असम की तर्ज पर जल्द ही पूरे देश में राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) बनने जा रहा है। केंद्र सरकार ने सितंबर 2020 तक इसे तैयार करने का फैसला लिया है। एनपीआर में देश के स्थायी निवासियों की पूरी लिस्ट तैयार होगी। माना जा रहा है कि यह असम में लाए गए एनआरसी का अखिल भारतीय संस्करण होगा जिसे एनआरआईसी कहा जाएगा। एक अधिकारी के हवाले से पीटीआई ने इस संबंध में जानकारी दी है।
क्या है एनपीआर का मकसद? एनपीआर बनाने का उद्देश्य देश के हर नागरिक के लिए एक व्यापक पहचान डेटाबेस तैयार करना है। डेटाबेस में जनसांख्यिकी और बायोमेट्रिक जानकारी रहेगी। एक अधिकारी ने बताया कि एनपीआर देश में रहने वाले नागरिकों की एक सूची होगी। एनपीआर के पूरा होने और प्रकाशित होने के बाद भारतीय नागरिक राष्ट्रीय पंजी (एनआरआईसी) तैयार करने के लिए इसके एक आधार बनने की उम्मीद है।
यह है एनपीआर का पैमानाः एनपीआर के लिए किसी नागरिक को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया जाएगा, जो उस स्थानीय इलाके में पिछले छह महीने से रह रहा हो या जो इलाके में छह महीने या इससे अधिक समय तक रहने का इरादा रखता हो। महापंजीयक एवं जनगणना आयुक्त विवेक जोशी ने कहा, ‘नागरिकता (नागरिकों के पंजीयन एवं राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी करने संबंधी) नियमावली, 2003 के नियम तीन के उप नियम (4) के अनुपालन में केंद्र सरकार ने जनसंख्या पंजी तैयार करने और उसे अपडेट करने का फैसला किया है। असम को छोड़कर देशभर में घर- घर जाकर गणना करने के लिए और सभी लोगों की सूचना एकत्र करने के वास्ते फील्ड वर्क 1 अप्रैल 2020 से 30 सितंबर 2020 तक किया जाएगा।’
एनपीआर देश के नागरिकों की एक पंजी होगी। इसे स्थानीय ग्राम, कस्बा, अनुमंडल, जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर तैयार किया जाएगा। इसे नागरिकता अधिनियम 1955 और नागरिकता नियमावली, 2003 के तहत तैयार किया जा रहा है। भारत के प्रत्येक नागरिक को एनपीआर में पंजीयन कराना अनिवार्य होगा। 17वीं लोकसभा के गठन के बाद 20 जून को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के अभिभाषण में नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल की प्राथमिकताओं का उल्लेख किए जाने के करीब महीने भर बाद यह कदम उठाया गया है। गौरतलब है कि असम में पिछले साल 30 जुलाई को जब एनआरसी का मसौदा प्रकाशित किया गया था जब 40.7 लाख लोगों को इससे (पंजी से) बाहर किये जाने को लेकर एक विवाद पैदा हो गया था।