कई राज्यों से बढ़ते दबाव के बीच केंद्र सरकार ने शुक्रवार को वह अध्यादेश लाने को मंजूरी दे दी जिससे राज्य सरकार के शिक्षा बोर्डों को इस साल राष्ट्रीय पात्रता प्रवेश परीक्षा (एनईईटी) के दायरे से बाहर रखा जा सकेगा। केंद्रीय कैबिनेट की ओर से मंजूर किए गए अध्यादेश का मकसद सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश को आंशिक तौर पर पलटना था जिसमें कहा गया था कि सभी सरकारी कॉलेजों, डीम्ड विश्वविद्यालयों और निजी मेडिकल कॉलेजों को एनईईटी के दायरे में लाया जाएगा। कैबिनेट की बैठक का यही एकमात्र एजंडा था ।

यह रियायत सिर्फ राज्य सरकार की सीटों के लिए होने की बात स्पष्ट करते हुए सूत्रों ने कहा कि निजी मेडिकल कॉलेजों में निर्धारित राज्य सरकार की सीटों को भी इस साल एनईईटी से छूट दी गई है। विभिन्न राज्य सरकारें राज्य कोटा के लिए विभिन्न मेडिकल कॉलेजों में 12-15 सीटें निर्धारित करती हैं ताकि किसी एक राज्य के छात्र दूसरे राज्य में सीट हासिल कर सकें। ऐसे कॉलेजों में शेष सीटें डोमिसाइल छात्रों के लिए आरक्षित होती हैं। अब इस अध्यादेश से डोमिसाइल छात्रों के लिए निर्धारित शेष सीटें एनईईटी के दायरे में आएंगी ।

सूत्रों के मुताबिक 15 से ज्यादा राज्य एनईईटी के विरोध में थे और राज्यों के स्वास्थ्य मंत्रियों की बैठक के दौरान अलग-अलग पाठ्यक्रमों और भाषाओं जैसे मुद्दे उठाए थे। परीक्षा का अगला चरण 24 जुलाई को होना है। करीब 6.5 लाख छात्र बीते एक मई को हुए एनईईटी के पहले चरण में शामिल हो चुके हैं। अध्यादेश जारी किए जाने के बाद राज्य सरकार के बोर्डों के छात्रों को 24 जुलाई को एनईईटी में शामिल नहीं होना होगा। बहरहाल, उन्हें अगले शैक्षणिक सत्र से एनईईटी में शामिल होना होगा।

यह परीक्षा केंद्र सरकार और निजी मेडिकल कॉलेजों के लिए आवेदन करने वाले छात्रों पर लागू होगी। स्वास्थ्य मंत्रियों के सम्मेलन में हाल ही में राज्यों ने कई मुद्दे उठाए थे जिसमें छात्रों की भाषा और पाठ्यक्रम से जुड़ी समस्याएं शामिल थीं। मसलन राज्य के बोर्डों से संबद्ध छात्रों को जुलाई में एनईईटी में शामिल होने में दिक्कतें आएंगी और ऐसे छात्र केंद्रीय बोर्डों के छात्रों की तुलना में नुकसान में रहेंगे।