है।

ग्रेटर गाजियाबाद करेगा बीजेपी का नुकसान?

उन्होंने ग्रेटर गाजियाबाद से बीजेपी को फायदे की जगह नुकसान होने की संभावना व्यक्त करते हुए कहा, “भाजपा को इसका राजनैतिक लाभ के स्थान पर हानि होगी। इस निर्णय से जो भी असंतोष होगा विपक्ष उस असंतोष की खेती करेगा। उसका सारा अपयश भाजपा के हिस्से में ही आएगा। तीनों क्षेत्रों के एक इकाई बनने के बाद स्थानीय निकाय चुनावों समीकरण भाजपा के अनुकूल होंगे ये तो आवश्यक नहीं है। कहीं ये निर्णय भाजपा के लिए ‘वाटर लू’ न साबित हो जाए। भाजपा को इस निर्णय को लागू करने से पहले इस पर बहस करानी चाहिए। ताकि सारे पक्ष सामने आ सकें। Greater Ghaziabad को लेकर क्या है सीएम योगी आदित्यनाथ का प्लान?