उन्नाव कांड की शुरुआत 4 जून 2017 को माखी गांव में हुई थी। पीड़ित युवती अपने पड़ोस में रहने वाले विधायक जी से नौकरी मांगने गई थी।आरोप है कि उसे नौकरी तो नहीं मिली, लेकिन उसका बलात्कार किया गया। पीड़िता ने अपने घरवालों को पूरा मामला बताया और न्याय के लिए लड़ने की ठानी। हालांकि, विधायक जी का रसूख इतना ज्यादा था कि कानून उसके आगे बौना पड़ गया। युवती ने पुलिस में तहरीर देने की कोशिश की, लेकिन बार-बार शिकायत के बावजूद सुनवाई नहीं हुई। ऐसे में उसने आत्मदाह करने का प्रयास किया, फिर भी विधायक धमकाता रहा। साथ ही, पुलिस हिरासत में युवती के पिता की मौत हो गई। इसके अलावा पीड़िता के परिवार का जीना मुश्किल कर दिया। तंग आकर युवती ने सुप्रीम कोर्ट के जज को चिठ्ठी लिखी। 35 बार शिकायत की, लेकिन फिर भी नहीं सुनी गई। विधायक जी यानि कुलदीप सिंह सेंगर के आगे कानून, पुलिस और इंसाफ सब छोटे पड़ जा रहे थे। क्यों सेंगर का सियासी रसूख इतना ज्यादा था? आइए जानते हैं सेंगर की सियासी विरासत के बारे में।

1987 में पहली बार लड़ा था चुनाव: 1987 में महज 21 साल की उम्र में कुलदीप सिंह सेंगर ने पहली बार चुनाव लड़ा था। यह चुनाव था ग्राम प्रधान का, जिसे वह निर्विरोध चुनाव जीत गया। बताया जाता है कि उसकी टक्कर में कोई था ही नहीं। उम्र का हवाला देकर विरोधियों ने उसे हटाने की कोशिश की, लेकिन सेंगर ने एक नहीं चलने दी। बता दें कि कुलदीप सिंह सेंगर की राजनीतिक विरासत की जड़ें उन्नाव में काफी गहरी हैं। आजादी के बाद से ही माखी गांव की राजनीति पर सेंगर परिवार का कब्जा रहा। कुलदीप ने राजनीति का ककहरा अपने नाना बाबू सिंह से विरासत में सीखा। बाबू सिंह ने राजनीति के जो बीज बोए थे, उसे कुलदीप सिंह ने बरगद जैसा विशाल बना दिया। उन्नाव में हालात ऐसे हो गए कि ग्राम प्रधान कौन होगा, यह भी सेंगर परिवार ही तय करता है। आलम यह है कि सेंगर की मर्जी के बिना कोई पर्चा तक नहीं भर सकता।

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2002 में बीएसपी से लड़ा चुनाव: कुलदीप सिंह सेंगर भी नाना के नक्शेकदम पर राजनीति में बढ़ता चला गया। सबसे पहले 2002 में उसने बीएसपी के टिकट पर पहली बार विधायक का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। हालांकि, बीएसपी में अंदर ही अंदर वह खेल करने लगा। ऐसे में मायावती ने सेंगर को बाहर का रास्ता दिखा दिया। बीएसपी से निकलते ही सेंगर ने समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया। एसपी ने बांगरमऊ से टिकट दिया और वह दोबारा विधायक बन गया। 2012 में भगवंत नगर सीट से टिकट मिला तो सेंगर वहां से भी जीत गया। हालांकि, उन्नाव की राजनीति में किसी दूसरे का दखल सेंगर को मंजूर नहीं था। बताया जाता है कि 2015 में जिला पंचायत अध्यक्ष के टिकट को लेकर अखिलेश यादव ने पेंच फंसाया तो कुलदीप सेंगर ने उनकी भी नहीं सुनी। उसने सपा से तुरंत इस्तीफा दे दिया और बीजेपी में शामिल हो गया।

