विकास दुबे के एनकाउंटर के बाद इस पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं। सोशल मीडिया पर यूजर्स पुलिस की इस कार्रवाई को लेकर बातें कर रहे हैं। वहीं कई वरिष्ठ पत्रकार भी पुलिस की इस कार्रवाई की आलोचना कर रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार राहुल कंवल ने एक ट्वीट कर लिखा कि “यूपी पुलिस कानून में यकीन रखती तो विकास दुबे का त्वरित ट्रायल करके नेता-माफिया गठजोड़ का खुलासा करती। गैंगस्टर का एनकाउंटर करके यूपी पुलिस ने न्यायिक प्रक्रिया का मजाक उड़ाया है। बदले के लिए हत्याएं माफिया करते हैं पुलिस नहीं। सबसे बुरा तो ये है कि ऐसा होने की आशंका पहसे से ही थी।”

वहीं टीवी पत्रकार श्वेता सिंह ने ट्वीट करते हुए लिखा कि “आज भी गैंगस्टर की सांठगांठ है। गिरफ्तारी का ड्रामा ताकि जिंदा रहे। चुनाव लड़ेगा ये।” “फर्जी एनकाउंटर! मार डाला ताकि राज न उगले।” चित मैं जीता, पट तू हारा वाला सिक्का भी पलट पलट के परेशान है। वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष ने ट्वीट करते हुए लिखा कि “विकास दुबे अगर जिंदा रहता तो यूपी के कई बड़े नेता जीते जी मर जाते!”

एक अन्य पत्रकार संगीता तिवारी ने विकास दुबे एनकाउंटर पर पुलिस के दावों पर तंज कसते हुए ट्वीट करते हुए लिखा कि “कहानी घिसी पिटी है…।” इंडिया टुडे के एग्जीक्यूटिव एडीटर साहिल जोशी ने ट्वीट कर लिखा कि मैं गलत था, कल जब कई लोग कह रहे थे कि विकास दुबे का एनकाउंटर हो जाएगा लेकिन मैं कह रहा था कि यह कैसे संभव है, जब मीडिया पुलिस के काफिले का पीछा कर रही है और सभी जानते हैं कि उसने दिन के उजाले में सरेंडर किया है। लेकिन मैं ये अंदाजा नहीं लगा सका।

सोशल मीडिया पर एक यूजर ने ट्वीट करते हुए लिखा कि तस्वीरों में दिखाई दे रहा है कि विकास दुबे को एनकाउंटर से कुछ देर पहले ही एक टाटा एसयूवी में से उतारकर महिंद्रा एसयूवी में बिठाया गया जो कि पलट गई। इस पूरे मसले पर कई सवाल खड़े हो गए हैं। इस ट्वीट को रिप्लाई करते हुए वरिष्ठ पत्रकार अजीत अंजुम ने लिखा कि “यही सवाल है कि गाड़ी क्यों बदली गई? विकास दुबे के एनकाउंटर से पहले पीछे आ रहे मीडिया वालों को कई किमी पहले क्यों रोक दिया गया? गाड़ी पलटी कैसे? और इतने खतरनाक गैंगस्टर के हाथ को खुला रखकर आराम से ले जाया जा रहा था? अब सारे राज दफन हो जाएंगे?”