इंदिरा जी ने दूसरे राज्यों के साथ पंजाब की सरकार को भी बर्खास्त कर दिया था और वहां राष्ट्रपति शासन लगा दिया था। नियम के मुताबिक राष्ट्रपति शासन के दौरान राज्यपाल को राष्ट्रपति का प्रतिनिधि होने के नाते पूरा प्रशासन संभालना होता है। आप जानते हैं कि केंद्र राज्यपालों से कैसा बर्ताव करता है और इंदिरा गांधी के राज में तो मुख्यमंत्री की हैसियत ही चपरासी से ऊंची नहीं होती थी तो बेचारे मनोनीत राज्यपाल तो कहीं गिनती में नहीं आते थे।
उस समय जयसुखलाल हाथी, पंजाब के राज्यपाल हुआ करते थे। वे संविधान और कायदे कानून के न सिर्फ जानकार थे बल्कि कामकाज भी उसी के अनुसार चलाने के आग्रही थे। लेकिन वो प्रशासन में ज्ञानी जैलसिंह की दखलअंदाजी से नाखुश थे। राज्यपाल कुछ दिन पहले ही पंजाब के किसी कस्बे से किसी कार्यक्रम के बाद लौटे थे। तभी वहां ज्ञानी जैलसिंह सीमा सुरक्षा बल के एक हवाई जहाज से पहुंच गए। वो सिर्फ इसलिए आए कि उन्हें पंजाब सर्विस कमिशन में एक ऐसे व्यक्ति को मनोनीत करवाना था जो उनका कारकून, पीए या ऐसा ही कुछ रह चुका था जब वे पंजाब के मुख्यमंत्री थे।
राज्यपाल को यह अजीब लग रहा था कि देश का गृहमंत्री अपने किसी पुराने और वफादार कर्मचारी को पब्लिक सर्विस कमिशन का सदस्य बनवाने के लिए सरकारी विमान ले कर आए और राज्यपाल के पीछे पड़े कि उसे बनवा ही दो। सार्वजनिक सुविधाओं और पदों का यह सरासर दुरुपयोग था।
इससे राज्यपाल बेहद दुखी हुए और उन्होंने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नाम एक लंबी चिट्ठी लिखने की तैयारी कर रहे थे, जिसमें सुझाया गया था कि राष्ट्रपति शासन का मतलब केंद्र का सीधा शासन होना चाहिए और उसमें राज्यपाल की वही भूमिका होनी चाहिए जो निर्वाचित सरकार के होते हुए होती है। राज्यपाल के नाम से गृहमंत्री का दिल्ली से शासन चलाना राज्यपाल की संवैधानिक गरिमा और संविधान के अनुसार नहीं है। हालांकि यह किसी को पता नहीं चला कि जयसुखलाल हाथी ने वह पत्र फाइनल किया था या नहीं और इंदिरा जी को भेजा था या नहीं।
राजनीति से दूर करने के लिए बनाए गए थे राष्ट्रपति: ढाई साल में ही प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को यह लगने लगा कि ज्ञानी जैलसिंह के गृहमंत्री रहते पंजाब सरकार ठीक से काम नहीं कर पाएगी। पंजाब में उस समय आतंकवाद भी बढ़ रहा था। इसलिए उन्हें राजनीति से काटने और रायसीना के टीले पर किसी अल्पसंख्यक को बैठाने के लिए इंदिरा गांधी ने ज्ञानी जैलसिंह को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया।
सन् 82 में कांग्रेस और इंदिरा गांधी के पास इतनी ताकत थी कि वो किसी को भी राष्ट्रपति बनवा दें। ज्ञानी जैलसिंह को राजनीति से काटने के लिए इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति बनाया। राजकाज में वर्चस्व रखने वाले ज्ञानीजी राष्ट्रपति बने और शान से कार्यकाल पूरा किया।