केंद्र के तीन नए कृषि बिलों के खिलाफ किसानों के प्रदर्शन के बीच सोशल मीडिया में एक वीडियो खूब वायरल हो रहा है। वीडियो में प्रदर्शनकारी किसान महिलाएं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ खराब भाषा का इस्तेमाल कर नारेबाजी कर रही हैं। वीडियो दिल्ली-जयपुर हाइवे का बताया जाता है जिसमें महिलाएं हाय-हाय मोदी मरजा तू… जैसे नारे लगा रही हैं। इसमें महिलाएं कह रही हैं, ‘हाय-हाय मोदी मरजा तू। शिक्षा बेचकर खा गया रे, मोदी मर जा तू। रेल बेचकर खा गया रे, मोदी मरजा तू। देश बेचकर खा गया रे, मोदी मर जा तू। किसानों को धोखा दे गया रे, मोदी मर जा तू।’
वायरल वीडियो को न्यूज नेशनल के पत्रकार दीपक चौरसिया ने भी ट्विटर पर शेयर किया है। वीडियो पर उन्होंने नाराजगी जताते हुए पूछा कि ये कौन सा नारा है? ये विचारधारा कौन सी है? उन्होंने कहा कि इस देश की संस्कृति ऐसी नहीं है। हालांकि ट्वीट के बाद चौरसिया सोशल मीडिया यूजर्स के निशाने पर आ गए। कई यूजर्स ने पुराने वीडियो शेयर कर उनसे तीखे सवाल पूछा।
फैक्ट चेक @FactsJaq577 ट्विटर हैंडल से हिंदूवादी नेता रागिनी तिवारी का एक वीडियो शेयर कर पूछा ये कौन सा नारा है जिसमें रागिनी तिवारी फेसबुक लाइव में मुस्लिमों को मारने को कहती हैं और अब किसान आंदोलनकारियों को भी धमकी दी है। रमीज @smartyramizm लिखते हैं, ‘आपको परेशानी क्यों हो रही है।’ अजित पांडे @smartyramizm लिखते हैं, ‘इनसे ठीक से निपटा नहीं जा रहा है, इसलिए ऐसा नारा लगा रहे हैं।’
मनीष कुमार @manieshkumkumar लिखते हैं, ‘मोदी को बोलें MSP का निर्णय किसानों के हाथ में दें और किसानों को क्या चाहिए उनके घर जा कर पूछें। एसी वाले कमरे में बैठ कर कानून ना बनाएं। अगर खेत में जाकर कभी फसल काटी होती तो किसानों के दर्द को समझते। अफसोस वो सिर्फ चाय ही बनाता थे।’
ये कौन सा नारा है ? ये कौन सी विचारधारा है ? इस देश की ये संस्कृति तो नहीं । #FarmBills2020 #FarmersProtestHijacked pic.twitter.com/oUWvEPtOrc
— Deepak Chaurasia (@DChaurasia2312) December 13, 2020
इसी तरह प्रिया सिंह @s37298559 लिखती है, ‘आपको ऐसी ही वीडियो मिलती हैं जब हम जाते हैं तो हमें तो ऐसा कुछ नहीं मिलता। ये भी बताओं कि कैसे किसानों चोट लगी हैं। मैं शेयर कर देती हूं वीडियो, आपका चैनल तो नहीं दिखाएगा।’ जयदीप चहल @jagdeep42860482 लिखते हैं, ‘किसान पिज्जा नहीं खा सकते, किसानों के पास गाड़ियां नहीं हो सकती, किसानों के पास i-phone नहीं हो सकता, भ&**@# की यही सोच उन्हें गुलाम की श्रेणी में रखती है।’