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उन्नाव में चलता है सेंगर का सिक्का: सेंगर किसी भी पार्टी से हो, उन्नाव में उसकी जीत तय थी। ऐसे में साल 2017 में बीजेपी ने सेंगर को बांगरमऊ विधानसभा सीट से टिकट दे दिया। सेंगर वहां से भी जीत गया। दरअसल, कुलदीप सेंगर की गिनती यूपी के मजबूत ठाकुर लॉबी के नेताओं में होती है। उन्नाव ठाकुर बहुल इलाका है, इसलिए जातिगत समीकरण सेंगर के पक्ष में है। वहीं, सेंगर को बाहुबली नेता रघुवर प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया के गुट का अहम सदस्य माना जाता है। यह भी कहा जाता है कि समाजवादी पार्टी और बीजेपी में रहने के दौरान राजा भैया ने ही कुलदीप सेंगर की सेटिंग पार्टी के आला नेताओं से कराई थी।

पुलिस पर फायरिंग कर चुका सेंगर का भाई: राजनैतिक रसूख के साथ-साथ सेंगर के परिवार की गुंडागर्दी भी अपने चरम पर है। अपनी तरफ उठने वाली हर उंगली को वह तोड़ देने में विश्वास करता है। आरोप है कि सेंगर ने जमकर अवैध खनन किया और पैसा कमाया। एक रिपोर्टर ने जब इसकी खबर चलाई तो सेंगर के गुर्गे उसके पीछे पड़ गए। रिपोर्टर की पिटाई करने के साथ ही उसके खिलाफ मुकदमे लाद दिए गए। सूत्रों के मुताबिक, इस परिवार की दबंगई इतनी ज्यादा है कि विधायक का भाई अतुल सेंगर पुलिस पर ही फायरिंग कर चुका है।

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बीजेपी में भी सेंगर की जड़ें मजबूत: माना जाता है कि पैसा, गुंडागर्दी और सियासत के कारण सेंगर की सल्तनत मजबूत होती चली गई। कुलदीप सिंह सेंगर ने कम समय में ही बीजेपी में भी अपनी जड़ें मजबूत कर ली थीं। विधायक चुने जाने के बाद पार्टी संगठन के अलावा सरकार में भी उसकी खूब चलती थी। सीएम योगी ने भले ही उसे मंत्री न बनाया हो, लेकिन उन्नाव में उसका रुतबा किसी मंत्री से कम नहीं है। सरकारी ठेके से लेकर शहर के साइकिल स्टैंडों के ठेके तक पर विधायक और उसके गुर्गों का कब्जा है। उन्नाव में सेंगर के खिलाफ आवाज उठाना तो दूर, कोई चूं तक नहीं कर सकता।

जेल में बैठे-बैठे सेंगर ने जिताया चुनाव: इतना सबकुछ हो गया। सेंगर के नाम के साथ बीजेपी की इतनी किरकिरी हुई। फिर भी बीजेपी के साक्षी महाराज सांसद बनने के बाद जेल में बंद कुलदीप सेंगर से मिलने पहुंचे। तो सवाल यह है कि जेल में बैठे-बैठे सेंगर ने चुनाव कैसे जितवा दिया? पीड़िता के परिवार वाले कई बार आरोप लगा चुके हैं कि सेंगर के पास जेल में फोन है और वह वहां से ही धमकी देता रहता है। 2017 में सामने आए इस मामले को तीन साल हो गए हैं। पीड़िता ने अपने पिता, चाची, मौसी को खो दिया। इंसाफ मिलना दूर रहा, वह अस्पताल में जिंदगी और मौत से जंग लड़ रही है। बार-बार मांग उठती रही कि कुलदीप सिंह सेंगर को पार्टी से क्यों नहीं निकाला। बीजेपी ने सेंगर को सस्पेंड कर रखा था, लेकिन निकालने के सवाल पर मौन हो जाती थी। अब जाकर पार्टी ने इतने बवाल के बाद सेंगर को पार्टी से निकाला है।