भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (आइआइटी) के 50 छात्रों ने बहुजन आजाद पार्टी नाम का एक राजनीतिक दल बनाया है और वे आगामी लोकसभा चुनाव के मैदान में भी उतरेंगे। जीत-हार की परवाह किए बिना ये छात्र चुनाव की तैयारी में व्यस्त हैं। चुनाव आयोग से उन्हें चुनाव चिह्न भी मिल गया है, लिहाजा अब उनका ध्यान सिर्फ चुनाव की तारीखों पर टिका है। पार्टी के सदस्यों का कहना है कि भाजपा, कांग्रेस, सपा, बसपा सहित अन्य सभी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीतिक दलों से उनका एजंडा अलग है। उनकी पार्टी में ऐसे लोग हैं जो आजादी के 70 साल के बाद भी हाशिए पर हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और भ्रष्टाचार इस पार्टी के मुख्य मुद्दे हैं लिहाजा वे इन्हीं मुद्दों के साथ चुनावी मैदान में उतरेंगे। इस अभियान में उन्हें जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय और दिल्ली विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों से पढ़ाई कर चुके छात्रों का समर्थन मिल रहा है। ये छात्र इसी हफ्ते दिल्ली में अपना चुनावी एजंडा सबके सामने रखेंगे।

साल 2015 में आइआइटी दिल्ली से टेक्सटाइल्स में ग्रेजुएट नवीन कुमार इस दल का नेतृत्त्व कर रहे हैं। नवीन मानते हैं कि देश के पैसे से पढ़े हैं तो अपनी योग्यता और दक्षता को यहीं लगाना हमारा फर्ज बनता है। समाज के सबसे कमजोर तबके के लोगों को उनका अधिकार मिले और वे समान रूप से शिक्षा ग्रहण करें, यही इच्छा उन्हें राजनीति में खींच लाई। नवीन मानते हैं कि देश की 90 फीसद आबादी में फिर से उम्मीद की किरण तभी जागेगी, जब उनके जैसे छात्र उन्हें रोजगार से जुड़ने का तरीका बताएंगे और यह भी बताएंगे कि यह सब तब होगा जब देश की लोकतांत्रिक प्रणाली में उनकी अहमियत तय होगी। साल 2006 में आइआइटी दिल्ली से मैकेनिकल डिग्री लेकर बैंकॉक में स्टार्टअप शुरू करने वाले आनंद कुमार मौर्या भी इस पार्टी का हिस्सा हैं। उनकी पत्नी नीता मौर्या और तीन साल का बेटा क्रिस उर्फ कृष्णा इस समय बैंकॉक में ही है। पत्नी और बेटे को छोड़कर देश के लिए कुछ करने की उम्मीद में लौटे आनंद कहते हैं कि दुबई और बैंकॉक जैसे शहरों में नौकरी और स्वरोजगार के दौरान उन्हें अहसास हुआ कि यही काम अपने देश में किया जाए तो उनकी पढ़ाई सार्थक हो पाएगी।

आइआइटी खड़गपुर से 2014 में पढ़ाई करने वाले अखिलेश कहते हैं कि राजनीति उनके लिए त्याग की तरह है। अखिलेश का दावा है कि उन्हें 2010 में जम्मू-कश्मीर के टॉपर रहे और नौकरी से इस्तीफा देकर समाजसेवा की राह पकड़ने वाले शाह फैजल जैसे लोगों का भी समर्थन हासिल है। आइआइटी खड़गपुर से ही 2014 में पढ़ाई करने वाले सुमित कहते हैं कि देश में जो हो रहा है उस पर चुप रहना गुनाह की तरह है। राजनीतिक दलों ने हमें मजबूर कर दिया है कि वे जो कहेंगे हमें सुनना पड़ेगा। इस मिथक को तोड़ना पड़ेगा और यह तब होगा जब हमारे जैसे युवा नौकरी का लालच छोड़कर समाजसेवा और राजनीति में कदम रखें। बंगलुरु आइआइएससी से 2015 में पढ़े अमित कुमार का कहना है कि एकल शिक्षा प्रणाली हमारे लिए चांद की तरह क्यों रहे? गरीब का बच्चा सरकारी स्कूल में पढ़ता है और अमीर का बच्चा निजी स्कूल में। आगे जाकर नौकरी में भी उसके साथ यही भेदभाव होगा। हमें इसी भेदभाव को मिटाना है।