एकबारगी तो लोग हैरान होंगे, लेकिन यह बाजीगरी दिल्ली पुलिस ने कर दिखाया है। वह भी पुलिस के कोई आला अधिकारी नहीं बल्कि सब इंस्पेक्टर के नेतृत्व में बनी टीम के एक कांस्टेबल ने।

मामला चौंकाने वाला तो लग सकता है लेकिन जब पुलिस ने ही यह दावा किया है तो इसे स्मार्ट पुलिस नहीं तो और क्या कहेंगे? तब यह चर्चा होना लाजिमी है कि अब दिल्ली पुलिस को सभी एजंसियों में सबसे स्मार्ट का तमगा मिल जाए तो भला किसी को क्या आपत्ति हो सकती है।

निगम मोहताज

नए महापौर के लिए कुर्सियां सज गई थी। गद्देदार सोफा बिछ गया था। शाम को कौन-कौन मिलने आने वाले हैं, इसकी सूची बनाई जा रही थी। अधिकारी से लेकर दरबान तक सभी खुद को खासमखास बनने और दिखाने के नुस्खे याद कर रहे थे तभी पता चला कि सदन स्थगित हो गई और यह सब धरा का धरा रह गया। मोहताज हो गया निगम और मोहताज हो गया साजो सामान की देखरेख करने वाले कर्मचारी।

बेदिल को पता चला कि महापौर के लिए उस कमरे को सजाया गया था जहां निगम के केंद्र से भेजे गए सबसे बड़े अधिकारी विराजमान थे। लेकिन कहते हैं नसीब ऊपर से लिखा के आता है। जब समय आएगा तब सब कुछ मिल जाएगा अन्यथा सिर फुटव्वल करते रहिए।

मर्यादा की चिंता

दिल्ली नगर निगम की पिछले दो बैठकों में निर्वाचित जनप्रतिनिधियों ने जिस प्रकार का रवैया अपनाया, उसको लेकर सवाल उठने लगे हैं। दोनों ही पार्टियों के अंदरखाने इस बात कर चर्चा जोरों पर है कि सभी को संवैधानिक मयार्दा का पालन करना चाहिए। पर अकसर देखा गया है कि जब भी किसी पार्टी के नेता सदन के अंदर या फिर बाहर विपक्ष पर हमला करते हैं।

अपनी मयार्दा भूल जाते हैं और दूसरे के लिए असंसदीय भाषा का इस्तेमाल करते हैं। पिछले दिनों निगम सदन में जो कुछ हुआ। उससे तो यही अंदाजा लगाया जा सकता है कि एक बार चुनाव जीतने के बाद नेता जी भूल जाते हैं कि यह सड़क नहीं सदन है, जहां पर उन्हें अपनी बातों को रखने के लिए समय के साथ मर्यादित भाषा का इस्तेमाल करना चाहिए।

पूजास्थल का आबंटन

उत्तर प्रदेश के औद्योगिक महानगर में इन दिनों एक धार्मिक स्थान के लिए आरक्षित भूखंड का आबंटन चर्चा में है। वैसे तो प्राधिकरणों में अब सभी तरह के आवंटन बोली से किए जा रहे हैं लेकिन धार्मिक स्थान का आबंटन साक्षात्कार के आधार पर होना है। सेक्टर-93बी स्थित इस भूखंड के लिए दो दावेदार, एक तरफ बड़े उद्योगपति और दूसरी तरफ एक धार्मिक सोसाइटी है।

धार्मिक स्थान की श्रेणी वाले इस भूखंड की बाजी किसके हाथ लगेगी, इसको लेकर शहर के एक खास वर्ग में खासी गहमागहमी है। दिसंबर में प्राधिकरण ने यह योजना निकाली थी। यह दिलचस्प मुकाबला एक बड़े उद्यमी संस्थान की चैरिटेबल ट्रस्ट और शहर के बड़ी संख्या में निवासियों से जुड़ी धार्मिक संस्था के बीच है। इस पर निर्णय सोमवार शाम तक होने की उम्मीद है।

तूफान के निशान

दिल्ली में करीब सात माह बीत जाने के बाद भी तूफान के निशान अब तक बने हुए हैं। बीते साल मई में आंधी की वजह से बड़े-बड़े पेड़ व होर्डिंग्स गिर गए थे। इस आंधी में जनता को मार्ग दिखाने वाले मार्गदर्शक निशान भी गायब हो गए। इसके बाद चली राजनीतिक गतिविधियों की आंधी में नए पोस्टर बैनर जरूर नजर आए हैं लेकिन सरकारी एजंसियों ने जनता की सुविधा के लिए लगाए मार्ग संकेतक अभी तक दुरूस्त नहीं किए हैं। यह नजारा लोक निर्माण विभाग के मार्ग पर आम है।

-बेदिल